संघ वह संस्था है जो समाज में ‘नायक’ का निर्माण करता है, फिर व्यक्ति का कार्यक्षेत्र चाहे जो हो। इसकी भूमिका इसलिए और भी महत्वपूर्ण है क्योंकि जब समाज अपनी समस्याओं को लेकर शिकायत और सुझाव से ही स्वयं को संतुष्ट कर ले तो परिस्थितियों के परिवर्तन के लिए ऐसा समाज समुचित प्रयास को अवसर मिलने की प्रतीक्षा करता है।
संघ के प्रति किसी भी व्यक्ति का निष्कर्ष वास्तव में न केवल व्यक्ति की परिपक्वता बल्कि उसके संघ की समझ को भी दर्शाता है, इसलिए, जो व्यक्ति संघ से जितना अपरिचित व् अनभिज्ञ है उसके अंदर संघ को लेकर उतनी ही शंकाएं और संशय है। ऐसे में, हमें यह समझना होगा की जो लोग संघ की चर्चा मात्र से ही व्याकुल व् अशांत हो जाते हैं उन्हें संघ को जानने की उतनी अधिक आवश्यकता है।
संघ किसी का विरोध नहीं करता परन्तु यह भी उतना ही सत्य है की संघ एक हिंदूवादी संगठन है जो हिंदुत्व के संवर्धन और संरक्षण के प्रति समर्पित है, हिंदुत्व इसलिए क्योंकि हिंदुत्व ही भारत की वास्तविकता है। संघ की अपनी निजी कोई विचारधारा ही नहीं जो भारतीयता है वही संघ की विचारधारा की वास्तविकता भी, इसलिए, जिन्हें अपने भारतीयता पर गर्व है उन्हें संघ से जुड़ने और इसे जानने का प्रयास अवश्य करना चाहिए।
अपने विराट स्वरुप में संघ ही समाज होगा और तब संघ और समाज का अंतर भी समाप्त हो जाएगा क्योंकि तब संघ ही समाज होगा और समाज ही संघ, इसलिए यह जानना आवश्यक है की संघ परिस्थितियों के परिवर्तन के लिए प्रयासरत है।
व्यक्ति निर्माण की प्रक्रिया द्वारा यह समाज के व्यक्तियों में नैतिक, धार्मिक व् मानवीय मूल्यों के विकास के प्रति समर्पित है क्योंकि सामाजिक चेतना की जागृति के लिए यह आवश्यक है की समाज में व्यक्ति के लिए सही और गलत का अंतर स्पष्ट हो..
एक ऐसे समाज का निर्माण कर पाना निश्चित रूप से संभव है जहाँ ईश्वर का अस्तित्व जड़ नहीं बल्कि चेतना के रूप में उपस्थित हो पर इसके लिए हमें अपने व्यवहारिक जीवन में अपने आचार, विचार और आचरण के माध्यम से धर्म की स्थापना करनी होगी।
ईश्वर को अवधारणा और धर्म को सैद्धांतिक मानकर कोई भी समाज आदर्श का उदाहरण नहीं बन सकता ;समाज में आदर्श की स्थापना महत्वपूर्ण है क्योंकि उनके आभाव में समाज समृद्ध तो हो सकता है पर भ्रष्टाचार से ग्रसित रहेगा . जब से हमने एक राष्ट्र के रूप में धर्मनिरपेक्ष बनने का निर्णय लिया। शायद हमारे धर्म और अधर्म की समझ विकृत हो गयी, तभी वर्त्तमान की परिस्थितियां ऐसी चिंताजनक है!
हाँ, संघ एक सामाजिक संगठन है जिसको राजनीति में हस्ताच्छेप का अधिकार तो है पर संघ राजनीतिक नहीं, ऐसा इसलिए क्योंकि राजनीति के माध्यम से शाषन तंत्र को जिस समाज को सुरक्षा और व्यवस्था प्रदान करने का उत्तरदायित्व है संघ उसी समाज के प्रति समर्पित है।
यह आवश्यक नहीं की बहुमत का हर निर्णय सही हो, स्थिति और भी गम्भीर तब हो जाती है जब बहुमत की सोच का स्तर ही समाज की सबसे बड़ी समस्या हो, ऐसे में , बहुमत को निर्णय का अधिकार सौंपना घातक होगा और तब समाज के हस्ताच्छेप से ही राजनीती का परिवर्तन संभव हो पता है।
यह आवश्यक भी है क्योंकि सामाजिक नेतृत्व का यह दायित्व है की वह समाज का सही दिशा में नेतृत्व करे और यह तभी संभव है जब उसके सामाजिक ‘विकास’ की समझ सही व् स्पष्ट हो; अगर ऐसा नहीं हुआ तो सामाजिक विकास का प्रयास ही समाज के विनाश का कारन बनेगा जिसका दोषी समाज स्वयं होगा क्योंकि अपना नेतृत्व चुनने का अधिकार उसे प्राप्त है।
संघ को राजनीति नहीं करनी पर यह भी सभी को स्पष्ट रूप से पता होना चाहिए की समाज और राष्ट्र के हित में राजनीति की दिशा और दशा को बदलने के लिए संघ हर वो प्रयास करेगा जिसकी समय को आवश्यकता होगी।”