अत्यंत प्रतिकूल जलवायु से संबंधित घटनाएं और प्राकृतिक आपदाएं प्रतिदिन बढती जा रही हैं । जलवायु में अनिष्टकारी परिवर्तन का कारण स्वयं मानव ही है, यह वैज्ञानिकों का मत है । परंतु यदि मानव उचित साधना आरंभ करे और उसे नियमित बढाता रहे, तो उसमें तथा आसपास के वातावरण में भी सात्त्विकता बढेगी । तब वातावरण में अनिष्ट परिवर्तन होने पर भी साधना करनेवालों को आगामी आपातकाल में दैवी सहायता मिलेगी, जिससे उनकी रक्षा होगी । साथ ही साधना करनेवालों को आगामी विविध संकटों का सामना करने हेतु बल प्राप्त होगा, ऐसा प्रतिपादन महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय के श्री. शॉन क्लार्क ने शोधनिबंध का वाचन करते समय व्यक्त किया । वे मॉन्ट्रियल, कैनडा में हुई 14 वीं ग्लोबल स्टडीज कॉन्फ्रेंस : लाइफ आफ्टर पेंडेमिक : टूवर्ड अ न्यू ग्लोबल बायोपॉलिटिक्स ? इस अंतरराष्ट्रीय परिषद में बोल रहे थे । इस परिषद में उन्होंने ‘कोरोना विषाणु और जलवायु परिवर्तन संबंधी आध्यात्मिक दृष्टिकोण – क्या वे परस्पर संबंधित हैं और उन्हें कैसे रोक सकते हैं ?’, यह शोधनिबंध प्रस्तुत किया । ग्लोबल स्टडीज रिसर्च नेटवर्क एन्ड कॉमन ग्राउंड रिसर्च नेटवर्क इस परिषद की आयोजक थी । इस शोधनिबंध के लेखक परात्पर गुरु डॉ. आठवले तथा सहलेखक शॉन क्लार्क हैं ।
महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय द्वारा 73 वे वैज्ञानिक परिषद में इस शोधप्रबंध का प्रस्तुतिकरण किया गया । इससे पूर्व विश्वविद्यालय ने 15 राष्ट्रीय और 57 अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिक परिषदों में शोध निबंध प्रस्तुत किए हैं । इनमें से 4 अंतरराष्ट्रीय परिषदों में विश्वविद्यालय ने ‘सर्वश्रेष्ठ शोधनिबंध’ पुरस्कार प्राप्त किए है ।
‘जलवायु के इस हानिकारक परिवर्तन के बारे में क्या कर सकते हैं ?’ इसके बारे मेें शॉन क्लार्क ने बताया, इन समस्याओं का मूलभूत कारण आध्यात्मिक होने के कारण जलवायु में सकारात्मक परिवर्तन एवं उनकी रक्षा के लिए उपाययोजना भी मूलतः आध्यात्मिक स्तर पर होना आवश्यक है । संपूर्ण समाज उचित साधना करने लगे, तो जलवायु के हानिकारक परिवर्तन, प्राकृतिक आपदा, महामारी, तृतीय विश्वयुद्ध और अन्य संकटों कारण आने वाले भीषण आपातकाल का सामना करना संभव होगा ।
Comment here
You must be logged in to post a comment.