विचार

उत्तर प्रदेश में प्रश्न जलवायु का!

जब ग्लासगो में प्रधानमंत्री मोदी ने COP 26 के दौरान जलवायु परिवर्तन (Climate Change) के खिलाफ़ वैश्विक जंग के संदर्भ में अंग्रेज़ी के शब्द LIFE के अक्षरों में छिपे एक मंत्र ‘लाइफ़स्टाइल फॉर एनवायरनमेंट’ (Lifestyle for Environment) का उल्लेख किया था, तब वो महज़ उनके चिर-परिचित अंदाज़ वाला शब्दों का खेल नहीं था।

जब ग्लासगो (Glasgow) में प्रधानमंत्री मोदी ने COP 26 के दौरान जलवायु परिवर्तन (Climate Change) के खिलाफ़ वैश्विक जंग के संदर्भ में अंग्रेज़ी के शब्द LIFE के अक्षरों में छिपे एक मंत्र ‘लाइफ़स्टाइल फॉर एनवायरनमेंट’ (Lifestyle for Environment) का उल्लेख किया था, तब वो महज़ उनके चिर-परिचित अंदाज़ वाला शब्दों का खेल नहीं था।

सोचने बैठिए तो पता चलेगा कि आज जो धरती ग्लोबल वार्मिंग (Global Warming) कि आग में धधक रही है और जिसके चलते हमारी जलवायु में परिवर्तन दिख रहे हैं, उसकी असल वजह हमारी जीवनशैली ही है। ऐसी उपभोग-आधारित जीवनशैली जो पर्यावरण के लिए पूर्ण रूप से प्रतिकूल है और जिसे हम पर्यावरण और प्रकृति के दोहन से ऊर्जित कर रही है।

और इसी सब से हो रही है ग्लोबल वार्मिंग और बादल रही है जलवायु। ध्यान रहे, इसके लिए हम अकेले ज़िम्मेदार नहीं। समस्या पूरी दुनिया की है।

दोषी कौन?
घर का कोई सदस्य कुछ बुरा करे तो नतीजा पूरे घर को भुगतना पड़ता है। ऐसा ही कुछ जलवायु परिवर्तन के मामले में भी हुआ है। दुनिया की लगभग सत्रह प्रतिशत जनता अकेले भारत में रहती है। इस लिहाज़ से कहने को तो भारत का कुल कार्बन उत्सर्जन वैश्विक स्तर पर तीसरे नंबर पर आता है, मगर प्रति व्यक्ति कार्बन उत्सर्जन के मालमे में भारत वैश्विक औसत के आधे से भी कम है। जहां वैश्विक प्रति व्यक्ति औसत कार्बन उत्सर्जन 4.8 टन है, वहीं भारत का प्रति व्यक्ति औसत है 1.8 टन।

हम अभी एक विकासशील देश हैं और हमारे देश में अब भी अधिकांश जनता आभावों का जीवन जी रही है और इतना उपभोग नहीं कर रही कि उसका प्रति व्यक्ति कार्बन उत्सर्जन औसत बढ़ जाए। मगर इतनी जनसंख्या है और सबका विकास होना है, इसलिए कार्बन उत्सर्जन तो होगा ही। लेकिन बावजूद इसके हम अपनी ज़िम्मेदारी से मूंह नहीं फेर सकते क्योंकि हम अकेले पूरी पृथ्वी के लगभग 17 प्रतिशत निवासियों का प्रतिनिधित्व करते हैं।

वैश्विक कार्यवाई में भारत का योगदान
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में केन्द्रीय मंत्रिमंडल ने संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन फ्रेमवर्क सम्मलेन (यूएनएफसीसीसी) को सूचना दिए जाने के लिए भारत के राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित जलवायु योगदानों (एनडीसी) को अपडेट करने की पिछले महीने मंजूरी दी।

अपडेटेड एनडीसी के अनुसार, भारत अब 2030 तक 2005 के स्तर से अपने सकल घरेलू उत्पाद की कार्बन उत्सर्जन तीव्रता को 45 प्रतिशत तक कम करने और 2030 तक गैर-जीवाश्म ईंधन-आधारित ऊर्जा संसाधनों से लगभग 50 प्रतिशत संचयी विद्युत शक्ति की स्थापित क्षमता प्राप्त करने के लिए प्रतिबद्ध है। साथ ही, अपडेटेड एनडीसी में, जन भागीदारी से जलवायु परिवर्तन के खिलाफ़ इस जंग को लड़ने के लिए प्रधान मंत्री द्वारा COP 26 में दिये एक शब्द के आंदोलन, LIFE या लाइफ़स्टाइल फॉर एनवायरनमेंट, को भी शामिल किया गया है।

इससे पहले, भारत ने 2 अक्टूबर, 2015 को यूएनएफसीसीसी को अपना जो एनडीसी प्रस्तुत किया था उसमें आठ लक्ष्य शामिल थे; इनमें से तीन, 2030 तक के लिए संख्या आधारित लक्ष्य हैं, जैसे गैर-जीवाश्म स्रोतों से विद्युत उत्पादन की संचयी स्थापित क्षमता को बढ़ाकर 40 प्रतिशत तक पहुंचाना; 2005 के स्तर की तुलना में सकल घरेलू उत्पाद की उत्सर्जन तीव्रता को 33 से 35 प्रतिशत तक कम करना और अतिरिक्त वन व वृक्षों के आवरण के माध्यम से 2.5 से 3 बिलियन टन कार्बन डाईआक्साइड के अतिरिक्त कार्बन सिंक का निर्माण करना।

समाधान और संभावनाएं
जहां प्रधान मंत्री मोदी ने पूरी दुनिया के आगे जलवायु कार्यवाई के क्षेत्र में नेतृत्व लेते हुए महत्वाकांक्षी एनडीसी प्रस्तुत किए हैं, वहीं उनके इस इरादे ने पूरे देश को इस बात पर सोचने पर मजबूर भी किया कि समस्या है तो समाधान भी पास ही होगा। इस मामले में समाधान है कि देश की हर इकाई इस कार्यवाई में योगदान करे। इसके साथ ही, उन्होने यह भी साफ किया कि यह जलवायु कार्यवाई देश के विकास की गाड़ी के पहियों में रोड़ा नहीं बनेगी। अव्वल तो हमारा देश जलवायु परिवर्तन की गति में अपने स्तर से लगाम लगाएगा और साथ ही इसके साथ अपनी जीवन शैली का अनुकूलन करते हुए देश को एक पाँच ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था भी बनाएगा। पूरी दुनिया की नज़र हम पर है, क्योंकि दुनिया के 17 प्रतिशत लोग यहाँ रहते हैं।

प्रश्न जलवायु का, उत्तर प्रदेश में!
जलवायु कार्यवाई के संदर्भ में जिस तर्क से पूरी दुनिया की नज़र भारत पर है, उसी तर्क से राष्ट्रीय स्तर पर नज़र उत्तर प्रदेश पर है। भारत के इस सबसे बड़े प्रदेश में देश की लगभग बीस फीसद जनता रहती है। अगर यहाँ यह लड़ाई जीत ली गयी तो देश को अपने जलवायु लक्ष्यों को हासिल करने से कोई ताकत नहीं रोक सकती।

प्रदेश स्तर की जलवायु कार्यवाई के बारे में बताते हुए, उत्तर प्रदेश के पर्यावरण, वन, एवं जलवायु परिवर्तन विभाग के सचिव, आशीष तिवारी कहते हैं, “इस ग्लोबल लड़ाई में जीत लोकल स्तर पर ही हासिल हो सकती है और हम लोकल स्तर पर ही इससे लड़ रहे हैं।” अपनी बात समझाते हुए वो आगे बताते हैं, “जलवायु परिवर्तन की रफ्तार पर लगाम लगाने के लिए हमें निजी स्तर से इस लड़ाई को लड़ने की शुरुआत करनी पड़ेगी। साथ ही, हमें इसके साथ अपनी जीवनशैली का अनुकूलन भी करना होगा। भारत में आज उत्तर प्रदेश ही ऐसा राज्य है जहां जलवायु परिवर्तन के खिलाफ़ लड़ाई ग्राम पंचायत स्तर पर लड़ी जा रही है। हमने लोकल एक्शन के महत्व को समझते हुए ग्राम पंचायत विकास योजना (जीपीडीपी) में आपदा जोख़िम न्यूनीकरण के साथ जलवायु कार्यवाई का समावेश कराया है।”

ख़ास बातें
यहाँ यह बताना ज़रूरी होगा कि बीती 27 सितंबर को इकोनॉमिक टाइम्स, ग्लोबल सस्टेनेबिलिटी कांग्रेस, 2022 में उत्तर प्रदेश में स्थानीय स्तर पर जलवायु कार्रवाई को बढ़ावा देने के लिए प्रदेश के पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन विभाग को जलवायु कार्यवाई के स्थानीयकरण में उत्कृष्ट योगदान के लिए में सम्मानित किया गया है।

विभाग का प्रतिनिध्त्व करते हुए श्री तिवारी ने यह सम्मान स्वीकार किया। प्रदेश की इस संदर्भ में सक्रियता पर बोलते हुए वो कहते हैं, “भारत में उत्तर प्रदेश ही वो पहला राज्य था जहां देश का पहला राज्य स्तरीय जलवायु परिवर्तन प्राधिकरण बना। इतना ही नहीं, उप राष्ट्रीय स्तर पर भारत में पहली COP या उच्च स्तरीय जलवायु पर केन्द्रित बैठक का आयोजन भी इसी प्रदेश में हुआ। उसके बाद इस लड़ाई में ग्राम पंचायत की भूमिका को समझते हुए यहाँ COP की तर्ज़ पर कॉन्फ्रेंस ऑफ पंचायत का आयोजन किया गया। और आज उत्तर प्रदेश के नौ कृषि जलवायु क्षेत्रों में 58189 ग्राम पंचायतें जलवायु परिवर्तन प्रभावों से निपटने में अपने ग्रामवासियों के साथ स्वयं को तैयार करने की दिशा में तरत्पर हैं।”

साफ़ हवा
वायु गुणवत्ता का सीधा नाता जलवायु परिवर्तन से है। और इस मामले में प्रदेश की स्थिति अमूमन ठीक नहीं रहती थी, लेकिन बीते कुछ समय से इस क्षेत्र में अभूतपूर्व सफलता हासिल हुई है। आशीष तिवारी बताते हैं, “प्रदेश के ग्यारह जिलों में वायु गुणवत्ता में शानदार सुधार पाया गया। परिवहन के क्षेत्र का प्रदूषण में योगदान याद रखते हुए सरकार ने एक बेहद दूरगामी और प्रभावी इलैक्ट्रिक व्हीकिल पॉलिसी तैयार की है जिसके जल्द ही पारित होने की आशा है।”

उन्होने आगे बताया कि प्रदेश सरकार हर वो कोशिश कर रही है जिससे जलवायु कार्यवाई के साथ साथ अर्थव्यवस्था की गाड़ी भी आगे दौड़ती जाये। “आज हमारे प्रदेश के किसान अपनी आय में कार्बन क्रेडिट उत्पादन की मदद से बेहतरीन बढ़त देख रहे हैं। हमारी पूरी कार्यवाई एनडीसी को लक्षित करते हुए ही हो रही है।” ताज़ा आंकड़े बताते हैं कि प्रदेश के वन आछादित क्षेत्र में भी बढ़त हुई है। वन का बढ़ता आकार मतलब प्रदेश में मौजूद कार्बन सिंक का आकार बढ़ना।

‘ऊर्जा’वान टिप्पणी
ऊर्जा क्षेत्र का कार्बन उत्सर्जन और जलवायु परिवर्तन में बड़ा योगदान रहता है। भारी जनसंख्या और औद्योगिक विकास के चलते उत्तर प्रदेश की ऊर्जा मांग भी अच्छी ख़ासी है। इस क्रम में देश कि ऊर्जा व्यवस्था पर ख़ास नज़र बनाए रखने वाले मर्कडोस एनेर्जी मार्केट इंडिया के मेनेजिंग डायरेक्टर, भूषण रस्तोगी, कहते हैं, “मैं पिछले लगभग दो दशकों से इस क्षेत्र में सक्रिय हूँ मगर जिस तरह से जलवायु को लेकर ऊर्जा विभाग में संवेद्नशीलता इधर देखने को मिल रही है वैसी पहले नहीं दिखी।” आगे उत्तर प्रदेश पर विस्तार से बताते हुए वो कहते हैं, “देश की कुल ऊर्जा मांग में यूपी का फिलहाल हिस्सा लगभग 12-13% है। मगर राज्य में उद्योग के अनुकूल माहौल के चलते इसमें बढ़त की संभावना है। ऐसे में इस बात का डर बनता है कि इसी अनुपात में कार्बन उत्सर्जन भी बढ़ेगा। मगर अच्छी बात यह है कि यहाँ रिन्यूबल एनेर्जी की ओर रुझान पिछले छह वर्षों में बढ़ रहा है।

फिलहाल जहां कुल ऊर्जा उत्पादन में रिन्यूबल का योगदान लगभग तीस फ़ीसद है, 2030 तक उसका बढ़ कर 50 फ़ीसद होने की उम्मीद है। इतना ही नहीं, अगले पाँच सालों में रूफ टॉप सोलर को 2000MW तक बढ़ाने के इरादे से प्रदेश में एक महत्वाकांक्षी सोलर पॉलिसी पर काम हो रहा है।” भूषण आगे एक बेहद रोचक आंकड़ा देते हुए कहते हैं, “राज्य की बिजली वितरण कंपनियाँ बिजली उत्पादकों के साथ गहन बात चीत के दौर में हैं। इसका उद्देश्य है एक ऐसी व्यवस्था बनाना जिसमें परंपरागत तापीय ऊर्जा के साथ रिन्यूबल एनेर्जी का बराबर मात्रा में मिश्रित वितरण हो। अगर ऐसा होता है, तो न सिर्फ कार्बन उत्सर्जन में भारी कमी देखने को मिलेगी, बल्कि इससे लगभग 450 करोड़ रुपए की बचत भी संभव है।”

चलते चलते
तमाम कमियों के बावजूद, उत्तर प्रदेश में हो रहे वृहद और सतत प्रयासों के चलते ऐसी उम्मीद है देश के जलवायु लक्ष्यों को हासिल करने में यह प्रदेश निर्णायक भूमिका निभाएगा। इस पर गंभीरता से अपना पक्ष रखते हुए आशीष तिवारी कहते हैं, “हमारी सफलता का राज़ है कि मौजूदा सरकार में एक ऐसा पारिस्थितिकी तंत्र है जो सभी घटकों को सक्षम करते हुए एनडीसी के लक्ष्य हासिल करने के लिए तत्पर है।”

(लेखक एक सोशियो-पॉलिटिकल एनालिस्ट,पत्रकार,और साइंस कम्युनिकेटर के रूप में लगभग दो दशक से सक्रिय हैं।)