यदि आपका बच्चा सामान्य से अधिक उछल- कूद करता है, कभी चुप नहीं बैठता, यहां तक कि स्कूल में कक्षा में अध्यापक के सामने भी टिक कर नहीं बैठ पाता, किसी एक कार्य में ध्यान केन्द्रित नहीं कर पाता तो बच्चे को ए.डी.एच.डी. (एटैंशन डेफिसिट हाइपर एक्टीवीटी डिसआरडर) ध्यान में कमी व अतिक्रियशीलता हो सकता है। यह एक व्यवहार संबंधी रोग है जो लड़कों में अधिक होता है। ऐसे बच्चों में सामान्य लालन-पालन के तरीके पूरी तरह से काम नहीं करते इसलिए माता-पिता को भी अपने व्यवहार में कुछ बदलाव लाने पड़ते हैं। इस रोग में कुछ हद तक दवाएं भी काम करती हैं लेकिन व्यवहार के बहुत से पहलू दवा से ठीक नहीं होते और उन्हें ठीक करने के लिए माता-पिता एवं परिवारगण विशेष भूमिका निभा सकते हैं। ऐसे बच्चों का माता-पिता होना वास्तव में ही एक चुनौती है, क्योंकि इन बच्चों में अन्य बच्चों की अपेक्षा अपना आन्तरिक नियंत्रण बहुत कम होता है। अतः माता-पिता को इनके साथ विशेष तरीके अपनाने पड़ते हैं।
यहां यह जानना आवश्यक है कि व्यवहार क्या है और किन कारणों से प्रभावित होता है? व्यवहार संबंधी वैज्ञानिकों का मानना है कि हर अच्छा-बुरा व्यवहार हम किए गए काम के तुरंत बाद हुई प्रतिक्रिया से सीखते हैं जैसे हम कोई पोशाक पहनते हैं और हमारे आसपास के लोग (मित्रगण आदि) कहें कि हमें पोशाक बेहद पसंद आई तो हम उसे अधिक पहनना पसंद करेंगे और यदि हम कहें कि पोशाक अच्छी नहीं लगी तो शायद हम उसे कम पहनना पसंद करेंगे। बच्चे अपने माता-पिता और परिवारजनों से बहुत कुछ सीखते हैं, चाहे वह अच्छा हो या फिर बुरा। माता-पिता बच्चों को बुरा व्यवहार जानबूझ कर नहीं सिखाते लेकिन ऐसा दुर्भाग्यवश हो जाता है। बच्चों में व्यवहार सीखने का एक सीधा तरीका बड़ों की देखा देखी है इसलिए यदि बड़े अच्छे उदाहरण पेश नहीं करेंगे तो अनजाने में ही बच्चे अवांछित व्यवहार सीख लेंगे। अतः स्वयं भी वही करें जो आप अपने बच्चों से चाहते हैं।
बच्चों में व्यवहार सीखने का दूसरा तरीका बच्चों के द्वारा किए क्रियाकलाप पर आपकी प्रतिक्रिया है। जैसे यदि बच्चा रोना शुरु करता है तो आप उसे टॉफी, चॉकलेट खिला देते हैं और बच्चा शांत हो जाता है। इससे आपने सीखा कि टॉफी, चॉकलेट से बच्चा शांत हो जाता है पर साथ ही बच्चे ने यह सीख लिया कि रोने से उसे टॉफी, चॉकलेट मिलती है। अतः भविष्य में यदि उसे टॉफी, चॉकलेट चाहिए तो वह रोने को भी एक तरीका बना सकता है। अब यदि किन्हीं कारणों से बुरा व्यवहार बन भी जाता है तो इसे बदला भी नहीं जा सकता है। अधिकतर अभिभावक समझ नहीं पाते कि इन बच्चों के साथ कैसा व्यवहार किया जाए। इसलिए तंग आकर या आवेश में आकर बच्चों को डांटना, फटकारना एवं पीटना प्रारम्भ कर देते हैं। यह विधि अधिकांश बच्चों में कारगर साबित नहीं होती क्योंकि :
(क) इस तरह की सजा बच्चे में आक्रामक वृत्ति पैदा करती है जबकि ऐसे बच्चे पहले से ही आक्रामक होते हैं।
(ख) सजा से हम बच्चे को सिर्फ यह सिखाते हैं कि क्या नहीं करना है, यह नहीं सिखाते कि उसे क्या करना चाहिए।
(ग) अधिकांश बच्चों में अधिक सजा देने वाले अभिभावाकों के प्रति दुर्भावना पैदा हो जाती है।
(घ) प्रायः इस प्रकार दी गई सजा अभिभावकों के अपने मूड पर ज्यादा और बच्चे के असली कसूर पर कम निर्भर करती है।
मनोवैज्ञानिक शोध पर आधारित कुछ तरीके हैं जिनके निरन्तर अभ्यास से आप अपने बच्चे के व्यवहार में सुधार ला सकते हैं। यह कार्य कठिन जरूर है परन्तु निम्न तरीके अपनाकर किया जा सकता है :
1. बच्चे के व्यवहार को बदलने के लिए अपने व्यवहार में परिवर्तन लाएं और बच्चों के सामने स्वयं अच्छे उदाहरण बनें।
2. जैसा कि पहले भी बताया जा चुका है कि किसी भी बर्ताव के तुरंत बाद होने वाली प्रतिक्रिया यह निर्धारित करती है कि बर्ताव को आगे बनाए रखा जाए या तोड़ना चाहिए। बच्चे के व्यवहार के प्रति एक प्रतिक्रिया ÷ध्यान देना' भी है। हम बच्चों की ओर अक्सर ध्यान नहीं देते, हमारा ध्यान तब आकृष्ट होता है जब वे कोई अवांछित व्यवहार करते हैं और हम भाषण देना शुरु कर देते हैं। बच्चे ध्यान आकृष्ट करने के लिए भी गलत हरकत कर सकते हैं। यदि उन्हें आवश्यक मात्रा में ध्यान मिलता रहे और खासकर तब मिलता रहे जब वे कुछ अच्छा कर रहे हों तो उनके अच्छे व्यवहार को बढ़ावा मिलेगा। जैसे यदि बच्चा गिनती सुना रहा है, लिख रहा है या रंग आदि भर रहा है तो उसकी ओर ध्यान दें और यदि चीख रहा है, कुर्सी हिला रहा है आदि तो उसकी ओर ध्यान न दें। यह सुनने व पढ़ने में बहुत आसान बात लगती है परंतु इसे व्यवहार में लाने के लिए सतत प्रयास की आवश्यकता होती है।
3. किसी भी व्यवहार को यदि प्रोत्साहित अथवा पुरस्कृत किया जाता है तो उस व्यवहार को बढ़ावा मिलता है। पुरस्कार व्यवहार के तुरंत बाद ही दिया जाना चाहिए और यह अवश्य बताया जाना चाहिए कि उसे पुरस्कार/प्रोत्साहन क्यों दिया जा रहा है। जैसे मुझे बहुत खुशी है कि आपने आज अपना काम पूरा कर लिया है। शुरु-शुरु में हर बार दिया जाना चाहिए और धीरे-धीरे कभी-कभी भी दिया जा सकता है। अतः अच्छे व्यवहार को हमेशा प्रोत्साहित एवं पुरस्कृत करें। प्रोत्साहन व पुरस्कार किसी भी रूप में दिया जा सकता है। जैसे तारीफ करना, बच्चे का आंलिग्न या चुम्बन करना, उसके साथ खेलना, उसके लिए खिलौने या कोई चीज लाना जो उसे पसंद हो आदि।
4. जो भी काम आप बच्चे से करवाना चाहते हों, आप उसे स्पष्ट एवं साधारण निर्देश दें। निर्देश देते समय बच्चे से नजरें मिलाएं व दृढ़ता से बोलें। हो सके तो सकारात्मक निर्देश ही दें अर्थात यह करो न कि यह मत करो, वह मत करो आदि। यदि बच्चा आपके निर्देशानुसार कार्य करता है तो उसकी ओर ध्यान देना व उसे प्रोत्साहित पुरस्कृत करना न भूलें। ऐसे निर्देश न दें जिनका आप बच्चों से पालन न करवा पाएं। यदि आपका बच्चा आपके निर्देश के अनुसार कार्य नहीं करता है और आप कुछ नहीं करते तो इससे बच्चे यह समझ लेते हैं कि इनके कहने में विशेष अर्थ नहीं है, ये तो कहते रहते हैं। इसलिए सुनिश्चित करें कि आपके निर्देश का पालन हो।
5. यदि बच्चा बहुत ज्यादा गलत शरारत करे या एक चेतावनी देने के बाद भी बात न माने तो उसे घर के एक कोने आदि (ऐसा स्थान जो बहुत अरुचिकर हो) में थोड़ी देर के लिए (जैसे पांच मिनट) रख दें इस अवधि में उससे कोई भी व्यक्ति बात न करे।
कोई भी इनाम या सजा देने में यह बात महत्वपूर्ण है कि एक सी गलती के लिए हर बार एक सी सजा हो और अच्छे कार्य के लिए हर बार प्रोत्साहन इनाम मिले। अपने बच्चे की निंदा न करें।
ये सभी तरीके यदि नियमित तौर पर अपनाए जाएं तो निश्चित तौर पर आप बच्चों से वांछित व्यवहार की अपेक्षा रख सकते हैं। वैसे तो ये तरीके ध्यान में कमी व अतिक्रियशीलता से ग्रस्त बच्चों के लिए बताए गए हैं परंतु सामान्य बच्चों में भी ये तरीके अपनाए जा सकते हैं।
(यू.एन.एन.)
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