भगवान श्री कृष्ण (Bhagwan Shri Krishna) हमारी संस्कृति के एक विलक्षण महानायक हैं ,जिनकी तुलना ना किसी अवतार से की जा सकती है और ना संसार के किसी दूसरे व्यक्तित्व से। उनके जीवन की प्रत्येक लीला में, प्रत्येक घटना में एक ऐसा विरोधाभास नजर आता है जिसको हम आसानी से नहीं समझ सकते।
भगवान श्री कृष्ण अजन्मा होकर भी पृथ्वी पर जन्म लेते हैं ,मृत्युंजय होने पर भी मृत्यु का वरण करते हैं और सर्वशक्तिमान होने पर भी उनका जन्म कारागार में होता है।भगवान श्री कृष्ण कहते हैं जब जब इस पृथ्वी पर धर्म की हानि होती है ,विनाश का कार्य होता है और अधर्म बढ़ता है तब -तब मैं इस धरती पर आता हूं और अवतार लेता हूं।
वह द्वारिका के राजा थे लेकिन जरूरत पड़ने पर जब महाभारत (Mahabharat) का युद्ध हुआ तो वह अर्जुन के सारथी बन गए और दुर्योधन की ओर से खड़ी अपनी ही सेना के खिलाफ अर्जुन को लेकर युद्ध भूमि में उतर जाते हैं। भगवान श्री कृष्ण के बड़े भाई जिनका नाम बलराम था वह भगवान श्री कृष्ण को कई बार समझाते हैं कि हमें युद्ध में शामिल नहीं होना चाहिए क्योंकि अर्जुन और दुर्योधन दोनों ही हमारे मित्र हैं। लेकिन कृष्ण हर प्रकार की उलझनों का रास्ता निकाल लेते थे।
उन्होंने दुर्योधन और अर्जुन से कहा कि एक तरफ मैं रहूंगा अर्थात में युद्ध में हिस्सा नहीं लूंगा, ना ही शस्त्र उठाऊंगा और दूसरी तरफ मेरी विशाल सेना होगी। आप दोनों चयन कर लो कि आपको क्या चाहिए तब अर्जुन ने श्री कृष्ण जी को चुना और दुर्योधन ने श्री कृष्ण की सेना का चयन किया।
भगवान श्री कृष्ण की बताई हुई बातें इस युग में उतनी ही लाभदायक है जितनी की महाभारत काल के समय मे थी। उन्होंने हमेशा अनुशासन में जीना सिखाया। वह हमेशा समझाते थे व्यर्थ की चिंता ना की जाए। उन्होंने भविष्य की बजाए वर्तमान में जीना सिखाया। *जन्माष्टमी के इस पवित्र त्योहार पर हमें श्री कृष्ण जी को मानना ही नहीं है अपितु जानना भी है।
वह कहते थे कि मन की सारी वृत्तियां मानव कष्टों का मूल कारण है। जीवन में चाहे कितनी भी नकारात्मक परिस्थितियां क्यों ना हो ईश्वर की कृपा और स्वयं के पुरुषार्थ से व्यक्ति विषम परिस्थितियों का सामना आसानी से कर सकता है।
श्री कृष्ण की भक्ति जन्माष्टमी का अध्यात्मिक संदेश है। प्रत्येक मनुष्य के अंदर दुर्योधन और अर्जुन दोनों प्रकार की वृतिया निवास करती हैं।जब हम अच्छे से समझ कर उनका ध्यान करते हैं तो हमें जीवन के संघर्षों में विजय दिलाने भगवान श्री कृष्ण किसी ना किसी रूप में स्वयं आते हैं। केवल शर्त इतनी हैं कि हमें दुर्योधन वृत्ति का त्याग करना होगा और अर्जुन वृत्ति को अपनाना होगा।
अर्जुन जीवात्मा है और भगवान श्री कृष्ण परमात्मा है। मानव मन जिसमें वृतियों का युद्ध हो रहा है कुरुक्षेत्र है।
श्रीमद्भागवत गीता के अंतिम श्लोक के अनुसार जहां योगेश्वर श्री कृष्ण हैं और जहां धनुर्धर अर्जुन हैं वही समृद्धि ,विजय और सुख का निवास है। सुखी जीवन के लिए कृष्ण उपदेश को आत्मसात करना पड़ेगा।