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गाय के दूध से निर्मित छाछ के महत्वपूर्ण लाभ

रक्त को हमेश पतला बनाये रखती है। ह्रदय की मांसपेशियों को मुलायम बनाये रखती है। ह्रदय की धड़कन को पूरी तरह से नियंत्रित करती है गाय के दूध से निर्मित ताजा छाछ।

गाय गौ माता के दूध से तैयार ताजा पतला मठठा 1 गिलास पानी के अंदर मात्र 2.5 चम्मच दही यानी छाछ जीरे, मीठी नीम की पत्ती, काली मिर्च, पिप्पली, सोंठ, सेंधा नमक के साथ में भोजन के बाद 2 गिलास मधुमेह के मरीज को अवश्य ही लेना चाहिये। दूध को हमेशा ही मिटटी अथवा चांदी के बर्तन में जमाना चाहिये। चांदी हल्की होती है तथा चांदी में जमायी वस्तु सुपाच्य होती है।

चांदी में छाछ ग्रहण करने पर अपने आप पाचक रस छूटने लगता है। छाछ के अंदर 22 प्रकार के अमिनो अम्ल ग्लिसिन, एलनिन, वेलिन, ल्यूसिन, फिनिलेलेनिन, टिरोसिन, सेरिन, सिस्टिन, प्रोलिन, हाइड्रोक्सीप्रोलिन, ग्लूमेटिक एसिड ,हाइडा्रेक्सीग्लूमेटिक एसिड, एस्पार्टिक एसिड, ट्रिप्टोफिन, आर्जिनिन, हिस्टिडिन, लाइसिन, मिथिओनिन, डोडेकेनोमिनो एसिड, अमोनिया, फास्फोरस, सल्फर, 25 प्रकार के धातु तत्व, 8 प्रकार के किण्व, 19 प्रकार के नाइट्रोजन लेक्टोक्रोम, क्रिएटिन, यूरिया, थियोसायनिक एसिड, ओरोटिक एसिड, हाइपोक्सेन्थीन, जेन्थीन, यूरिक एसिड, कोलिन, ट्राइमेथिलेमिन, ट्राइमेथिलेमिन ओक्साइड, मेथिल ग्वेनिडिन, अमोनिया के क्षार, 4 प्रकार के फास्फोरस यौगिक मुक्त फोस्फेट, केसीन के साथ मिला हुआ फोस्फेट, सिफेलीन, डाइमिनो मोनोफास्फेटाइड, तीन अम्ल द्रावक सेन्द्रीय फास्फोरस यौगिक, सोडियम, पोटेशियम, कैल्शियम, जस्ता, क्रोमियम, फास्फोरस, क्लोरिन, आयोडिन, क्लोराइड, सल्फेट, सिलिका, फलोरिन, एल्यूमिनियम, लोहा, कोबाल्ट, तांबा, मेगनीज, मेग्ने’शियम, 60 प्रकार के पाचक रस, कंज्यूगेटेड लियोनिक अम्ल, कार्बोहाइड्रेड, कैरोटिन, विटामिन ए और ए-1, विटामिन बी-1, विटामिन बी-2, विटामिन बी-3, विटामिन बी-12, विटामिन सी, विटामिन के, विटामिन बी-9, विटामिन बी-6, विटामिन डी, विटामिन एच यानी बायोटीन, कोलिन, 11 प्रकार के स्नेह पदार्थ ओलिक, पामिटिक, स्टिअरिक, मीरिस्टिक, ब्यूटिरिक, केप्रोइक, केप्रीलिक, लोरिक, एरेेकिडिक, कैप्रिक, लिनोलिक मौजूद हैं. मीठी नीम की पत्ती में कैल्’शियम की मात्रा 805 मिलीग्राम है‌‌। जीरे मे मेग्नेशियम की मात्रा सबसे अधिक 475 मिलीग्राम हैकाली मिर्च में कैल्शियम की मात्रा 1350 मिलीग्राम है। पाचन के लिये भोजन के बाद 2 गिलास पतली छाछ अनिवार्य है क्योंकि मधुमेह रोगियों के लिये छाछ अमृत है। गाय माता के पाचन संस्थान में चार पेट होते हैं।

जिसमें से पहले पेट रुमेन में मौजूद सूक्ष्म जीवाणुओं के द्वारा आहार में पाये जाने वाले वसायुक्त तत्व को पचाने के दौरान अनसेचूरेटेड फेटि एसिड मुक्त होकर बायो हाइडोजिनेशन के दौर से गुजर कर मुक्त हाइडोजन के साथ मिलकर सीएलए उत्पन्न होता है। दुधारु गाय माता के पेट में ब्यूटाइरिविब्रियो फाइब्रिसाल्वेन्स नामक जीवाणु उपस्थित होते हैं जो कि लियोनिक अम्ल को कन्ज्यूगेटेड लियोनिक अम्ल में परिवर्तित कर देते हैं। हरा चरने वाली गाय माता के पेट में 30 मिलीग्राम सीएलए मिल जाता है। गर्मी के समय में जंगलों में हरे चारे चरने वाली गाय के दूध में सीएलए 2 से 3 गुना अधिक पाया जाता है। सीएलए मानव रक्त एवं कोशिकाओं में पहुंचने के बाद कुछ ऐसे एंजाइम उत्पन्न करते हैं जो टयूमर उत्पन्न करने या कोशिका मित्ति को नष्ट होने से बचाते हैं जैसे आरथिनिन, डिकार्बोक्सिलेज या प्रोटीनकाइनेज-सीआर साइटोक्रोम-पी-450 जो कैंसर उत्पन्न करने वाले कारक माने जाते हैं, सीएलए या तो इन पदार्थों को बनने से रोकता है। या उनकी मात्रा को अत्यंत कम कर देता है या उनकी संभावना को अत्यंत क्षीण करता है।

सीएलए को कैंसर पर प्रयोग करने के लिये चूहों पर अध्ययन किया गया। चूहों की बड़ी आंत के कैंसर को रोकने में सीएलए उपयोगी पाया गया। सीएलए कैंसर उत्पन्न होने के 2 सप्ताह पूर्व से ही देना प्रारम्भ करने पर स्तन के कैंसर में बहुत अधिक कमी आयी। ओस्ट्रेलिया में किये गये अध्ययन के अनुसार गाय के दूध, दही, छाछ, मक्खन, घी के सेवन करने से रक्त के अंदर कैंसर रोधी तत्वों की मात्रा स्वाभाविक रुप से बढ़ने लगती है। विश्व में सीएलए की जागृति के कारण ही गाय माता के दूध तथा दूध से तैयार पदार्थ के नियमित सेवन करने के कारण ग्रासनली, फेफड़े,छाती, अग्नाशय, बड़ी आंत, प्रोस्टेट, मूत्राशय, मुंह, गले, दांत, दिमाग, रक्त, अस्थि, गर्भाशय, गर्भाशय ग्रीवा, गर्भाशय की रसौली, लसीका ग्रंथि, गुर्दे, आंख के कैंसर को रोकने में मदद मिली है। कुछ वनस्पति तेलों जैसे मारगोरिन्स में लियोनिक अम्ल पाया जाता है। लेकिन बिना बेक्टेरिया की मदद के सीएलए में बदल नहीं पाता है। कंज्यूगेटेड लियोनिक अम्ल और किसी भी पदार्थ में उपलब्ध नहीं है।

प्राकृतिक रुप से मिलने वाला सीएलए ही शरीर के लिये उपयोगी है। भारत में सीएलए की जानकारी बहुत ही पहले से थी। पहले हर घर में गाय माता का पालन भी इसलिये किया जाता था। मक्खन, चीज, योगर्ट, दही, कंडेन्सड मिल्क में सीएलए सर्वाधिक पाया जाता है। गाय माता के घी को 120 अंश तापमान पर बनाने पर सीएलए सर्वाधिक मिलता है।

गाय माता के घी में 2.5 से 3.5 प्रतिशत तक सीएलए रहता है। मांसाहारी पदार्थ में सीएलए नगण्य है। गाय माता के दूध में 4.5 मिलीग्राम सीएलए मौजूद है। गाय माता को बिना रसायनिक खाद का भोजन देने पर 8 मिलीग्राम सीएलए दूध में मिलता है। विश्व के विकसित देशो ने अपने देशो में जहरीले 30 कीटनाशकों पर पूर्ण प्रतिबंध हैं। विश्व में बहुत ही कम लोगों को सी.एल.ए. से होने वाले लाभों की पूरी वैज्ञानिक जानकारी है। मधुमेह को रोकने के लिये भी सीएलए की महत्वपूर्ण भूमिका है। छाछ कोलेस्ट्रोल को पूरी तरह से नियंत्रित करती है।

रक्त को हमेश पतला बनाये रखती है। ह्रदय की मांसपेशियों को मुलायम बनाये रखती है। ह्रदय की धड़कन को पूरी तरह से नियंत्रित करती है। 6 माह में छाछ ह्रदय रोग को पूरी तरह से दूर कर देती है। और अधिक जानकारी प्राप्त के लिए सहदेव भाटिया द्वारा लिखित गौ ग्रंथ को पड़े। और उनके यूट्यूब चैनल से जुड़े। जय गौ माता जय गोपाल अखिल विश्व कामधेनु सेवक ज्योतिषाचार्य अंकित रावल ब्राह्मण सिरोही राजस्थान।।