विचार

एक और युद्ध

जब ये संगठन मिलकर भी युद्ध न रोक सके तो इन संस्थाओं का आखिर क्या औचित्य है । क्या ये महज खानापूर्ति के लिए हैं । क्या अख़बार के पहले पन्नों पर छपने वाली इन संगठनों की बैठकों की हंसती मुस्कुराती तस्वीरें छलावा हैं जिसमें दुनिया भर के नेता शाँति की बातें करते दिखते हैं । जिनके जिम्मे दुनिया भर में शांति बनाए रखने की जिम्मेदारी है वो खुद टैंक, मिसाइल दागने में मशगूल हैं।

NITENDRA VERMA

बचपन में पढ़ा करते थे कि दुनिया में संयुक्त राष्ट्र, सुरक्षा परिषद, नाटो फलना ढिमका जैसी तमाम संस्थाएं हुआ करती हैं । सदस्य देश, मुख्यालय, स्थापना वर्ष सब रटना पड़ता था। आज पता चला कि बड़े बुजुर्ग सही बता गये हैं। किताबी ज्ञान किताबी ही होता है । असल में इन संस्थाओं जैसी किसी संस्था का कोई अस्तित्व है ही नहीं । कम से कम इस दुनिया में तो नहीं ही।

जब तक यूक्रेन पर हमला नहीं हो गया था तब तक तमाम संस्थाएं और देश उसके साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़े थे। अब हालात अलग हैं। सब को जैसे साँप सूँघ गया है । उधर रूस बम पे बम फोड़े जा रहा है, मिसाइल पे मिसाइल दागे जा रहा है और दुनिया के तमाम संगठन, देश तमाशा देख रहे हैं।

जब ये संगठन मिलकर भी युद्ध न रोक सके तो इन संस्थाओं का आखिर क्या औचित्य है । क्या ये महज खानापूर्ति के लिए हैं । क्या अख़बार के पहले पन्नों पर छपने वाली इन संगठनों की बैठकों की हंसती मुस्कुराती तस्वीरें छलावा हैं जिसमें दुनिया भर के नेता शाँति की बातें करते दिखते हैं । जिनके जिम्मे दुनिया भर में शांति बनाए रखने की जिम्मेदारी है वो खुद टैंक, मिसाइल दागने में मशगूल हैं।

नाटो कह चुका है कि वो यूक्रेन सेना नहीं भेजेगा । जबकि कल तक वो यूक्रेन को अहम साथी बता रहा था । बिडेन के तो सोच के बाहर की बात हो गई । कल तक युद्ध के दिन के साथ सटीक समय तक बता रहे बिडेन को लकवा मार गया है । इधर तमाम देशों ने रूस पर प्रतिबंधों की झड़ी लगा दी है । थोड़ा बहुत दिमाग रखने वाला भी बता देगा कि इससे कुछ होना जाना नहीं है लेकिन रस्मअदायगी भी तो जरूरी है।

युद्ध के पहले मीडिया में तस्वीरें आम थीं कि अमेरिकी हथियार यूक्रेन पहुंचाये जा रहे हैं । आखिर युद्ध के दौरान वो कहाँ हैं? क्या अमेरिकी सहयोग यहीं तक था या बात कुछ और ही है । कहीं ये सब यूक्रेन को ‘हुस्काने’ वाली गहरी चाल तो नहीं । फ़िलहाल कोई देश अगर जमीनी सहयोग करता भी है तो तब तक यूक्रेन यूक्रेन रह भी जायेगा या नहीं इसमें शंका है।

आखिर पुतिन अचानक यूक्रेन से युद्ध की जिद पर क्यों अड़ गए । यूक्रेन पर कब्जे के साथ कहीं सत्ता पर निशाना या फिर अमेरिका को पछाड़कर सुपर पावर बनने की लालसा तो नहीं?

इन सबके बीच हैरानी की बात है कि पीठ चाहे जितनी ठोंक ले भारत सरकार इस बार सही आकलन में चूक गई । यहां से एयर इंडिया की एक ही फ्लाइट जा सकी । इससे पहले दो और तय फ्लाइट जा पातीं युद्ध छिड़ गया । यानी सरकार समय रहते वहां फँसे भारतीयों को निकाल पाने में नाकाम रही।

फ़िलहाल की स्थिति देखते हुए यही उचित है कि उपरोक्त सभी संस्थाओं को तत्काल प्रभाव से भंग कर देना चाहिए। इनके नाम पर जो करोड़ों, अरबों खर्च हो रहे हैं वो तो बचेंगे ही साथ ही लोगों के मन का वहम भी समाप्त होगा।

इतना तो तय है कि सत्ता पर काबिज कुछ सनकी लोगों की सनक मानवता को गहरी खाई में धकेलने के लिए पूरी तल्लीनता और तत्परता से डटी है । और यही उम्मीद की जानी चाहिए कि ये तानाशाह बेरोकटोक अपनी तानाशाही पूरी सनक और हनक के साथ चलाने में कामयाब होंगे।