विचार

पवन और सौर ऊर्जा वैश्विक बिजली उत्‍पादन के 12 फीसद के रिकॉर्ड स्‍तर पर

गोवा ,राजस्थान ,गुजरात ,कर्नाटक, तमिलनाडु, और आंध्र प्रदेश ने लगायी वैश्विक औसत से ऊंची छलांग

वर्ष 2022 में पवन ऊर्जा (Wind power) और सौर ऊर्जा (Solar power)) उत्‍पादन ने वैश्विक स्‍तर पर उत्‍पादित कुल बिजली के 12 प्रतिशत के कीर्तिमानी स्‍तर को छू लिया है। ऊर्जा क्षेत्र के थिंक टैंक एम्‍बर की आज जारी एक अहम रिपोर्ट में यह तथ्‍य सामने आया है। जहां तक भारत का सवाल है तो वर्ष 2022 में यहां पवन तथा सौर ऊर्जा उत्‍पादन संयुक्‍त रूप से कुल बिजली उत्‍पादन का 9 प्रतिशत (165 टेरावाट) रहा। इस दौरान भारत के छह राज्‍यों ने वैश्विक औसत से अधिक उत्‍पादन किया। इनमें गोवा (78 प्रतिशत), राजस्‍थान (36 प्रतिशत), गुजरात (30 प्रतिशत) और कर्नाटक (28 प्रतिशत) प्रमुख हैं।

आंकड़ों से जाहिर होता है कि अब 60 से ज्‍यादा देश अपने यहां कुल उत्‍पादित बिजली के 10 प्रतिशत से ज्‍यादा हिस्‍सा पवन और सौर माध्‍यमों से पैदा करते हैं।

भारत के छह राज्यों में पवन और सौर बिजली का संयुक्त हिस्सा जो 2022 में वैश्विक औसत से ऊपर था।

राज्‍यपवन और सौर ऊर्जा की हिस्‍सेदारी (%)
गोवा77.95
राजस्‍थान35.93
गुजरात29.76
कर्नाटक27.52
तमिलनाडु22.2
आंध्र प्रदेश19.12

एनर्जी थिंक टैंक एम्‍बर का चौथा वार्षिक ‘ग्‍लोबल इलेक्ट्रिसिटी रिव्‍यू’ (Global Electricity Review) वर्ष 2022 से उन 78 देशों का बिजली से सम्‍बन्धित डेटा पेश करता है जो दुनिया में बिजली की कुल मांग का 93 प्रतिशत हिस्‍सा रखते हैं। खुले डेटा और गहरे विश्‍लेषण से हमें वर्ष 2022 में वैश्विक ऊर्जा रूपांतरण की पहली सटीक तस्‍वीर मिलती है। डेटा से जाहिर होता है कि 60 से ज्‍यादा देश अब अपने कुल बिजली उत्‍पादन का 10 फीसद से ज्‍यादा हिस्‍सा सौर और पवन ऊर्जा माध्‍यमों से करते हैं।

पिछले लगातार 18 सालों से सौर ऊर्जा साल दर साल 24 फीसद की वृद्धि के साथ सबसे तेजी से बढ़ते वैश्विक ऊर्जा स्रोत के तौर पर अपना दबदबा बनाये हुए है। यह इतनी बिजली पैदा कर रहा है जिससे पूरे दक्षिण अफ्रीका की ऊर्जा सम्‍बन्‍धी जरूरतें पूरी की जा सकती हैं। इसी तरह वर्ष 2022 में पवन ऊर्जा उत्‍पादन में भी 17 फीसद की बढ़ोत्‍तरी हुई है जो लगभग पूरे ब्रिटेन की बिजली सम्‍बन्‍धी आवश्‍यकताओं को पूरा करने के लिये काफी है। भारत में जहां सौर ऊर्जा उत्‍पादन में 39 प्रतिशत (+27 टेरावाट) की उल्‍लेखनीय वृद्धि देखी गयी है, वहीं पवन ऊर्जा उत्‍पादन में 2.9 फीसद (+2 टेरावाट) की कमजोर बढ़ोत्‍तरी दर्ज की गयी।

तेजी से बढ़ती ऊर्जा की मांग को पूरा करने के लिये भारत को अपनी अक्षय ऊर्जा उत्‍पादन क्षमता में वृद्धि करने की जरूरत

वर्ष 2022 में सौर तथा पवन ऊर्जा उत्‍पादन में वृद्धि के जरिये वैश्विक स्‍तर पर हुई ऊर्जा मांग में कुल बढ़ोत्‍तरी के 80 फीसद हिस्‍से को पूरा कर लिया गया। हालांकि भारत में सौर और पवन ऊर्जा में हुई वृद्धि से बढ़ी हुई मांग का मात्र एक चौथाई हिस्‍सा ही पूरा किया जा सका।

7.2% बढ़ोत्‍तरी के साथ (+124 टेरावाट) भारत की बिजली मांग में वृद्धि पिछले दशक में अपनी औसत वार्षिक मांग वृद्धि दर (+ 5.7%) से अधिक हो गई है। यह कोविड-19 महामारी के कारण हुई आर्थिक प्रतिक्षेप (रीबाउंड) के बीच है। यह 2.5% के वैश्विक औसत से तीन गुना अधिक था और इसके परिणामस्वरूप जीवाश्म ईंधन उत्पादन में 5.8% (+78 टेरावाट) की वृद्धि हुई। वर्ष 2022 में भारत ने जीवाश्म ईंधन से अपनी बिजली का 77% (1,415 टेरावाट) हिस्‍सा उत्‍पादित किया। कोयले का सबसे बड़ा हिस्सा 74% (1,363 टेरावाट) था, इसके बाद गैस का 2.7% (50 टेरावाट) और अन्य जीवाश्म ईंधन का 0.1% (2.4 टेरावाट) था।

तुलनात्‍मक रूप से जीवाश्‍म ईंधन में वैश्विक बढ़ोत्‍तरी सीमित ही रही। वैश्विक स्‍तर पर गैस के संकट और कोयले की तरफ लौटने के डर के बावजूद पवन और सौर ऊर्जा उत्‍पादन में वृद्धि के कारण वैश्विक कोयला उत्‍पादन में वृद्धि सीमित ही रही और यह मात्र 1.1 फीसद बढ़ी। वर्ष 2022 में वैश्विक गैस ऊर्जा उत्‍पादन में बेहद मामूली गिरावट (-0.2%) दर्ज की गयी। इसके बावजूद कुल मिलाकर इसका यही मतलब हुआ कि वैश्विक स्‍तर पर ऊर्जा क्षेत्र द्वारा वर्ष 2022 में प्रदूषणकारी तत्‍वों के कुल उत्‍सर्जन में 1.3 प्रतिशत की वृद्धि हुई जो अब तक का सर्वाधिक है। भारत का उत्सर्जन और भी तेजी से बढ़ा है और यह साल-दर-साल 6.4% बढ़ रहा है और यह 70 मिलियन टन कार्बन डाइऑक्साइड जोड़ रहा है जो कुल वैश्विक वृद्धि (+160 मिलियन टन) का लगभग आधा है।

एम्‍बर के वरिष्‍ठ बिजली नीति विश्‍लेषक आदित्‍य लोला ने कहा: “साफ ऊर्जा में रूपांतरण की भारत की यात्रा अब एक महत्वपूर्ण पड़ाव पर पहुंच चुकी है। इस देश को सौर ऊर्जा उत्पादन में हाल ही में हुई तेजी से बढ़ोत्तरी पर तरक्की की नई इमारत खड़ी करने की जरूरत है। भारत को अपनी बिजली संबंधी बढ़ती जरूरतों को पूरा करने के लिए अक्षय ऊर्जा उत्पादन क्षमता को और भी बढ़ाने की जरूरत है। साथ ही साथ ग्रिड एकीकरण को संभव बनाने के लिए मूलभूत ढांचे को विकसित करने तथा मांग के शीर्ष स्तरों को पूरा करने के लिए पर्याप्त स्टोरेज क्षमता तैयार करने की भी आवश्यकता है। हालांकि यह सभी बड़ी चुनौतियां हैं लेकिन इनका समाधान करना जरूरी है ताकि हमारा देश वर्ष 2030 तक 500 गीगावॉट अक्षय ऊर्जा उत्पादन क्षमता के लक्ष्य को हासिल कर सके और यह सुनिश्चित हो कि देश की कोयला आधारित बिजली उत्पादन क्षमता अपने उत्कर्ष के करीब है।”

विशेषज्ञों का अनुमान है कि वैश्विक स्तर पर ऊर्जा क्षेत्र द्वारा प्रदूषणकारी तत्वों का उत्सर्जन अपने चरम स्तर को छू चुका है

रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि पिछले साल ऊर्जा क्षेत्र द्वारा प्रदूषणकारी तत्वों के उत्सर्जन के लिहाज से चरम स्तर का साल हो सकता है और यह जीवाश्म ईंधन से पैदा होने वाली बिजली में वृद्धि का भी आखिरी साल हो सकता है जो कि वर्ष 2023 बिजली की मांग में होने वाली संपूर्ण वृद्धि को सौर ऊर्जा के जरिए पूरा करेगी। इसके परिणामस्वरूप वर्ष 2023 में जीवाश्म ईंधन से उत्पादित बिजली में हल्की गिरावट (-0.3%) होगी। बाद के वर्षों में इसमें और भी गिरावट आने की संभावना है क्योंकि इस दौरान सौर और पवन ऊर्जा संयंत्रों की स्थापना में बढ़ोत्तरी होगी।

रिपोर्ट की प्रमुख लेखक माल्गोज़ाता वियात्रोस-मोतेका ने कहा, “जलवायु के लिहाज से इस निर्णायक दशक में यह जीवाश्म ईंधन युग के खात्मे की शुरुआत है। हम साफ ऊर्जा के युग में दाखिल हो रहे हैं।”

इंटरनेशनल एनर्जी एजेंसी द्वारा किए गए प्रारूपीकरण के मुताबिक ऊर्जा क्षेत्र को वर्ष 2040 तक सर्वाधिक प्रदूषणकारी सेक्टर से नेट जीरो का लक्ष्य हासिल करने वाले पहले क्षेत्र के तौर पर स्थापित होने की जरूरत है ताकि भारत वर्ष 2050 तक अर्थव्यवस्थावार नेट जीरो का लक्ष्य प्राप्त कर सकें। इसका मतलब यह होगा कि वर्ष 2022 के 12% के मुकाबले वर्ष 2030 तक वैश्विक स्तर पर उत्पादित कुल ऊर्जा में पवन तथा सौर बिजली की हिस्सेदारी 41% हो जाए।

एम्बर की सीनियर इलेक्ट्रिसिटी एनालिस्ट माल्गोज़ाता वियात्रोस-मोतेका ने कहा “पवन और सौर ऊर्जा के लिए शीर्ष पर पहुंचने के लिए तेजी से तरक्की करने का मंच तैयार है। साफ उर्जा से वैश्विक अर्थव्यवस्था का आकार बदल जाएगा। यह बदलाव परिवहन से लेकर उद्योग तथा अन्य क्षेत्रों तक नजर आएगा। जीवाश्म ईंधन से होने वाले उत्सर्जन में गिरावट के नए युग का मतलब यह है कि कोयले से बनने वाली बिजली में चरणबद्ध गिरावट होगी और गैस से बनने वाली बिजली की समाप्ति तो अब नजर आने लगी है। बदलाव बहुत तेजी से हो रहा है हालांकि यह सब कुछ सरकारों, कारोबारों और नागरिकों द्वारा वर्ष 2040 तक साफ ऊर्जा के लिए दुनिया की राह खोलने के लक्ष्य के साथ अब उठाए जाने वाले कदमों पर निर्भर करेगा।”

20222021साल दर साल बदलाव
ऊर्जा मिश्रण में हिस्‍सेदारी, %

(उत्‍पादन, टेरावाट)

उत्‍पादन में परिवर्तन, टेरावाट

(प्रतिशत के रूप में)

सौर4.5%

(1,284 टेरावाट)

3.7%

(1,039 टेरावाट)

+245 टेरावाट

(+24%)

वायु7.6%

(2,160 टेरावाट)

6.6%

(1,848 टेरावाट)

+312 टेरावाट

(+17%)

पनबिजली15%

(4,311 टेरावाट)

15%

(4,238 टेरावाट)

+73 टेरावाट

(+1.7%)

कोयला36%

(10,186 टेरावाट)

36%

(10,078 टेरावाट)

+108 टेरावाट

(+1.1%)

गैस22%

(6,336 टेरावाट)

23%

(6,348 टेरावाट)

-12 टेरावाट

(-0.2%)

परमाणु9.2%

(2,611 टेरावाट)

9.9%

(2,739 टेरावाट)

-129 टेरावाट

(-4.7%)

जैव-ऊर्जा2.4%

(672 टेरावाट)

2.4%

(666 टेरावाट)

+5.5 टेरावाट

(+0.8%)

बिजली की मांग28,510 टेरावाट27,816 टेरावाट+694 टेरावाट

(+2.5%)

19.12