फाल्गुनी पूर्णिमा के दिन आने वाला होली यह त्योहार देशभर में उत्साह से मनाया जाता है। दुष्ट प्रवृत्ती एवं अमंगल विचारों का नाश कर, सत्य प्रवृत्ती का मार्ग दिखाने वाला यह उत्सव है। होली मनाने के पीछे, वृक्ष की लकड़िया समिधा के रूप में अग्नि में अर्पित कर, उससे वातावरण को शुद्ध करना, यह उच्च विचार है। होली मनाने का कारण एवं महत्त्व, होली मनाने की पद्धति यह विषय की शास्त्रीय जानकारी सनातन संस्था द्वारा संकलित इस लेख में देखेंगे। इस वर्ष कोरोना की पृष्ठभूमि पर कुछ स्थानों पर यह त्योहार सदैव की भांति करने में मर्यादाएं हो सकती हैं । मात्र जिस जगह प्रशासन के सभी नियमों का पालन कर यह त्योहार मनाया जा सकता है, उस दृष्टी से यह त्योहार सदैव की परंपरा के अनुसार मनाए।
तिथि
प्रदेशानुसार फाल्गुनी पूर्णिमासे पंचमी तक पांच-छः दिनों में, कहीं तो दो दिन, तो कहीं पांचों दिन तक यह त्यौहार मनाया जाता है ।
होली के पर्व पर अग्निदेवता के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने का कारण
होली यह अग्निदेवता की उपासनाका ही एक अंग है। अग्निदेवता की उपासना से व्यक्ति में तेजतत्त्व की मात्रा बढने में सहायता मिलती है । होली के दिन अग्निदेवता का तत्त्व 2 प्रतिशत कार्यरत रहता है । इस दिन अग्निदेवता की पूजा करने से व्यक्ति को तेजतत्त्व का लाभ होता है । इससे व्यक्तिमें से रज-तमकी मात्रा घटती है । होली के दिन किए जाने वाले यज्ञों के कारण प्रकृति मानव के लिए अनुकूल हो जाती है । इससे समय पर एवं अच्छी वर्षा होने के कारण सृष्टिसंपन्न बनती है । इसीलिए होली के दिन अग्निदेवता की पूजा कर उनके प्रति कृतज्ञता व्यक्त की जाती है । घरों में पूजा की जाती है, जो कि सुबह के समय करते हैं । सार्वजनिक रूप से मनाई जाने वाली होली रात में मनाई जाती है ।
होली मनाने का कारण
पृथ्वी, आप, तेज, वायु एवं आकाश इन पांच तत्त्वों की सहायता से देवता के तत्त्वको पृथ्वीप र प्रकट करने के लिए यज्ञ ही एक माध्यम है । जब पृथ्वी पर एक भी स्पंदन नहीं था, उस समय के प्रथम त्रेतायुग में पंचतत्त्वों में विष्णुतत्त्व प्रकट होने का समय आया । तब परमेश्व द्वारा एक साथ सात ऋषि-मुनियों को स्वप्नदृष्टांतमें यज्ञ के बारे में ज्ञान हुआ । उन्होंने यज्ञ की सिद्धताएं (तैयारियां) आरंभ कीं । नारद मुनि के मार्गदर्शनानुसार यज्ञ का आरंभ हुआ । मंत्रघोष के साथ सबने विष्णुतत्त्व का आवाहन किया । यज्ञ की ज्वालाओं के साथ यज्ञकुंड में विष्णुतत्त्व प्रकट होने लगा । इससे पृथ्वी पर विद्यमान अनिष्ट शक्तियों को कष्ट होने लगा । उनमें भगदड मच गई । उन्हें अपने कष्ट का कारण समझमें नहीं आ रहा था । धीरे-धीरे श्रीविष्णु पूर्ण रूप से प्रकट हुए । ऋषि-मुनियों के साथ वहां उपस्थित सभी भक्तों को श्रीविष्णुजी के दर्शन हुए । उस दिन फाल्गुन पूर्णिमा थी । इस प्रकार त्रेतायुग के प्रथम यज्ञ के स्मरण में होली मनाई जाती है । होली के संदर्भ में शास्त्रों एवं पुराणों में अनेक कथाएं प्रचलित हैं ।
भविष्यपुराण की कथा
भविष्यपुराण में एक कथा है । प्राचीनकाल में ढुंढा अथवा ढौंढा नामक राक्षसी एक गांवमें घुसकर बालकों को कष्ट देती थी । वह रोग एवं व्याधि निर्माण करती थी । उसे गांव से निकालने हेतु लोगों ने बहुत प्रयत्न किए; परंतु वह जाती ही नहीं थी । अंत में लोगों ने अपशब्द बोलकर, श्राप देकर तथा सर्वत्र अग्नि जलाकर उसे डराकर भगा दिया । वह भयभीत होकर गांव से भाग गई । इस प्रकार अनेक कथाओं के अनुसार विभिन्न कारणों से इस उत्सव को देश-विदेश में विविध प्रकार से मनाया जाता है ।
होली का महत्त्व
होलीका संबंध मनुष्य के व्यक्तिगत तथा सामाजिक जीवन से है, साथ ही साथ नैसर्गिक, मानसिक तथा आध्यात्मिक कारणों से भी है । यह बुराई पर अच्छाई की विजयका प्रतीक है । दुष्प्रवृत्ति एवं अमंगल विचारों का नाश कर, सद्प्रवृत्ति का मार्ग दिखाने वाला यह उत्सव है। अनिष्ट शक्तियों को नष्ट कर ईश्वरीय चैतन्य प्राप्त करने का यह दिन है । आध्यात्मिक साधना में अग्रसर होने हेतु बल प्राप्त करनेका यह अवसर है । वसंत ऋतुके आगमन हेतु मनाया जाने वाला यह उत्सव है । अग्निदेवता के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने का यह त्यौहार है।
होली मनाने की पद्धति
कई स्थानों पर होली का उत्सव मनाने की सिद्धता महीने भर पहले से ही आरंभ हो जाती है । इसमें बच्चे घर-घर जाकर लकडियां इकट्ठी करते हैं । पूर्णमासी को होली की पूजा से पूर्व उन लकडियों की विशिष्ट पद्धति से रचना की जाती है । तत्पश्चात उसकी पूजा की जाती है । पूजा करने के उपरांत उसमें अग्नि प्रदीप्त (प्रज्वलित) की जाती है । होली के दूसरे दिन होली पर, दूध एवं पानी छिडककर उसे शांत किया जाता है तथा उसकी राख शरीर पर लगायी जाती है।
होली के त्योहार में होने वाले अनाचारों को रोकना हमारा धर्म कर्तव्य है!
वर्तमान समय होली के अवसर पर अनेक अनाचार होते है | इस समय गंदे पानी के गुब्बारे फेंकना, अंगों पर खतरनाक रंग फेंकना, मद्य पीकर हुडदंग मचाना आदि विकृतियों से धर्महानि होती है । इसे रोकना हमारा कर्तव्य है। इसके लिए समाज को भी जागृत करें। अगर फिर भी कोई यह अनाचार करते समय पाया जाता है, तो पुलिस को इसकी सूचना दें । सनातन संस्था समान विचारधारावाले संगठनों और धर्मप्रेमियों के साथ कई वर्षों से इस संबंध में जागरूकता कर रही है। आप भी इसमें भाग ले सकते हैं। होली के समय होने वाले अनाचारों को रोककर होली धर्मशास्त्र के अनुसार मनाए ।
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