विचार

जीवन का अनुशासन ही देगा इस महामारी से मुक्ति

अनमोल कुमार कोरोना (Corona) की तीसरी लहर (Third Wave) जिस तेजी से देश में फैली है, उसने सभी को चकित कर दिया है। कहां तो यह सोचा जा रहा था कि भारत में टीकाकरण (Vaccination) की रिकॉर्ड सफलता के कारण, एक बरस में ही लोगों को डेढ़ सौ करोड़ टीका लग जाने के कारण कोरोना […]

अनमोल कुमार

कोरोना (Corona) की तीसरी लहर (Third Wave) जिस तेजी से देश में फैली है, उसने सभी को चकित कर दिया है। कहां तो यह सोचा जा रहा था कि भारत में टीकाकरण (Vaccination) की रिकॉर्ड सफलता के कारण, एक बरस में ही लोगों को डेढ़ सौ करोड़ टीका लग जाने के कारण कोरोना की तीसरी लहर का मार्ग अवरुद्ध हो जायेगा, लेकिन ऐसा हुआ नहीं।

कोरोना (Corona) की दूसरी लहर का दबाव बीते वर्ष के पूर्वार्द्ध में बहुत कम हो गया था। सोचा जा रहा था कि अब पश्चिमी देशों के विपरीत भारत में कोरोना लहर के तीसरे चरण का संक्रामक, रुग्ण एवं मारक प्रभाव या तो होगा ही नहीं, यदि होगा भी तो बहुत हल्का और विलम्ब के साथ। बीते वर्ष बेशक देश को कुछ खुले महीने मिल गये, जहां टीकाकरण का बोलबाला रहा और संक्रमण की दहला देने वाली खबरें कम होती चली गयीं। देश ने राहत की सांस ली थी। आम लोगों ने तो जैसे महामारी को अलविदा कह दिया।

शारीरिक अंतर और मास्क पहनने को तिलांजलि देकर ये सब लोग आम दिनों की तरह पुनः अपने काम में जुट गये। परिणाम सबके सामने हैं। अपनी जिंदगी को पुनः पटरी पर लाने के लिये, किसान, उद्यमी, निवेशक और कामगार जुटे थे, अब उखड़ते नजर आ रहे हैं।

वैसे पिछले वर्ष के बीतने के साथ ही नये वर्ष के पहले पखवाड़े में न केवल केंद्रीय सरकार और भारतीय रिजर्व बैंक ने पुष्टि की कि देश के सात में से छह उत्पादन घटकों ने वर्ष 2020-21 में कोरोना पूर्व के स्तर को स्पर्श कर लिया। रिजर्व बैंक ने स्वीकार किया कि इस वर्ष देश आर्थिक विकास दर में वृद्धि करके 9.2 प्रतिशत प्राप्त कर लेगा, जबकि इससे पहले यह अनुमान 8.5 प्रतिशत का था।

जहां तक इससे पिछले वर्ष का संबंध है, कोरोना (Corona) की प्रथम लहर के प्रहार और एक पूर्ण बंद व एक अपूर्ण बंद के कारण यही आर्थिक विकास दर गिर कर शून्य से भी नीचे – 7 प्रतिशत पर चली गयी थी। सकल घरेलू उत्पाद भी कोरोना पूर्व साल 2019 की तुलना में बहुत नीचे चला गया था। नतीजा, बेकारी में बेतहाशा वृद्धि हुई जितनी देश ने पिछले पैंतालीस बरस में नहीं देखी थी और महंगाई का स्तर बढ़कर मनमोहन काल तक चला गया। इसी को नियंत्रित करने की घोषणा मोदी सरकार ने अपनी दूसरी शासन पारी में की थी।

इस बीच सरकार की आत्मनिर्भरता प्राप्त करने की घोषणा और वित्त मंत्री द्वारा कुटीर, लघु और मध्यम उद्योगों को प्रोत्साहन की प्रतिबद्धता निवेशकों में उत्साह भर रही थी। तभी तो शेयर मार्केट में जिंदगी की उछाल और विकास दर और सकल घरेलू उत्पाद में पिछली गिरावट को पूरा कर आगे बढ़ जाने की ललक दिखायी देने लगी। नये बरस की शुरुआत में मिले आंकड़े साहस बढ़ा रहे थे कि कृषि और विनिर्माण क्षेत्र ने तरक्की की है, इसी तेवर के कारण देश 9.2 प्रतिशत विकास दर पर पहुंच जायेगा, जो कि भारत के लिए स्वत:स्फूर्त दर है।

लेकिन नये बरस की शुरुआत में कोरोना (Corona) की तीसरी लहर के आगमन का यह अप्रिय कुठाराघात! ओमीक्रोन वायरस (Omicron Virus) के संक्रमण के समाचार कर्नाटक से मिले थे। देखते ही देखते ये समाचार देश के हर राज्य से आने लगे। वहीं इसके साथ दूसरी लहर का डेल्टा प्लस भी तेज होकर अपना संक्रामक प्रभाव दिखाने लगा। तेजी इतनी कि अगर पहली लहर में एक लाख लोगों के संक्रमण का आंकड़ा 149 दिन में पहुंचा था, दूसरी लहर में पचास दिन में और अब मात्र ग्यारह दिन में दोनों वायरसों से संक्रमण का आंकड़ा एक लाख से ऊपर हो गया।

इसकी गिरफ्त में केवल महाराष्ट्र, गुजरात और दिल्ली ही नहीं आये, बल्कि पंजाब और हरियाणा भी इसकी गंभीरता झेलने लगे। पंजाब में तो पांच दिनों में संक्रमण ने तीन गुना हो जाने की तेजी दिखायी।देश के लिए इस महामारी जिसे दोनों वायरसों के संक्रमण के कारण डेल्माक्रोन कहा जा रहा है, की पुनः अग्निपरीक्षा शुरू हो गयी। लेकिन इस अग्निपरीक्षा से न केवल प्रशासन, बल्कि किसानों, निवेशकों और कामगारों को भी सामना करके सफल होकर निकलना है। जो गलतियां पिछले वर्ष के शुरू के महीने में दूसरी लहर में झेलीं, वह इस बार न हों। यह लहर हर स्तर पर अधिक तैयारी और अधिक साहस की अपेक्षा कर रही है।

पहले तो दोनों महामारियों के प्रकोप से उबरकर संवरती हुई अर्थव्यवस्था को बचाना है। पूर्ण और अपूर्ण लॉकडाउन चलती अर्थव्यवस्था को रोक अवरोध और क्षरण का माहौल पैदा कर देते हैं। इसलिए इस बार सम्पूर्ण के आदेशों के स्थान पर परिस्थितियों के अनुरूप स्थानीय बंदिशों के आदेश दिये जायें और स्थिति सुधरते ही उन्हें हटा दिया जाये।कटु सत्यों की अवहेलना ही हमें बार-बार इस मझधार में ले आती है। क्या कारण था कि जबकि पश्चिमी देशों में कोरोना की तीसरी लहर रंग दिखाने लगी थी, हमने अपने देश में इसके संभावित आगमन की उपेक्षा कर के टीकाकरण की गति को धीमा कर दिया।

लोगों ने अपने व्यावहारिक जीवन में सामाजिक अंतर न रखने और चेहरों पर मास्क न पहनने का जीवन फिर से जीना शुरू कर दिया। रिपोर्ट तो यह कहती है कि भारत ने अपने द्वारा निर्मित टीकों का एक हिस्सा जरूरतमंद देशों को देना शुरू कर दिया और टीका लगाने वाली सिरिंजों का उत्पादन भी कम हुआ। चिकित्सा ढांचे का विकास हो। साथ ही दवा मंडियों में पैदा हो जाने वाली जमाखोरी और कालाबाजारी का निराकरण जरूरी है, यह कमी पिछली लहर के समय इस देश के लोगों ने झेली।

सामान्य जिंदगी को ओर लौटने के नाम पर हमेशा प्रशासनिक व्यवस्था और आम आदमी द्वारा पुराने ढर्रे की ओर लौटना क्यों होता है? सामान्य जिंदगी के नाम पर इस अस्वस्थ ललक ने ही आज पूरे देश को महामारी की विकट लहर के तीसरे दौर के समक्ष खड़ा कर दिया है। स्थिति के अनुरूप जिंदगी जीने के ढंग में स्थायी परिवर्तन अर्थात‍ शारीरिक अंतर रखने और मास्क पहनने का अनुशासन ही इस देश के लोगों को इस महामारी से बचा सकता है।

इसी प्रकार, मुसीबत पड़ने पर ही प्रशासन सचेत हो, के स्थान पर अगर सदैव सचेत और ठोस निर्णय लेने की सरकारी तत्परता उपज सके, तो सम्भवतः इन आ धमकने वाले मौत के हरकारों से देश को छुटकारा मिल जाये। अगर कोरोना (Corona) को हराना है और भारत को विजयी बनाना है, तो नियमों का पालन करें और सुरक्षित रहें।