नई दिल्ली: दिल्ली के चर्चित श्रद्धा मर्डर केस (Shraddha Murder Case) में हत्या के आरोपी आफताब अमीन पूनावाला (Aftab Amin Poonawalla) का राष्ट्रीय राजधानी में फॉरेंसिक साइंस लेबोरेटरी में पॉलीग्राफ टेस्ट किया गया जिसमें उसने यह कबूल किया की उसने ही श्रद्धा का मर्डर किया था।
बता दें कि आफताब का पॉलीग्राफ टेस्ट हो चुका है लेकिन उसकी रिपोर्ट अभी आना बाकी है। वहीं आज बुधवार को आफताब का नार्को टेस्ट भी हो गया है। आफताब को सुबह करीब नौ बजे तिहाड़ से अंबेडकर अस्पताल ले जाया गया जहां उसका करीब 2 घंटे तक नार्को टेस्ट चला।
बताया जा रहा है कि अगर पॉलीग्राफ और नार्को टेस्ट से कोई नतीजे सामने नहीं आते हैं तो फिर आफताब का ब्रेन मैपिंग कराया जा सकता है। एक रिपोर्ट के माध्यम से समझते हैं कि आखिर क्या और कैसे होता है पॉलीग्राफ, नार्को और ब्रेन मैपिंग टेस्ट।
क्या है पॉलीग्राफ टेस्ट (What is Polygraph Test) और कैसे होता है?
पॉलीग्राफ टेस्ट को लाइ डिटेक्टर टेस्ट भी कहा जाता है
टेस्ट से कोशिश होती है कि व्यक्ति सच बोल रहा है या झूठ
टेस्ट में साइकोलॉजिकल तरीके से अंदाजा लगाया जाता है
टेस्ट में सांस लेने की रेट, पल्स रेट, ब्लड प्रेशर, से लगाया जाता है अंदाजा
व्यक्ति झूठ बोलता है तो इन सभी टेस्ट में बदलाव दिखता है
सवालों के दौरान बीपी समेत अन्य टेस्ट की लगातार जांच होती है
सभी टेस्ट का लाइव ग्राफ होता है जिसके जरिए सच-झूठ का पता लगता है
पॉलिग्राफ टेस्ट के अलावा अपराधियों से सच का पता लगाने के लिए नार्को टेस्ट का भी सहारा लिया जाता है। फिलहाल आफताब का नार्को टेस्ट किया जा रहा है। नार्को टेस्ट के लिए कोर्ट की परमिशन की जरूरत होती है।
क्या होता है नार्को टेस्ट? (What is Narco Test)
नार्को टेस्ट में कैमिकल का सहारा लिया जाता है
नार्को टेस्ट में ट्रूथ सीरम शरीर में इंजेक्ट किया जाता है
ट्रूथ सीरम के बाद व्यक्ति से सवाल-जवाब होते हैं
नार्को टेस्ट के दौरान व्यक्ति करीब बेहोशी की हालत में होता है
टेस्ट के दौरान माना जाता है कि व्यक्ति जो भी बोलता है, सच बोलता है
वहीं नार्को टेस्ट और पॉलिग्राफ टेस्ट के अलावा ब्रैन मैपिंग का इस्तेमाल कर व्यक्ति से सच का पता लगाया जा सकता है।
ब्रेन मैपिंग टेस्ट क्या है (What is Brain MappingTest) और कैसे काम करता है?
ब्रेन मैपिंग के जरिए दिमाग को पढ़ने की कोशिश होती है
व्यक्ति के सिर हेल्मेटनुमा हेडबैंड मशीन लगाई जाती है
फिर टेस्ट के समय उसके दिमाग की स्टडी होती है
टेस्ट में व्यक्ति के दिमाग में चल रही तरंगों को पढ़ा जाता है
बिजनेसमैन अरुण कुमार टिक्कू मर्डर केस 2005
साल 2005 में बिजनेसमैन अरुण कुमार टिक्कू मर्डर केस में नार्को टेस्ट के ज़रिये ये पता लगाया गया कि हत्या कब और कैसे की गई जिसके बाद साल 2017 में आपोरी विजय पलांदे को इस केस में उम्रकैद की सजा सुनाई गई।
कुर्ला सीरियल रेप और मर्डर 2010
बात है साल 2010 की मामला था कुर्ला की सुनसान इमारत में 9 साल की एक बच्ची के शव का मिलना। जांच में पता चलता है कि मर्डर से पहले इस नाबालिग बच्ची का रेप हुआ है। जिसके बाद आरोपी का नार्को टेस्ट किया गया जिसके बाद साल 2015 में कोर्ट ने सबूतों के आधार पर आरोपी को दोषी बताकर उम्रकैद की सजा सुनाई.
इस कड़ी में और भी केस है जैसे नोएडा का आरुषी मर्डर केस। हैदराबाद ट्विन ब्लास्ट केस महाराष्ट्र का तेलगी केस..दरअसल ये सभी वो केस है जिनकी गुत्थी नार्को टेस्ट के ज़रिये सुलझाई गई थी।
अब सवाल ये है कि जब नार्को टेस्ट से सच जाना जा सकत है तो कोर्ट में नार्को टेस्ट की लीगल वैलिडिटी क्यों नहीं है? दरअसल नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन के मुताबिक दवा के इस्तेमाल के बाद इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि कोई शख्स सिर्फ सही बात ही बोलेगा।
एनेस्थीसिया की हाताल में कोई शख्स अपनी मरज़ी से बयान नहीं देता है और इस वक्त वो होश में भी नहीं होता है। इसीलिए कोर्ट में कानूनी तौर पर सबूत के लिए नार्को टेस्ट रिपोर्ट को स्वीकार नहीं किया जाता है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक फैसले में कहा है कि नार्को टेस्ट रिपोर्ट की मदद से बाद में खोजी गई किसी भी जानकारी को सबूत के तौर पर कोर्ट में पेश किए जाने की अनुमति होगी।