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Govardhan Pooja 2021: क्यों की जाती है गोवर्धन पूजा; जानिए! शुभ मुहूर्त, इतिहास और महत्व

गोवर्धन पूजा इस साल 5 नवंबर को पूरे देश में भक्तों द्वारा मनाई जाएगी। आमतौर पर यह विशेष आयोजन दिवाली के अगले दिन पड़ता है। इस पूजा को अन्नकूट पूजा के रूप में भी जाना जाता है। यह एक ऐसा दिन है जब भगवान कृष्ण के भक्त भगवान इंद्र पर उनकी जीत को याद करते […]

गोवर्धन पूजा इस साल 5 नवंबर को पूरे देश में भक्तों द्वारा मनाई जाएगी। आमतौर पर यह विशेष आयोजन दिवाली के अगले दिन पड़ता है। इस पूजा को अन्नकूट पूजा के रूप में भी जाना जाता है। यह एक ऐसा दिन है जब भगवान कृष्ण के भक्त भगवान इंद्र पर उनकी जीत को याद करते हैं और उनका सम्मान करते हैं। बहुत से लोग अपने घर में भगवान कृष्ण की पूजा भी करते हैं। हिंदू कैलेंडर के अनुसार, गोवर्धन पूजा कार्तिक के महीने में प्रतिपदा तिथि, शुक्ल पक्ष (चंद्र चरण) पर की जाती है। कई राज्यों में, महाराष्ट्र में लोग गोवर्धन पूजा को बाली प्रतिपदा कहते हैं। देश के बाकी हिस्सों की तरह, वे भी इस त्योहार को समान प्रेम और उत्साह के साथ मनाते हैं।

अन्नकूट क्या है?
यह विभिन्न अनाजों के मिश्रण को संदर्भित करता है जिसमें बेसन करी, गेहूं, चावल आदि शामिल हैं। गोवर्धन पूजा के दिन, भक्त भगवान कृष्ण को अर्पित करने के लिए इस विशेष भोजन को बनाते हैं।

पूजा के बाद भक्तों के बीच अन्नकूट के साथ मिठाइयां भी बांटी जाती हैं। पूजा के दौरान, लोग भगवान कृष्ण से लंबे, समृद्ध और स्वस्थ जीवन की प्रार्थना करते हैं। इस बीच, देश भर के मंदिरों में, लोग अन्नकूट की रात को भी नाचते और गाते हैं।

शुभ मुहूर्त
गोवर्धन पूजा सुबह 6.36 बजे शुरू होगी और सुबह 8.47 बजे (सुबह मुहूर्त) तक चलेगा। अवधि 2 घंटे 11 मिनट की है।

गोवर्धन पूजा दोपहर 3-22 बजे शुरू होगी और शाम 5रू33 बजे (शाम मुहूर्त) तक चलेगी। अवधि 2 घंटे 11 मिनट की है।

जबकि प्रतिपदा तिथि 5 नवंबर 2021 को सुबह 02.44 बजे शुरू होगी और उसी दिन रात 11.14 बजे समाप्त होगी।

गोवर्धन पूजा के दौरान, एक प्रमुख अनुष्ठान में गाय के गोबर और मिट्टी से एक छोटी पहाड़ी तैयार करना शामिल है। भक्त इसे वास्तविक गोवर्धन पर्वत (पहाड़ी) के प्रतीक के रूप में करते हैं। इसके अलावा, लोग 56 वस्तुओं की एक विस्तृत भोजन थाली भी तैयार करते हैं और इसे भगवान कृष्ण को अर्पित करते हैं। इस दौरान लघु गोवर्धन पर्वत पर कच्चा दूध, मिठाई और अन्य सामान रखा जाता है।

पौराणिक कथा
धार्मिक मान्यता के अनुसार एक बार देव राज इंद्र को अपनी शक्तियों का घमंड हो गया था। इंद्र के इसी घमंड को दूर करने के लिए भगवान कृष्ण ने लीला रची। एक बार गोकुल में सभी लोग तरह-तरह के पकवान बना रहे थे और हर्षोल्लास के साथ नृत्य-संगीत कर रहे थे। यह देखकर भगवान कृष्ण ने अपनी मां यशोदा जी से पूछा कि आप लोग किस उत्सव की तैयारी कर रहे हैं? भगवान कृष्ण के सवाल पर मां यशोदा ने उन्हें बताया हम देव राज इंद्र की पूजा कर रहे हैं। तब भगवान कृष्ण ने उनसे पूछा कि, हम उनकी पूजा क्यों करते हैं?

यशोदा मैया ने उन्हें बताया कि, भगवान इंद्र देव की कृपा हो तो अच्छी बारिश होती है जिससे हमारे अन्न की पैदावार अच्छी होती है और हमारे पशुओं को चारा मिलता है। माता की बात सुनकर भगवान कृष्ण ने कहा कि, अगर हमें गोवर्धन पर्वत की पूजा करनी चाहिए क्योंकि हमारी गाय तो वहीं चारा चरती हैं और वहां लगे पेड़-पौधों की वजह से ही बारिश होती है।

भगवान कृष्ण की बात मानकर गोकुल वासी गोवर्धन पर्वत की पूजा करने लगे यह सब देखकर इंद्र देव क्रोधित हो गए और उन्होंने इसे अपना अपमान समझा और ब्रज के लोगों से बदला लेने के लिए मूसलाधार बारिश शुरू कर दी। बारिश इतनी विनाशकारी थी कि गोकुल वासी घबरा गए। तब भगवान कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी ऊँगली पर उठाया और सभी लोग इसके नीचे आकर खड़े हो गए।

भगवान इंद्र ने 7 दिनों तक लगातार बारिश की और 7 दिनों तक भगवान कृष्ण ने इस पर्वत को उठाए रखा। भगवान कृष्ण ने एक भी गोकुल वासी और जानवरों को नुकसान नहीं पहुंचने दिया, ना ही बारिश में भीगने दिया। तब भगवान इंद्र को अहसास हुआ कि उनसे मुकाबला कोई साधारण मनुष्य तो नहीं कर सकता है। जब उन्हें यह बात पता चली कि मुकाबला करने वाले स्वयं भगवान श्री कृष्ण हैं तो उन्होंने अपनी गलती के लिए क्षमा याचना मांगी और मुरलीधर की पूजा करके उन्हें स्वयं भोग लगाया और माना जाता है तब से ही गोवर्धन पूजा की शुरुआत हुई।

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