''वहॉं अन्धेरा है, वहॉं जाने में डर लगता है।''- यह वह पाठ है, जिसे बच्चे रात को प्राय; घर-घर दुहराते हैं। मातायें सोचती हैं-''क्या किया जाये। बच्चे तो डरते ही हैं, न मालूम किससे।''
इस सम्बन्ध में एक मनोवैज्ञानिक की डायरी के पृष्ठों में कितनी ही महत्वपूर्ण बातों का उल्लेख हुआ है। पहली बात तो समझ लेने की यह है कि भय एक प्रकार की छाया है, जो बालक के मस्तिष्क पर पड़ जाती है और जिसे दूर किया जा सकता है। यह भय साधारण बात नहीं है और उसकी उसके व्यक्तित्त्व की कमजोरी का पूर्व-चिन्ह है और उसकी मानसिक स्वास्थ्य हीनता को बतलाता है। माता पिता को कोई ऐसा कार्य नहीं करना चाहिए, जिससे बालक का डर अधिक हो, अगर उसे अंधेरे से डर लगता हो, उसे हौआ से डराने के लिए या किसी बात की सजा देने के लिए कभी अंधेरे कमरे में बंद नहीं करना चाहिए। छोटे बच्चों को भयभीत करने का कोई भी कारण उचित नहीं माना जा सकता।
शारीरिक और सामाजिक चातुर्य का विकास होने में बच्चे की सहायता की जानी चाहिए। कुछ परिस्थितियां स्वीकार करने में उनकी हिचकिचाहट का मुख्य कारण यह हो सकता है कि वह उनके लिए तैयार ही न हो। मान लीजिये कि कोई लड़का अन्य लड़कों में शामिल हो कर खेल खेलने से हिचकिचाता है। इस दशा में उसे अलग ले जाकर बतलाना चाहिए कि वह खेल किस तरह से खेला जाता है, जिससे उसमें आत्म विश्वास उत्पन्न हो।
भयावह परिस्थितियों का सामना करने की शिक्षा बालक को दी जानी चाहिए। तुफान से कष्ट पाने के कारण जो बच्चा डरने लगा हो, उसे यह बतलाने की जरूरत है कि उसे हवा की ओर पीठ देकर नीचे की ओर सिर करके बैठना चाहिए। अंधेरे का भय दूर करने का एक उपाय और भी है। बच्चे को खाने-पीने की चीज जो सर्वाधिक प्रिय हो, उसे अन्धकार पूर्ण कोने में ही रखना चाहिए और फिर दो-चार बार अपने साथ ले जाकर उसे अपनी प्रिय वस्तु लाने के लिए प्रोत्साहन देना चाहिए। उसे जब पता चलेगा कि अंधेरे में अपनी प्रिय वस्तु लेने के लिए जाने पर कुछ भी तो नहीं होता, तब धीरे-धीरे उसका भय निकल जायेगा और साहस आ जायगा।
अपने मन का भय बच्चों पर कभी प्रकट नहीं करना चाहिए। इससे बच्चे डरपोक बन जाते हैं। भय का प्रश्न अत्यन्त जटिल रूप में तब होता है, जब उसके आत्माभिमानों को जगाया जाये, उसे खूब बढ़ावा दिया जाये, सफलता चाहे कितनी ही कम हो, परन्तु उसके लिए शाबाशी दी जाये।
बच्चे जिन बातों से डरते हों, उनके विषय में भली भांति समझा देनें से भी भय दूर हो जाता है। अपने अन्य मित्रों के साथ खेल-कूद में भाग लेने का किसी बच्चे को जब अवसर मिलता है, सैंकड़ों तरह के भय अपने आप ही दूर हो जाते हैं। दूसरे लड़कों के साथ मिल-जुलकर खेलने की बच्चों की प्रवृति को प्रोत्साहन देना चाहिए।
(यू.एन.एन.)
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