उत्तर प्रदेश

प्राचीनता और आधुनिकता के तालमेल से काशी की गालियां हो रही स्मार्ट

लखनऊ: काशी का नाम लेते ही गंगा के साथ यहाँ की गलियों का भी ज़िक्र होता है। अब क्योटो के तर्ज पर काशी की गलियां अपने वास्तविक स्वरूप के साथ विकसित हो रही है। ‘री-डेवलपमेंट ऑफ ओल्ड काशी योजना के तहत गलियों का रंग रोगन के साथ हाईटेक भी किया जा रहा है। गलियों की […]

लखनऊ: काशी का नाम लेते ही गंगा के साथ यहाँ की गलियों का भी ज़िक्र होता है। अब क्योटो के तर्ज पर काशी की गलियां अपने वास्तविक स्वरूप के साथ विकसित हो रही है। ‘री-डेवलपमेंट ऑफ ओल्ड काशी योजना के तहत गलियों का रंग रोगन के साथ हाईटेक भी किया जा रहा है। गलियों की दीवारों पर काशी की संस्कृति के अनुरूप चित्रकारी किया जा रहा है। सीवर ,पानी की निकासी ,तारों को अंडरग्राउंड करना,जैसे काम गलियों को स्मार्ट बनाने के लिए किये जा रहे है।

प्राचीनता को बरक़रार रखते हुए आधुनिकता से तालमेल करके काशी की गालियां स्मार्ट हो रही है। इन गलियों में अब आप बिना हिचकोले खाए गाड़िया चला सकते है। क्योंकि जिस पत्थरों से सड़के बनाई गई है उनके नीचे विशेष पीसीसी लेवलिंग की गई है। जिससे सड़क पर बिछाए गए पत्थर (चौका) अब ऊपर नीचे नहीं मिलेंगे।

गलियों में सुव्यवस्थित तरीके से पानी और सीवर के लिए पाइप बिछाई जा रही है। जिससे व लम्बे समय तक चले। बरसात में पानी न रुके इसके लिए गलियों में पानी निकासी के लिए अलग से नालियां बनाई जा रही हैं। सभी तारों को अंडरग्राउंड कर दिया गया है। भविष्य में बिजली, इंटरनेट या टेलीफोन केबल आदि की मरम्मत या नई लाइन बिछाने के लिए अलग डक्ट लाइन भी दी गई है। ताकि गलियों में बिछाए जाने वाले पत्थर चौका को बार -बार उखाड़ना न पड़े । दीवारों पर 2 मीटर तक वॉल पेंटिंग की जा रही है। चित्रकारी में उस वार्ड या क्षेत्र की विशेषताओं ,संस्कृति, धार्मिक आयोजन आदि को रंगों के माध्यम से दर्शाया जा रहा है। गलियों में पड़ने वाले मंदिर या दूसरे धरोहरों को भी संजोया जा रहा है। दशाश्वमेध क्षेत्र में काम काफी हद तक पूरा हो चुका है। काल भैरव ,राजमंदिर जंगमबाड़ी कामेस्वर महादेव वार्ड में काम चल है।

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