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कामाख्या मंदिर में छुपे हैं कई ऐसे राज जिन्हें जानकर आपके होश उड़ जायेंगे!

अनमोल कुमार 51 शक्तिपीठों (Shatipeeth) में से एक कामाख्या शक्तिपीठ (Kamakhya Shatipeeth) बहुत ही प्रसिद्ध (Famous) और चमत्कारी (miraculous) है। कामाख्या देवी (Kamakhya Devi) का मंदिर अघोरियों और तांत्रिकों का गढ़ माना जाता है। असम (Assam) की राजधानी दिसपुर (Dispur) से लगभग 7 किलोमीटर दूर स्थित यह शक्तिपीठ नीलांचल पर्वत (Nilanchal Parbat) से 10 किलोमीटर […]

अनमोल कुमार

51 शक्तिपीठों (Shatipeeth) में से एक कामाख्या शक्तिपीठ (Kamakhya Shatipeeth) बहुत ही प्रसिद्ध (Famous) और चमत्कारी (miraculous) है। कामाख्या देवी (Kamakhya Devi) का मंदिर अघोरियों और तांत्रिकों का गढ़ माना जाता है। असम (Assam) की राजधानी दिसपुर (Dispur) से लगभग 7 किलोमीटर दूर स्थित यह शक्तिपीठ नीलांचल पर्वत (Nilanchal Parbat) से 10 किलोमीटर दूर है। कामाख्या मंदिर (Kamakhya Temple) सभी शक्तिपीठों का महापीठ (Mahapeeth) माना जाता है।

नहीं है कोई मूर्ति या चित्र
इस मंदिर में देवी दुर्गा (Devi Durga) या मां अम्बे (Maa Ambe) की कोई मूर्ति या चित्र आपको दिखाई नहीं देगा। बल्कि मंदिर में एक कुंड बना है जो की हमेशा फूलों से ढ़का रहता है। इस कुंड से हमेशा ही जल निकलता रहता है। चमत्कारों से भरे इस मंदिर में देवी की योनि की पूजा की जाती है और योनी भाग के यहां होने से माता यहां रजस्वला भी होती हैं। आइए आपको बताते हैं मंदिर से जुड़ी कई अन्य रोचक जानकारियां।

क्यों इस शक्तिपीठ का नाम कामाख्या पड़ा
मंदिर धर्म पुराणों के अनुसार माना जाता है कि इस शक्तिपीठ का नाम कामाख्या (Kamakhya) इसलिए पड़ा क्योंकि इस जगह भगवान शिव (Bhagwan Shiv) का मां सती (Maa Sati) के प्रति मोह भंग करने के लिए विष्णु भगवान (Vishnu Bhagwan) ने अपने चक्र से माता सती के 51 भाग किए थे जहां पर यह भाग गिरे वहां पर माता का एक शक्तिपीठ बन गया और इस जगह माता की योनी गिरी थी, जोकि आज बहुत ही शक्तिशाली पीठ है। वैसे  तो यहां सालभर ही भक्तों का तांता लगा रहता है लेकिन दुर्गा पूजा (Durga Puja), पोहान बिया (Pohan Biya), दुर्गादेऊल (Durgadeul), वसंती पूजा (Vasanti Puja), मदानदेऊल (Madanadeul), अम्बुवासी (Ambuvasi) और मनासा पूजा (Manasa Puja) पर इस मंदिर का अलग ही महत्व है जिसके कारण इन दिनों में लाखों की संख्या में भक्त यहां पहुचतें है।

क्यों होता ब्रह्मपुत्र का पानी लाल
हर साल यहां अम्बुबाची मेला (Ambubachi Mela) के दौरान पास में स्थित ब्रह्मपुत्र (Brahmaputra) का पानी तीन दिन के लिए लाल हो जाता है। पानी का यह लाल रंग कामाख्या देवी के मासिक धर्म के कारण होता है। फिर तीन दिन बाद दर्शन के लिए यहां भक्तों की भीड़ मंदिर में उमड़ पड़ती है।

अजीबोगरीब प्रसाद
आपको बता दें की मंदिर में भक्तों को बहुत ही अजीबोगरीब प्रसाद दिया जाता है। दूसरे शक्तिपीठों की अपेक्षा कामाख्या देवी मंदिर में प्रसाद के रूप में लाल रंग का गीला कपड़ा दिया जाता है।

कहा जाता है कि जब मां को तीन दिन का रजस्वला होता है, तो सफेद रंग का कपडा मंदिर के अंदर बिछा दिया जाता है। तीन दिन बाद जब मंदिर के दरवाजे खोले जाते हैं, तब वह वस्त्र माता के रज से लाल रंग से भीगा होता है। इस कपड़ें को अम्बुवाची वस्त्र कहते है। इसे ही भक्तों को प्रसाद के रूप में दिया जाता है।

मनोकामना पूरी करने के लिए यहां कन्या पूजन व भंडारा कराया जाता है। इसके साथ ही यहां पशुओं की बलि दी जाती ही हैं। लेकिन यहां मादा जानवरों की बलि नहीं दी जाती है।

काली और त्रिपुर सुंदरी देवी के बाद कामाख्या माता तांत्रिकों की सबसे महत्वपूर्ण देवी है। कामाख्या देवी की पूजा भगवान शिव के नववधू के रूप में की जाती है, जो कि मुक्ति को स्वीकार करती है और सभी इच्छाएं पूर्ण करती है।

मंदिर परिसर में जो भी भक्त अपनी मुराद लेकर आता है उसकी हर मुराद पूरी होती है। इस मंदिर के साथ लगे एक मंदिर में आपको मां का मूर्ति विराजित मिलेगी। जिसे कामादेव मंदिर कहा जाता है।

माना जाता है कि यहां के तांत्रिक बुरी शक्तियों को दूर करने में भी समर्थ होते हैं। हालांकि वह अपनी शक्तियों का इस्तेमाल काफी सोच-विचार कर करते हैं। कामाख्या के तांत्रिक और साधू चमत्कार करने में सक्षम होते हैं। कई लोग विवाह, बच्चे, धन और दूसरी इच्छाओं की पूर्ति के लिए कामाख्या की तीर्थयात्रा पर जाते हैं।

कामाख्या मंदिर तीन हिस्सों में बना हुआ है। पहला हिस्सा सबसे बड़ा है इसमें हर व्यक्ति को नहीं जाने दिया जाता, वहीं दूसरे हिस्से में माता के दर्शन होते हैं जहां एक पत्थर से हर वक्त पानी निकलता रहता है। माना जाता है कि महीनें के तीन दिन माता को रजस्वला होता है। इन तीन दिनो तक मंदिर के पट बंद रहते है। तीन दिन बाद दुबारा बड़े ही धूमधाम से मंदिर के पट खोले जाते है।

इस जगह को तंत्र साधना के लिए सबसे महत्वपूर्ण जगह मानी जाती है। यहां पर साधु और अघोरियों का तांता लगा रहता है। यहां पर अधिक मात्रा में काला जादू भी किया जाता है। अगर कोई व्यक्ति काला जादू से ग्रसित है तो वह यहां आकर इस समस्या से निजात पा सकता है।