विचार

इस स्टील कंपनी की दोहरी नीति की हो रही है आलोचना

लक्‍जमबर्ग (Luxembourg)  स्थित आर्सेलर मित्‍तल (ArcelorMittal) कम्‍पनी को अगली मई में होने जा रही अपनी वार्षिक सभा में मुश्किल सवालों का सामना करने के लिये तैयार रहना चाहिये।

लक्‍जमबर्ग (Luxembourg)  स्थित आर्सेलर मित्‍तल (ArcelorMittal) कम्‍पनी को अगली मई में होने जा रही अपनी वार्षिक सभा में मुश्किल सवालों का सामना करने के लिये तैयार रहना चाहिये। उसे जवाब देना होगा कि वह जापान की कम्‍पनी निपॉन स्‍टील (एएम/एनएस इंडिया) के साथ मिलकर भारत में स्टील बनने के लिए कोयला आधारित ब्लास्ट फरनेस (blast furnace) क्यों लगा रही है?

आखिर ऐसे में वह वर्ष 2050 तक नेट जीरो (Net Zero) का लक्ष्‍य हासिल करने का इरादा कैसे पूरा करेगी।आईईईएफए की ताजा रिपोर्ट- ग्रीन स्टील फॉर यूरोप (green steel for Europe) , ब्लास्ट फर्नेसेज फॉर इंडिया (Blast Furnaces For India), ऊर्जा वित्त विश्लेषकों साइमन निकोलस और सोरुष बसीरत ने कंपनी की विकास योजनाओं का खाका खींचा है और भारत तथा यूरोप में प्रौद्योगिकी और प्रदूषणकारी तत्वों के उत्सर्जन से संबंधित परस्पर काफी जुदा नजरियों को रेखांकित किया है।

आईईईएफए के प्रमुख स्टील विश्लेषक साइमन निकोलस ने कहा “ऐसा लगता है कि दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी स्टील उत्पादक कंपनी आर्सेलर मित्तल दोहरी रफ्तार वाले डीकार्बनाइजेशन की योजना बना रही है। इसके तहत हाइड्रोजन रेडी और डायरेक्ट रिड्यूस्ड आयरन (डीआरआई) प्रौद्योगिकी को विभिन्न विकसित देशों में काफी बड़े पैमाने पर स्थापित किया जाएगा। वहीं, यह कंपनी दुनिया के दक्षिण में स्थित विकासशील देशों में कोयले से चलने वाले और अधिक ब्लास्ट फर्नेस का निर्माण में लगी है।

आर्सेलर मित्तल ने अक्टूबर 2022 में ओंटारियो, कनाडा में डीआरआई आधारित स्टील के उत्पादन के जरिए 1.3 बिलियन डॉलर के रूपांतरण का आगाज किया था। स्पेन, फ्रांस, बेल्जियम और जर्मनी में भी उसकी ऐसी ही योजनाएं हैं।

एएम/एनएस ने गुजरात के हजीरा में दो नए ब्लास्ट फर्नेस का निर्माण शुरू किया है और वह अपनी क्षमता को 5 मिलियन 10 प्रतिवर्ष के हिसाब से और आगे बढ़ाने की योजना तैयार कर रही है। साथ ही साथ उसकी योजना उड़ीसा के केंद्रपाड़ा (24 मिलियन टन प्रतिवर्ष) और पारादीप (6 मिलियन टन प्रतिवर्ष) में एकीकृत स्टील प्लांट लगाने की भी है।

उड़ीसा में गुपचुप तरीके से स्टील निर्माण प्रौद्योगिकी की बहुत बड़े पैमाने पर योजना तैयार की जा रही है। हजीरा में बन रही 6 मिलियन टन प्रतिवर्ष की क्षमता वाली ब्लास्ट फर्नेस विस्तार परियोजना से होने वाले कार्बन प्रदूषण में प्रति टन उत्पादित इस्पात अयस्क के लगभग दो टन की वृद्धि होगी। अगर इस परियोजना को पूरी रफ्तार से चलाया जाएगा तो लगभग 12 मिलियन टन अतिरिक्त कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन होगा। उड़ीसा में ऐसी परियोजनाओं के और अधिक विस्तार की योजना अगर परवान चढ़ी तो निश्चित रूप से प्रदूषण में और भी वृद्धि होगी।

थिंक टैंक ई3जी और यूएस डिपार्टमेंट ऑफ एनर्जी पेसिफिक नॉर्थवेस्ट नेशनल लैबोरेट्री की वर्ष 2021 की रिपोर्ट में यह पाया गया है कि अगर वैश्विक स्टील सेक्टर को ग्लोबल वार्मिंग में वृद्धि को डेढ़ डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने के लक्ष्य के हिसाब से चलना है तो उसे सीसीयूएस रहित ब्लास्ट फर्नेस को वर्ष 2045 तक चरणबद्ध तरीके से चलन से बाहर करना होगा।

साथ ही साथ वर्ष 2025 के बाद कार्बन कैप्चर यूटिलाइजेशन एंड स्टोरेज सीसीयूएस रहित नए ब्लास्ट फर्नेस के निर्माण से तौबा करनी होगी ताकि संपत्तियों को फंसने से रोका जा सके। एएम/एनएस इंडिया की विस्तार योजनाओं में दो ऐसे नए ब्लास्ट फर्नेस शामिल हैं जो कार्बन कैप्चर यूटिलाइजेशन और स्टोरेज सीसीयूएस रहित हैं और उन्हें वर्ष 2025 और 2026 में ऑनलाइन लाया जाएगा।

आईईईएफए के स्टील एनालिस्ट सोरुष बसीरत ने कहा “दुनिया में कहीं भी ब्लास्ट फर्नेस आधारित स्टील निर्माण के लिए पूर्ण पैमाने पर सीसीयूएस सुविधाएं नहीं हैं। सिर्फ कुछ छोटी पायलट परियोजनाएं चल रही हैं या फिर अभी वे योजना के दौर में ही हैं।”

निकोलस ने कहा “स्टील में बहुत सीमित ट्रैक रिकॉर्ड के अलावा सीसीयूएस का बिजली उत्पादन और गैस उत्पादन जैसे अन्य क्षेत्रों में एक समस्याग्रस्त और निराशाजनक इतिहास रहा है। हमने हाल ही में हाइड्रोजन रेडी डीआरआई प्रौद्योगिकी के चलन में तेजी देखी है जो सीसीयूएस प्रौद्योगिकी को और भी पीछे छोड़ रही है।”

“कोयला आधारित स्टील निर्माण में सीसीयूएस को लेकर कोई बड़ी कामयाबी नहीं मिली है। ऐसे में निवेशकों को ऐसे सवाल पूछने चाहिए जो आर्सेलरमित्तल को भारत में अपना कारोबार बढ़ाने में चुनौती पेश करें। कंपनी द्वारा प्रौद्योगिकी के चयन पर सवाल उठने चाहिए। साथ ही यह भी पूछा जाना चाहिए कि इस ढर्रे पर चलते हुए कंपनी वर्ष 2050 के नेटजीरो उत्सर्जन के लक्ष्य को आखिर कैसे हासिल करेगी।”

आर्सेलरमित्तल के शीर्ष 20 में से लगभग आधे शेयरधारकों ने क्लाइमेट एक्शन 100+ पहल पर हस्ताक्षर किए हैं। इनमें अमुंडी, ब्लैक रॉक, इन्वेस्को, एलायंसबर्नस्टीन, डीडब्ल्यूएस इन्वेस्टमेंट और स्टेट स्ट्रीट ग्लोबल एडवाइजर्स शामिल हैं।

अक्टूबर 2022 के ताजातरीन आकलन के मुताबिक क्लाइमेट एक्शन 100+ ने यह पाया है कि आर्सेलरमित्तल अनेक मामलों में नाकाम नजर आ रहा है। उसके पास ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में कमी लाने का कोई अल्पकालिक लक्ष्य (2025) नहीं है। इसके अलावा इसका मध्यकालीन लक्ष्य (2026-2035) भी ग्लोबल वार्मिंग को डेढ़ डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने के लक्ष्य के अनुरूप नहीं है। इसके अलावा वह अपने पूंजीगत व्यय को डीकार्बनाइज करने में भी नाकाम रही है।

आर्सेलरमितल जैसी अंतरराष्ट्रीय स्टील निर्माता कंपनी भारत के बाजार में कदम जमाने को बेताब है क्योंकि हिंदुस्तान वैश्विक स्तर पर स्टील का बढ़ता हुआ प्रमुख बाजार है। कंपनी ने इसी दशक में अपनी उत्पादन क्षमता को दोगुना करने की योजना बनाई है। यूरोप हाइड्रोजन आधारित नए इस्पात निर्माण संयंत्रों को विकसित कर कोयले पर आधारित स्टील उत्पादन पर अपनी निर्भरता को कम करने की दिशा में पहले ही तेजी से काम कर रहा है। इसमें आर्सेलरमित्तल की योजनाएं भी शामिल हैं।

मगर यदि भारत अपनी अत्यधिक पूर्वानुमानित मांग को पूरा करने के लिए कोयला आधारित इस्पात निर्माण पर निर्भर रहता है तो वैश्विक स्टील सेक्टर के नेटजीरो उत्सर्जन के प्रयास सफल नहीं हो सकेंगे।