विचार

कश्मीरी हिन्दुओं के निष्कासन के 31 वर्ष! क्या हो पाएगा इनका पुनर्वसन?

वर्ष 1990 में कश्मीरी हिन्दुओं ने स्थलांतरण नहीं किया था, अपितु उन्हें निष्कासित किया गया था। हमारी पीडा समझकर उस पर कृत्य करना आवश्यक है, परंतु उस पर केवल राजनीति की जाती है। कश्मीरी हिन्दुओं को न्याय दिलवाना हो, तो हमारा वंशविच्छेद हुआ है, यह प्रथम अधिकृत रूप से स्वीकार करना पडेगा। यह स्वीकार न […]

वर्ष 1990 में कश्मीरी हिन्दुओं ने स्थलांतरण नहीं किया था, अपितु उन्हें निष्कासित किया गया था। हमारी पीडा समझकर उस पर कृत्य करना आवश्यक है, परंतु उस पर केवल राजनीति की जाती है। कश्मीरी हिन्दुओं को न्याय दिलवाना हो, तो हमारा वंशविच्छेद हुआ है, यह प्रथम अधिकृत रूप से स्वीकार करना पडेगा। यह स्वीकार न करने के कारण संपूर्ण देश के हिन्दुओं के लिए संकट उत्पन्न हो गया है। उससे संबंधित कानून बनाने की प्राथमिक आवश्यकता है। यदि नरसंहार के विषय में विधेयक (जिनोसाइड बिल) लाया जाए, तो कश्मीरी हिन्दुओं का पुनर्वसन संभव है। 

उल्लेखनीय है कि अभी भी साढे सात लाख कश्मीरी हिन्दुओं का पुनर्वसन नहीं हुआ है। निर्वासित कश्मीरी हिन्दुओं को उनकी पहचान बनाए रखने के लिए उनकी भूमि उन्हें पुनः मिलनी आवश्यक है। हमें पुनः वहां जाने के लिए सुरक्षित वातावरण निर्माण करना चाहिए और सुरक्षित वातावरण कैसे निर्माण करेंगे, यह सरकार को बताना चाहिए। हमारे पुनर्वसन के लिए ‘पनून कश्मीर’ को संपूर्ण भारत के हिन्दुओं का समर्थन आवश्यक है तथा उसके लिए संपूर्ण देश के हिन्दुओं को इस संबंध में जागृति करनी चाहिए, ऐसा आवाहन ‘यूथ फॉर पनून कश्मीर’ के अध्यक्ष राहुल कौल ने किया। 

राहुल कौल हिन्दू जनजागृति समिति द्वारा ‘चर्चा हिन्दू राष्ट्र की’ इस कार्यक्रम के अंतर्गत ‘कश्मीरी हिन्दुओं के निष्कासन के 31 वर्ष!’ इस विशेष परिसंवाद में बोल रहे थे। यह कार्यक्रम ‘यू ट्यूब लाइव’ और ‘फेसबुक’ के माध्यम से 29715 लोगों ने देखा तथा 90162 लोगों तक पहुंचा।

इस समय ‘एपिलोग न्यूज चैनल’ के अध्यक्ष अधिवक्ता टिटो गंजू (कश्मीरी हिन्दू) बोले, ‘कश्मीरी हिन्दुओं का वंशविच्छेद निरंतर नकार कर हमें ‘स्थलांतरित’ संबोधित किया जाता है। राज्य सरकार ने इसे वंशविच्छेद न मानते हुए अपना दायित्व झटक दिया है। इस नरसंहार में मारे गए हिन्दुओं की संख्या की भी प्रविष्टी उचित पद्धति से नहीं की गई है। 1990 से 93 की अवधि में शरणार्थी शिविर में बदले हुए वातावरण का सामना करते समय अनुमानित 25 सहस्र हिन्दुओं की मृत्यु हो गई थी। इसके अतिरिक्त सहस्रों हिन्दुओं की हत्या हुई। सहस्रों हिन्दू महिलाओं पर अत्याचार हुए। 

ज्ञात हो कि गत 700 वर्षों में 7 बार कश्मीरी हिन्दुओं को कश्मीर छोडकर जाना पडा। हमारी 21 पीढियों ने यह नरसंहार भोगा है। उसके पीछे हिन्दुओं की हिमालयीन संस्कृति नष्ट कर कश्मीर का इस्लामीकरण करने की भूमिका ही कारण है। भारत में नरसंहार से संबंधित कानून (जिनोसाइड बिल) लागू होने पर बांग्लादेश, म्यांमार आदि अन्य राष्ट्रों मे होनेवाली हिन्दुओं की हत्या रोकी जा सकती है। यह विधेयक कानून में रूपांतरित होना चाहिए।’

सनातन संस्था के राष्ट्रीय प्रवक्ता चेतन राजहंस इस समय बोले, ‘कश्मीरी हिन्दुओं की वेदना, पीडा, नरक यातना समझने के लिए प्रथम 19 जनवरी 1990 को क्या घटा? यह जान लेना पडेगा। इस संबंध में अभी भी अनेक देशवासियों को पता नहीं है। कश्मीरी हिन्दुओं पर हुए अत्याचार के संबंध में हमें नहीं बताया गया, यह एक राष्ट्रीय षड्यंत्र द्वारा देशवासियों से छिपाया गया। उस समय 7 लाख 50 हजार कश्मीरी हिन्दुओं को अपनी मातृभूमि छोडकर निर्वासित होना पडा। यह निष्कासन एक विशिष्ट राजनीतिक उद्देश्य से था। कश्मीर में इस्लामी सत्ता के लिए यह निष्कासन किया गया। कश्मीरी हिन्दुओं को सुरक्षा का अभिवचन देनेवाला एक भी राजनीतिक नेता गत 31 वर्षों में नहीं जन्मा! अभी भी कश्मीरी हिन्दुओं का पुर्नवसन नहीं हुआ है। कश्मीरी हिन्दुओं का पुर्नवसन उनकी सुरक्षा के वचन के साथ होना चाहिए’, यह भी राजहंस ने इस समय कहा।

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