हम जानते हैं कि भगवान शिव ने देवी पार्वती से विवाह किया था। देवी पार्वती भगवान शिव की शक्ति हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि इनकी शादी कैसे हुई? जानिए महादेव और माता पार्वती के विवाह की रोचक कथा…
सब देवता अपने भाँति-भाँति के वाहन और विमान सजाने लगे,कल्याणप्रद मंगल शकुन होने लगे और अप्सराएँ गाने लगीं।
“सिवहि संभु गन करहिं सिंगारा। जटा मुकुट अहि मौरु सँवारा॥
कुंडल कंकन पहिरे ब्याला। तन बिभूति पट केहरि छाला॥”
“ससि ललाट सुंदर सिर गंगा। नयन तीनि उपबीत भुजंगा॥”
“गरल कंठ उर नर सिर माला। असिव बेष सिवधाम कृपाला॥”
शिवजी के गण शिवजी का श्रृंगार करने लगे। जटाओं का मुकुट बनाकर उस पर साँपों का मौर सजाया गया। शिवजी ने साँपों के ही कुंडल और कंकण पहने, शरीर पर विभूति रमायी और वस्त्र की जगह बाघम्बर लपेट लिया॥ शिवजी के सुंदर मस्तक पर चन्द्रमा, सिर पर गंगाजी, तीन नेत्र, साँपों का जनेऊ, गले में विष और छाती पर नरमुण्डों की माला थी। इस प्रकार उनका वेष अशुभ होने पर भी वे कल्याण के धाम और कृपालु हैं।
भोले नाथ का उबटन किया गया है। लेकिन हल्दी से नहीं, जले हुए मुर्दों की राख से। क्योंकि भोले नाथ को मुर्दों से भी प्यार है। एक बार भोले बाबा निकल रहे थे किसी की शव यात्रा जा रही थी। लोग कहते हुए जा रहे थे राम नाम सत्य है।
भोले नाथ ने सुना की ये सब राम का नाम लेते हुए जा रहे हैं। ये सभी तो मेरे लोग ही हैं। क्योंकि मुझे राम नाम से प्यार है। लेकिन जैसे ही लोगों ने उस मुर्दे को जलाया तो लोगों ने राम नाम सत्य कहना बंद कर दिया। और सभी वहां से चले गए।
भोले नाथ ने कहा अरे! इन सबने राम नाम सत्य कहना बंद कर दिया इनसे अच्छा तो ये मुर्दा है जिसने राम नाम सुनकर यहाँ राम नाम की समाधी लगा दी। मुझे तो इनकी चिता से और इनकी भस्म से ही प्रेम है। इसलिए मैं इनकी भस्म को अपने शरीर पर धारण करूँगा।
एक हाथ में त्रिशूल और दूसरे में डमरू सुशोभित है। शिवजी बैल पर चढ़कर चले। बाजे बज रहे हैं। शिवजी को देखकर देवांगनाएँ मुस्कुरा रही हैं (और कहती हैं कि) इस वर के योग्य दुलहिन संसार में नहीं मिलेगी। विष्णु और ब्रह्मा आदि देवताओं के समूह अपने-अपने वाहनों (सवारियों) पर चढ़कर बारात में चले। तब विष्णु भगवान ने सब दिक्पालों को बुलाकर हँसकर ऐसा कहा- सब लोग अपने-अपने दल समेत अलग-अलग होकर चलो।
हे भाई! हम लोगों की यह बारात वर के योग्य नहीं है। क्या पराए नगर में जाकर हँसी कराओगे? विष्णु भगवान की बात सुनकर देवता मुस्कुराए और वे अपनी-अपनी सेना सहित अलग हो गए॥
महादेवजी (यह देखकर) मन-ही-मन मुस्कुराते हैं कि विष्णु भगवान के व्यंग्य-वचन नहीं छूटते! अपने प्यारे (विष्णु भगवान) के इन अति प्रिय वचनों को सुनकर शिवजी ने भी भृंगी को भेजकर अपने सब गणों को बुलवा लिया॥ शिवजी की आज्ञा सुनते ही सब चले आए और उन्होंने स्वामी के चरण कमलों में सिर नवाया। तरह-तरह की सवारियों और तरह-तरह के वेष वाले अपने समाज को देखकर शिवजी हँसे॥
शिवजी की बारात कैसी है जरा देखिये-
कोई बिना मुख का है, किसी के बहुत से मुख हैं, कोई बिना हाथ-पैर का है तो किसी के कई हाथ-पैर हैं। किसी के बहुत आँखें हैं तो किसी के एक भी आँख नहीं है। कोई बहुत मोटा-ताजा है, तो कोई बहुत ही दुबला-पतला है॥ कोई बहुत दुबला, कोई बहुत मोटा, कोई पवित्र और कोई अपवित्र वेष धारण किए हुए है। भयंकर गहने पहने हाथ में कपाल लिए हैं और सब के सब शरीर में ताजा खून लपेटे हुए हैं। गधे, कुत्ते,सूअर और सियार के से उनके मुख हैं। गणों के अनगिनत वेषों को कौन गिने? बहुत प्रकार के प्रेत, पिशाच और योगिनियों की जमाते हैं। उनका वर्णन करते नहीं बनता।
भूत-प्रेत नाचते और गाते हैं, वे सब बड़े मौजी हैं। देखने में बहुत ही बेढंगे जान पड़ते हैं और बड़े ही विचित्र ढंग से बोलते हैं॥ जैसा दूल्हा है, अब वैसी ही बारात बन गई है।