इतिहास। यह सच का दस्तावेज होता है। ऐसा प्रमाणिक दस्तावेज जिसे कभी झुठलाया नहीं जा सकता। अयोध्या में रामलला की जन्मभूमि पर बन रहे भव्य राम मंदिर के बाबत भी यही सच है। इस बाबत हुए करीब 500 वर्षों के संघर्षों और आंदोलनों का जब भी जिक्र होगा तब पिछले सौ वर्षों में गोरखपुर स्थित गोरक्षपीठ की केंद्रीय भूमिका का जिक्र भी अनिवार्य रूप से होगा। एक ऐसा आंदोलन जिसने जिसने देश के समाज और राजनीति पर बहुत गहरा और व्यापक असर डाला। जंगे आजादी के बाद इतने व्यापक असर वाला सबसे बड़ा आंदोलन।
ऐसा आंदोलन जिसने हमारी संस्कृति, परंपरा और अतीत को नई पहचान दी। जिसने देश दुनियां के करोड़ों रामभक्तों को आत्मगौरव की अनुभूति कराई। उस आंदोलन के सौ वर्षों के दौरान गोरक्षपीठ के पीठाधीश्वरों की केंद्रीय भूमिका रही।
पीढियां बदलीं,पर राममंदिर का संकल्प और मजबूत होता गया
इस एक सदी के दौरान पीठ की तीन पीढियां बदल गईं, पर हर बदलाव के साथ राम मंदिर के प्रति संकल्प और मजबूत होता गया। इस समयावधि में जब भी राममंदिर को लेकर कोई महत्वपूर्ण घटना हुई योगी जी के दादा गुरु ब्रह्मलीन महंत दिग्विजय नाथ से लेकर उनके गुरुदेव ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ अयोध्या में मौजूद रहे।
यह कितना सुखद संयोग रहा कि सुप्रीमकोर्ट के फैसले के बाद जब करीब 500 वर्ष पुराना यह विवाद खत्म हुआ और मंदिर निर्माण के लिए भूमि पूजन हुआ उस समय गोरक्षपीठ के वर्तमान पीठाधीश्वर योगी आदित्यनाथ ही उत्तर प्रदेश मुख्यमंत्री थे।
इतिहास में एक ही संकल्प के लिए संघर्ष करने वाली तीन पीढियां अपवाद
इतिहास में ऐसी मिसालें अपवाद हैं कि किसी संस्था या संप्रदाय की दो पीढ़ियों ने करीब 100 साल से जिस मुद्दे को लेकर विषम परिस्थितियों में भी बिना रुके, बिना डिगे, बिना झुके लगातार संघर्ष किया हो, उसकी तीसरी पीढ़ी अपने पूर्वजों के उस सपने को साकार कर रही हो।
मंदिर आंदोलन और गोरक्षपीठ
अगर हम मंदिर आंदोलन पर एक नजर डालें तो इसमें गोरक्षपीठ की केंद्रीय भूमिका का पता चलता है।
मसलन, पिछले करीब तीन दशकों से योगी आदित्यनाथ ने यह साबित किया कि वह अयोध्या के हैं और अयोध्या उनकी। मुख्यमंत्री बनने के बाद भी उन्होंने अयोध्या से अपने लगाव को यथावत रखा। वह अयोध्या, जिसके नाम से ही विपक्ष को करंट लगता था। जो लोग अपने मर्यादा पुरुषोत्तम को ही काल्पनिक मानते थे, उनकी अयोध्या योगी के लिए सर्वोपरि रही है। दूसरी बार मुख्यमंत्री बनने के बाद उनकी पहली यात्रा अयोध्या की ही रही। अभी 1 अगस्त को भी वह अयोध्या गये थे। हुनमान गढ़ी और रामलला के दर्शन बाद उन्होंने राम मंदिर निर्माण का भी जायजा लिया। पहली बार उन्होंने अयोध्या में कैबिनेट की बैठक की। दीपोत्सव की परंपरा शुरू कर अयोध्या की देश दुनियां में जबर्दस्त ब्रांडिंग की।
राम मंदिर के बाबत सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद राम मंदिर न बनने तक रामलला को टेंट से हटाकर चांदी के सिंहासन पर एक अस्थाई ढांचे में ले जाने का काम योगी ने ही किया था।
1949 में रामलला के अयोध्या में प्रकटीकरण के समय अयोध्या में थे योगी के दादा गुरु
गोरक्षपीठ को केंद्र में रखकर राम मंदिर आंदोलन के इतिहास पर गौर करें तो पता चलेगा कि देश की जंग-ए-आजादी और आजादी के तुरंत बाद के वर्षों में जब हिंदू और हिंदुत्व की बात करना भी गुनाह था, तब योगी आदित्यनाथ के दादागुरु ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ ने गोरक्षपीठाधीश्वर और सांसद के रूप में हिंदू- हिंदुत्व की बात को पुरजोर तरीके से उठाया। न सिर्फ उठाया बल्कि राम मंदिर आंदोलन में अग्रणी भूमिका निभाई। सच तो यह है कि करीब 500 वर्षों से राम मंदिर के आंदोलन 1934 से 1949 के दौरान आंदोलन चलाकर एक बेहद मजबूत बुनियाद और आधार देने का काम महंत दिग्विजयनाथ ने ही किया था। दिसंबर 1949 में अयोध्या में रामलला के प्रकटीकरण के समय वह वहीं मौजूद थे।
मंदिर आंदोलन के शीर्ष नेता थे योगी के गुरुदेव
उसके बाद तो यह सिलसिला ही चल निकला। नब्बे के दशक में जब राम मंदिर आंदोलन चरम पर था तब भी गोरक्षपीठ की ही केंद्रीय भूमिका रही। मंदिर आंदोलन से जुड़े सभी शीर्षस्थ लोगों अशोक सिंघल, विनय कटियार, महंत परमहंस रामचंद्र दास, उमा भारती, रामविलास वेदांती आदि का लगातर पीठ में आना-जाना लगा रहता था। उनकी इस बाबत तब के गोरक्षपीठाधीश्वर ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ ने लंबी गुफ्तगू होती थी। यही नहीं 1984 में शुरु रामजन्म भूमि मुक्ति आंदोलन के शीर्षस्थ नेताओं में शुमार महंत अवेद्यनाथ आजीवन श्रीरामजन्म भूमि मुक्ति यज्ञ समिति के अध्यक्ष और रामजन्म भूमि न्यास समिति के सदस्य रहे।
अपने दादा गुरु और गुरु के सपने को योगी ने अपना बना लिया
बतौर उत्तराधिकारी महंत अवेद्यनाथ के साथ दो दशक से लंबा समय गुजारने वाले उत्तर प्रदेश के मौजूदा मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पर भी इस पूरे परिवेश की छाप पड़ी। बतौर सांसद उन्होंने अपने गुरु के सपने को आवाज दी। मुख्यमंत्री बनने के बाद भी योगी ने साबित किया कि अयोध्या उनकी तब भी अपनी थी और आज भी अपनी।
मालूम हो कि बतौर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जितनी बार गए, अयोध्या को कुछ न कुछ सौगात देकर आए। उनकी मंशा अयोध्या को दुनिया का सबसे खूबसूरत पर्यटन स्थल बनाने की है। इसके अनुरूप ही अयोध्या के कायाकल्प का काम जारी है।
मुख्यमंत्री होने के बावजूद अपनी पद की गरिमा का पूरा खयाल रखते हुए कभी राम और रामनगरी से दूरी नहीं बनाई। गुरु के सपनों को अपना बना लिया। नतीजा सबके सामने है। उनके मुख्यमंत्री रहते हुए ही राम मंदिर के पक्ष में देश की शीर्ष अदालत का फैसला आया। देश और दुनिया के करोड़ों रामभक्तों, संतों, धर्माचार्यों की मंशा के अनुसार योगी की मौजूदगी में ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जन्मभूमि पर भव्य एवं दिव्य राम मंदिर की नींव रखी। युद्ध स्तर इसका निर्माण भी जारी है। उम्मीद है कि 2024 के अंत या 2025 के शुरुआत में रामलला की जन्मभूमि पर भव्य मंदिर बनकर तैयार भी हो जाएगा।