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आसू ने जोनाई के ऐतिहासिक राजाखाना पोखरी के संरक्षण की मांग की

जोनाईः असम-अरुणाचल प्रदेश की सीमांतवर्ती अंचल तथा असम की धेमाजी  जिला के जोनाई महकमा अधीन राजाखाना गांव पंचायत स्थित ऐतिहासिक राजाखाना पोखरी की संरक्षण की व्यवस्था करने तथा जीर्णाेद्धार के लिये राज्य सरकार से अखिल असम छात्र संघ ने मांग की हैं। उल्लेखनीय हैं कि राजाखाना गांव पंचायत अधिन राजा आरीमत द्वारा खुदवाये गये करीब […]

जोनाईः असम-अरुणाचल प्रदेश की सीमांतवर्ती अंचल तथा असम की धेमाजी  जिला के जोनाई महकमा अधीन राजाखाना गांव पंचायत स्थित ऐतिहासिक राजाखाना पोखरी की संरक्षण की व्यवस्था करने तथा जीर्णाेद्धार के लिये राज्य सरकार से अखिल असम छात्र संघ ने मांग की हैं।

उल्लेखनीय हैं कि राजाखाना गांव पंचायत अधिन राजा आरीमत द्वारा खुदवाये गये करीब 400 मीटर चौड़ा और 500 मीटर लंबा पोखरा को संरक्षित करने की मांग करते हुए 23 अक्टूबर को अखिल असम छात्र संघ की केन्द्रीय समिति के सलाहाकार उद्दिप ज्योति गोगोई, मुख्य सांगठनिक सचिव मंटुराज बरुवा, कार्यकारिणी सदस्य राजीव गोगोई, धेमाजी जिला छात्र संघ के अध्यक्ष दीपक शर्मा, महासचिव कल्याण गोगोई, सह सचिव संजीव दास, मुख्य सांगठनिक सचिव दिलीप कुटुम, प्रचार सचिव कैलाश मिरी, सांस्कृतिक सचिव हिरेन सरणिया, सूचना सचिव देवजीत मोरान, साहित्य सचिव देबेन डेका, जोनाई महकमा छात्र संघ के रंजीत बसुमतारी के साथ ही कई छात्र नेतागण आज उक्त पोखरी का दौरा किया।

जोनाई महकमा से करीब आठ किलोमिटर दूर तथा उत्तर पूर्व सीमा रेलवे की लाईन से करीब एक किलोमीटर उत्तर दिशा में स्थित हैं यह ऐतिहासिक राजाखना पोखरी। स्थानीय लोगो ने छात्र संघ के नाताओं को बताया कि इस पोखरी के चारो तरफ आज ही मध्य युग के ईंट तथा बड़े-बड़े पत्थरों पर मनुष्य तथा विभिन्न पशु-पक्षियों की कि गई कलाकारी के चिन्ह जमीन में दफन हैं। आज भी उक्त पोखरा के तट कहीं-कहीं करीब दस-पंद्रह मीटर उँची हैं।

वहीं गांव के लोगों का कहना हैं कि 1950 में आये प्रलंयकारी भूकम्प के कारण यहां बनाये गये बड़े-बड़े भवन जमीन में धंस गये। यह अंचल दशकों पूर्व डरावनी जंगल के रुप में था मगर यहां पर 1956 से लोग धीरे-धीरे बसने लगे और शुरुआत में उस दौरान यहां हाथी पकडने का काम किया जाता था। 

साथ ही स्थानीय लोगो छात्र नेताओं को बताया कि 1982 में पड़ोसी राज्य अरुणाचल से तीव्र गति से आये पानी की लहरों ने उक्त पोखरा का दोनो किनारा तोड़कर एक छोटी नदी के रुप में बहने लगी। जिस नदी को लोग राजाखाना नदी के नाम से जानते हैं, जो आज भी नदी के रुप में बहती हैं। स्थानीय लोगो का कहना हैं कि पुराने समय में 400 मीटर चौड़ा और 500 मीटर लंबा पोखरा की खुदाई करवाना किसी साधारण मनुष्य का काम नही हैं। इसलिये सरकार उक्त पोखरा को संरक्षित कर इस स्थान को पर्यटन केन्द्र बनाये और जमीन की खुदाई करवाकर यहां पर छिपे रहस्यों से पर्दा उठायेे। साथ ही छात्र नेताओं ने स्थानीय संवाददाताओं से बातचीत करते हुए उक्त राजाखाना पोखरी की उचित रखरखाव तथा संरक्षण के लिये राज्य सरकार से  मांग की।

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