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व्यंग्यः शांत नहीं हुई पेट की गर्मी, पर हुई बेशर्मी

भैया मान लिया कि पेट के लिए अन्न जरूरी है। लेकिन अन्न से पेट की गर्मी भले शांत हुई जाये आँखों की गर्मी थोड़े ठंडी हुई जायेगी। अब साहेब गरीबों के लिए बाकायदा महोत्सव का ऐलान कर दिए हैं। तो अब अन्न महोत्सव हुआ करेगा। इसमें कोई शक नहीं कि स्कीम बहुत बढ़िया है।  तो […]

भैया मान लिया कि पेट के लिए अन्न जरूरी है। लेकिन अन्न से पेट की गर्मी भले शांत हुई जाये आँखों की गर्मी थोड़े ठंडी हुई जायेगी। अब साहेब गरीबों के लिए बाकायदा महोत्सव का ऐलान कर दिए हैं। तो अब अन्न महोत्सव हुआ करेगा। इसमें कोई शक नहीं कि स्कीम बहुत बढ़िया है। 

तो हुआ यूं कि अपनी यूपी के संत कबीर नगर के एक गाँव में गरीबों के लिए अन्न महोत्सव लगा। पता चला कि मंत्री जी अपने ही हाथों से सबको अन्न बांटेगे। अब क्या है कि गलती से भी कहीं गैर मंत्री के हाथों बंट गया तो अन्न की पौष्टिकता नष्ट होने का बड़ा खतरा है। तो टेंट-वेन्ट, कुर्सी मेज लगा के बढ़िया से सब इंतजाम किया गया। मंत्री जी के लिए स्टेज भी एकदम चौकस सजाया गया। 

अब मंत्री जी ठहरे व्यस्त आदमी तो सुबह सुबह तो पहुँच नहीं जायेंगे। लेकिन मेले में तो गाँव वालों का रेला लग चुका था। आयोजक इसका भी पूरा इंतजाम किये थे। कुछ ही देर में सनसनाती बार बालाएँ मंच पे प्रकट हो गईं। फिर भैया स्टेज पे जो आग लगी है कि जवानों से लइके बुड्ढे तक गर्मा गये। 

लोगों की भीड़ डांस औ डांसर में अईसा खोई कि खाना-पीना सब भूल गई। आखिर मनोरंजन भी तो कोई चीज होती है। खाना-पीना तो कभी भी हो सकता है। पूरा जीवन पड़ा है उसके लिए। औ फिर बार बालाओं के दर्शन कोई रोज-रोज थोड़े होते हैं। इधर स्टेज पर बार बालाएं ठुमके लग रही थीं, उधर गाँव वालों के दिल उछल के बाएँ से दाएं हुए जा रहे थे। किडनी लिवर तो लिवर किडनी में घुसा जा रहा था। 

माहौल में गर्मी बढ़ ही रही थी कि पता चला कि मंत्री जी नहीं आएंगे। बस इतना सुनना था कि आयोजक डांस बंद करा दिए। बोले अब सीधा अन्न लेयो। लोग चढ़ बइठे। बोले अन्न दो चाहे न देओ लेकिन डांस चालू रखो। लेकिन आयोजक न माने। आधे गाँव वाले तो बिना अन्न लिए ही चले गए। अन्न के साथ झोला बंटा तब जाके सब गांववाले वापस लौटे।

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