नई दिल्लीः अयोध्या (Ayodhya) में राम मंदिर (Ram Mandir) का ताला खोलने वाले जज (Judge) कृष्ण मोहन पांडेय (Krishan Mohan Pandey) थे। आजादी के 39 वर्ष बाद सन् 1986 में इस महान हिन्दू रक्षक ने जिला जज रहते हुए यह ऐतिहासिक फैसला सुनाया था। उन्होंने अपनी आंखो देखी एक ऐसी बात बताई जिसको सुनकर सभी देशवासी चकित रह गये। उन्होंने अपनी आत्मकथा में एक काले बंदर का जिक्र किया है, जिसे देखकर उन्होंने राम मंदिर का ताला खोलने का ऐतिहासिक फैसला सुनाया। 1999 में ये महान रामभक्त पंचतत्व में विलीन हो गया। पूरा भारतवर्ष इनका हमेशा ऋणी रहेगा।
एक काले बंदर को देखकर जज ने विवादित इमारत का ताला खोलने का फैसला दे दिया
अयोध्या पर पुस्तक लिखने वाले लेखक हेमंत शर्मा ने लिखा है, यह पुस्तक उनकी आंखों देखी गई घटनाओं का दस्तावेज है। किताब में उन्होंने एक बंदर का जिक्र किया है। राम लला की ताला मुक्ति’ पुस्तक के अध्याय में लिखा है कि कृष्ण मोहन पांडे, जो उस समय फैजाबाद के जिला न्यायाधीश थे, ने 1991 में प्रकाशित अपनी आत्मकथा में लिखा, ‘‘जिस दिन मैं ताला खोलने का आदेश लिख रहा था, उस दिन एक बंदर के रूप में उन्हें बजरंग बली के दर्शन हुए। मेरी अदालत की छत पर एक काला बंदर पूरा दिन फ्लैग पोस्ट पकड़े बैठा रहा। वे लोग जो यह फैसला सुनने अदालत में आए थे, उस बंदर को चने और मूंगफली दे रहे थे, पर मजाल है कि उस बंदर ने कुछ भी खाया हो। वह चुपचाप फ्लैग पोस्ट पकड़े बैठा रहा और लोगों को निहारता रहा। मेरे आदेश सुनाने के बाद ही वह वहां से गया। फैसला सुनाने के बाद जब डीएम और एसएसपी मुझे घर पहुंचाने गए, तो मैंने उस बंदर को अपने घर के बरामदें में बैठा पाया। मैं बहुत आश्चर्यचकित हुआ। मैंने उसे प्रणाम किया। वह जरूर कोई दैवीय ताकत थी।’’
बता दें कि उस समय अयोध्या मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले का असर पूरे देश में है लेकिन गोरखपुर के जगन्नाथ पुर मोहल्ले में शनिवार नज़ारा थोड़ा अगल था। यह नब्बे के दशक की बात है। राम मंदिर आंदोलन अपने चरम पर पहुंचने को बेताब था। उसी राममंदिर का ताला खुलवाने वाले जज के करियर का निर्णय भी इसी दशक में होने जा रहा था। यूपी सरकार से केंद्र ने हाईकोर्ट में प्रमोशन के लिए जजों की लिस्ट मांगी थी।
तत्कालीन सरकार केंद्र को पंद्रह न्यायाधीशों के नामों की सूची भेजी, लेकिन उस लिस्ट के एक नाम पर सूबे के मुखिया मुलायम सिंह यादव का कथित नोट भी लगा था। विश्व हिंदू परिषद के अनुसार इस एक नोट की वजह से प्रोन्नति का हकदार होने के बाद भी नाम पर केंद्र सरकार ने विचार ही नहीं किया। यह नाम था जस्टिस कृष्ण मोहन पांडेय का। जज कृष्णमोहन पांडेय, जिन्होंने जिला जज रहते हुए अयोध्या राममंदिर का ताला खुलवाया था।
राम मंदिर आदेश के बाद रुक गई थी पदोन्नति
गोरखपुर के जगन्नाथ पुर मोहल्ले के रहने बाले जज कृष्णमोहन पांडेय पहले ऐसे जज थे, जिनके आदेश पर राम मंदिर का ताला खुला था। इस मोहल्ले के लोग प्रकरण के न्यायिक पक्ष से सीधे जुड़ रहे हैं, ऐसा इसलिए क्योंकि वर्ष 1986 के उस एक ऐतिहासिक फैसला, जिससे राममंदिर का ताला खुला, इस मोहल्ले के एक युवक की कलम से निकला था। वह थे कृष्ण मोहन पांडेय, जो फैजाबाद के जिला जज हुआ करते थे।
अयोध्या में पूजा-पाठ के लिए एक फरवरी 1986 को मंदिर का ताला खोलने का फैसला देने वाले जज कृष्ण मोहन पांडेय गोरखपुर के ही रहने वाले थे। तब वह फैजाबाद जिला जज के पद पर थे। हालांकि इस आदेश के बाद उनकी पदोन्नति रुक गई थी। बताते है कि बाद में जब केंद्र की सरकार बदली, तब ही उनके पदोन्नति की फाइल को मंजूरी मिली और उन्हें हाईकोर्ट को जज बनाया गया।
अयोध्या विवाद पर आज सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हो सकती है। कोर्ट ने सभी पक्षों की दलीलों के लिए समय निर्धारित किया है। इस विवाद पर 6 अगस्त से नियमित सुनवाई हो रही है। ऐसे में आइए बताते हैं कि इस पूरे विवाद में साल 1986 क्यों अहम हो जाता है।
आइए बताते हैं कि इस पूरे विवाद में साल 1986 क्यों अहम हो जाता है। दरअसल, इसी साल फैजाबाद के जिला न्यायाधीश कृष्ण मोहन पांडे ने विवादित स्थल का ताला खोलने का आदेश दिया था, जिससे करोड़ों रामभक्तों की आस्था जुड़ी थी।
1949 में कुछ लोगों ने विवादित स्थल पर भगवान राम की मूर्ति रख दी और पूजा करने लगे, इस घटना के बाद मुसलमानों ने वहां नमाज पढ़ना बंद कर दिया और सरकार ने विवादित स्थल पर ताला लगा दिया। 1 फरवरी 1986 को फैजाबाद के जिला न्यायाधीश ने हिंदुओं को विवादित स्थल पर पूजा करने की अनुमति दी। इस घटना के बाद नाराज मुसलमानों ने बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी का गठन किया।
फैजाबाद के जिला जज रहे कृष्ण मोहन पांडेय ने विवादित भवन का ताला खोलने का फैसला दिया था। जब वह फैसला लिख रहे थे तो उनके सामने एक बंदर बैठा था। उनकी भी एक दिलचस्प कहानी है।
फैजाबाद के जिला न्यायाधीश ने 1 फरवरी 1986 को अयोध्या में विवादित भवन का ताला खोलने का आदेश दिया। राज्य सरकार चालीस मिनट के भीतर इसे लागू करवाती है। कोर्ट का फैसला शाम 4.40 बजे आया। 5.20 बजे विवादित भवन का ताला खुला। कोर्ट में ताला लगाने की अर्जी लगाने वाले अधिवक्ता उमेश चंद्र पांडेय भी कहते हैं, ‘‘हमें नहीं पता था कि इतनी जल्दी सब कुछ हो जाएगा।’’
Comment here
You must be logged in to post a comment.