जोनाईः देश के अन्य भागों के साथ ही धेमाजी जिले के जोनाई महकमा के बाहिर जोनाई लुहीजान गांव पंचायत के अकलेन गांव में शुक्रवार को करमा पूजा धूमधाम से मनाई गई। करमा उत्सव असम के चाय जनगोष्ठीय व आदिवासी समुदाय के लोगों का रात्रि जागरण प्रमुख त्योहारों में से एक है। करमा पर्व विश्वकर्मा पूजा के दुसरे दिन गांव के बड़े बुजुर्ग नए वस्त्र पहनकर ढोलक बजाते, नाचते गाते हुए करमा पेड़ के डाली काटने जाते है। वहां पहुंचकर करमा पेड़ का पूरे श्रद्धा से पूजा-अर्चना करके पेड़ के डालियां काटते है।
इसमें यह भी ध्यान रखना होता है कि करमा डाली जमीन पर नहीं गिरे। इसके बाद करम को घर के आंगन में विधिपूर्वक गाड़ा जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस पर्व को बहनों द्वारा भाइयों के लिए मनाया जाता है। इसके अलावा यह पर्व प्रकृति का भी प्रतीक है। बहनें अपने भाईयों के सुख-समृद्धि और दीर्घायु होने की कामना इस दिन करती हैं। करमा पर्व के कुछ दिन पहले युवतियां नदी या तालाब से बालू लाती है। नदी या तालाब से स्वच्छ बालू उठाकर डाली में भरी जाती है। इसमें सात प्रकार के अनाज बोती है, जौ, गेहूं, मकई, धान, उरद, चना ,मटर आदि और किसी स्वच्छ स्थान पर रखती हैं।
दूसरे दिन से रोज धूप, धूना द्वारा पूजा-अर्चना कर हल्दी पानी से सींचती है। चारों ओर युवतियां गोलाकार होकर एक-दूसरे का हाथ पकड़कर जावा जगाने का गीत गाती हैं और नृत्य करती हैं। इस पर्व को मनाये जाने का मुख्य उद्देश्य है बहनों द्वारा भाईयों के सुख-समृद्धि और दीर्घायु की कामना करना है। आदिवासी लोगों की परंपरा रही है कि धान की रोपाई हो जाने के बाद प्रकृति की पूजा कर अच्छे फसल की कामना करते हैं। आदिवासी लोगो की प्रकृति के पूजन की परंपरा सदियों से है। करमा पर्व के अवसर पर करम डाली की पूजा की जाती है।
बहनें सजी हुई थाली लेकर डाली के चारों और पूजा करने बैठ जाती है। करम राजा से प्रार्थना करती है कि हे करम राजा। मेरे भाई को सुख समृद्धि देना। इसके बाद सभी रात भर नृत्य करते हुए उत्सव मानते हैं और सुबह पास के किसी नदी में विसर्जित कर दिया जाता हैं। इस अवसर पर विशेष गीत भी गाये जाते हैं।
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