अभी संयुक्त राष्ट्र की 27वीं जलवायु सम्मेलन (climate conference) की चर्चा खत्म ही हुई थी कि उसकी 28वीं बैठक सुर्खियों में है। मगर ये सुर्खियां कम और विवाद ज़्यादा है। दरअसल अबू धाबी नेशनल ऑयल कंपनी (ADNOC) के सीईओ सुल्तान अहमद अल जाबेर को इस साल के अंत में दुबई में होने वाली COP28 वैश्विक जलवायु वार्ता के अध्यक्ष के रूप में नामित किया गया है। अल जाबेर, COP28 के मेजबान, संयुक्त अरब अमीरात के लिए इंडस्ट्री एंड एडवांस्ड टेक्नालजी के मंत्री का पद भी संभालते हैं।
बढ़ती चिंताएँ
इस फैसले से क्लाइमेट अक्टिविस्ट समुदाय में चिंता बढ़ गई . वो तर्क देते हैं कि दुनिया की सबसे बड़ी तेल कंपनियों में से एक के प्रमुख के रूप में अल जाबेर की अध्यक्षता में COP 28 सीधे तौर पर एक तरह का विरोधाभास है. ऐसा कहा जा रहा है कि सुल्तान अहमद अल जाबेर का इस भूमिका में होना फ़ौसिल फ्यूल के उत्पादन और उपयोग को तेजी से कम करने के प्रयासों में राह का रोड़ा बन सकता है।
हालांकि अल जाबेर ने पहले कई बार जलवायु परिवर्तन के खतरों के बारे में चेतावनी दी है और क्लीन एनेर्जी में निवेश करने के लिए संयुक्त अरब अमीरात की योजनाओं की रूपरेखा भी तैयार की है, लेकिन उन्होंने 2030 तक जीवाश्म ईंधन निवेश में $600 बिलियन की वार्षिक वृद्धि की वकालत भी की है और यह भी कहा है कि अब ज़रूरत है ऐसे दृष्टिकोण की जिसमें तेल और गैस उद्योग की प्रासंगिकता भी शामिल हो।
बात मसदर पहल की
दुनिया की सबसे बड़ी तेल कंपनियों में से एक के प्रमुख के रूप में अल जाबेर यूएई के ऊर्जा उद्योग का चेहरा बन गए हैं. यह पहली बार है जब किसी सेवारत तेल कार्यकारी ने सीओपी अध्यक्ष की भूमिका निभाई है।
ADNOC के सीईओ के रूप में उनकी भूमिका के अलावा, अल जाबेर एक मंत्री और यूएई के जलवायु दूत होने के साथ-साथ सरकारी स्वामित्व वाली रिन्यूबल एनेर्जी कंपनी मसदर के अध्यक्ष भी हैं, जिसे उन्होंने स्थापित करने में मदद की. उन्होंने लंबे समय से जलवायु परिवर्तन के खतरों के बारे में चेतावनी दी है, फिर भी उनकी नियुक्ति ने उन क्लाइमेट एक्टिविस्ट के बीच चिंता पैदा कर दी है जो उन्हें अपने उद्योग की भूमिकाओं से अलग होने का कह रहे हैं।
क्लीन एनेर्जी ट्रांज़िशन (Clean Energy Transition)?
क्लीन एनेर्जी ट्रांज़िशन के मामले में सभी तेल समृद्ध खाड़ी देशों में, संयुक्त अरब अमीरात शायद सबसे अच्छी स्थिति में है. मगर क्लाइमेट एक्शन ट्रैकर अभी भी इसके प्रयासों को “हाइली इंसाफ़िशिएंट” के रूप में रेट करता है. सरकार के पास “2050 तक नेटजीरो” का इरादा ज़रूर है मगर इनकी अपनी 2050 ऊर्जा योजना 44% रिन्यूबल, 38% गैस, 12% “क्लीन कोल” और 6% न्यूक्लियर एनेर्जी के एनेर्जी मिक्स की बात करती है।
यूएई सरकार ने की 2030 तक क्लाइमेट एक्शन से जुड़ी अपनी बहुचर्चित मसदर पहल और सौर निवेश की काफी चर्चा की है लेकिन यूएस ईआईए ने कहा है कि रिन्यूबल एनेर्जी यूएई के एनेर्जी मिक्स के एक छोटे से अंश के लिए ही जिम्मेदार है. उदाहरण के लिए, अगस्त 2022 में, अल जाबेर ने दावा किया कि ADNOC द्वारा खपत की जाने वाली सभी बिजली ज़ीरो-कार्बन न्यूक्लियर और सोलर एनेर्जी से आती है. हालांकि, दिसंबर 2021 में ADNOC की घोषणा में कहा गया था कि एनेर्जी जेनेरेशन यूनिट्स का निर्माण 2022 में शुरू होगा और कोमेर्शियल ऑपरेशन 2025 में शुरू होगा. इतना ही नहीं, इसके संचालन के लिए जो गैस जलाई जाती थी, उसे अब बेचा जा रहा है, जिसके परिणामस्वरूप एमिशन स्कोप 1 से स्कोप 3 में बादल रहे हैं।
इनकी हाल की ऊर्जा घोषणाओं कि बात करें तो इनमें कोयले से चलने वाले निर्माणाधीन संयंत्र को गैस में चलाने की योजना शामिल है. साथ ही अमेरिकी सरकार के साथ कार्बन कैप्चर तकनीक में निवेश करने और इसके रिन्यूबल क्षेत्र को विकसित करने के लिए $100 बिलियन का सौदा भी शामिल है. इसके साथ जर्मनी के साथ एक हरित हाइड्रोजन साझेदारी और मिस्र में $11 बिलियन की ओनशोर विंड फार्म शामिल हैं।
वाजिब चिंताएं
COP28 के अध्यक्ष के पद पर एक तेल कंपनी के मुखिया को देख इस बात कि चिंता वाजिब है कि उनकी यह भूमिका और प्रष्ठभूमि एक विरोधाभास बनाते हैं जिससे ग्लोबल क्लाइमेट एक्शन कि दशा और दिशा पर नकारात्मक असर पद सकता है. आलोचकों का तर्क है कि मिस्र में आयोजित COP27 सम्मेलन में जिस तरह से संयुक्त अरब अमीरात के तेल और गैस क्षेत्र से 70 लोग आए थे उसके चलते वह COP बस एक “शानदार फोसिल फ्यूल ट्रेड शो ” से ज़्यादा कुछ नहीं रही. COP 27 के लिए पंजीकरण कराने वालों के विश्लेषण से पता चलता है कि पिछली बैठकों की तुलना में तेल और गैस उद्योग से जुड़े लोगों में यहाँ उल्लेखनीय वृद्धि हुई।
बिगड़ती भू-राजनीति, बढ़ते जलवायु नुकसान और शर्म अल शेख में COP27 शिखर सम्मेलन के एक भयावह अंत को देखते हुए, 2023 एक चुनौतीपूर्ण वर्ष होने वाला है. ऐसे में अल जाबेर की भूमिका की बारीकी से जांच की जाएगी, क्योंकि यह पहली बार है जब किसी सेवारत तेल कार्यकारी ने संयुक्त राष्ट्र जलवायु शिखर सम्मेलन में शीर्ष भूमिका ग्रहण की है।
बात में दम है
क्लाइमेट एक्टिविस्ट समुदाय का तर्क है कि COP28 अध्यक्ष के रूप में कार्य करते हुए अल जाबेर को ADNOC के सीईओ के रूप में अपनी भूमिका से हटना चाहिए, क्योंकि यह स्पष्ट रूप से एक कौनफ्लिक्ट औफ़ इंटरेस्ट है. उनका मानना है कि तेल उद्योग से इतनी गहराई से जुड़ा कोई व्यक्ति जीवाश्म ईंधन के उत्पादन और उपयोग में तेजी से कमी के लिए दबाव नहीं डाल सकता।
अपनी प्रतिक्रिया देते हुए क्लाइमेट एक्शन इंटरनेशनल की तस्नीम एस्सोप कहती हैं, “दुनिया के लिए इस बात की तसल्ली ज़रूरी है कि COP28 के अध्यक्ष सुल्तान अहमद अल जाबेर अबू धाबी नेशनल ऑयल कंपनी के सीईओ के रूप में अपनी भूमिका से हट जाएंगे. COP अध्यक्ष का पद किसी ऐसे इंसान के पास नहीं होना चाहिए जो ऐसे उद्योग से जुड़ा हो जो जलवायु संकट के लिए जिम्मेदार है।”
आगे, टफ्ट्स युनिवेर्सिटी के फ्लेचर स्कूल की डीन रेचेल काइट कहती हैं “आने वाले COP अध्यक्ष के लिए दुविधा की स्थिति होगी. ऐसा इसलिए क्योंकि COP को निष्पक्ष दिखने की जरूरत है. उसके अध्यक्ष का एक तटस्थ सूत्रधार के रूप में दिखाई देना बेहद ज़रूरी है. यह जरूरी है कि जाबेर यह सुनिश्चित करने के लिए कदम उठाएं कि इस दुविधा की स्थिति से वो बाहर आयें।”
इसी क्रम में 2010 से 2016 के बीच संयुक्त राष्ट्र की जलवायु प्रमुख क्रिस्टियाना फिगरेस याद दिलाती हैं कि “अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (आईईए) पूरी तरह से स्पष्ट है कि किसी भी नए तेल, गैस या कोयले निवेश के लिए दुनिया में जगह नहीं है. COP28 को न केवल खुद को इस वास्तविकता के साथ सामने आना चाहिए, बल्कि वास्तव में ग्लोबल डीकरबनाइज़ेशन में तेजी लाने कि भूमिका में दिखना चाहिए।
दूसरा पहलू
COP28 के अध्यक्ष के रूप में अल जाबेर की नियुक्ति का अगर विरोध हुआ तो समर्थन भी मिल रहा है. संयुक्त राष्ट्र के पूर्व जलवायु प्रमुख यवो डी बोअर ने घरेलू और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर रिन्यूबल एनेर्जी में अपनी ठोस ग्रीन ग्रोथ स्ट्रेटेजी और महत्वपूर्ण निवेश के लिए यूएई की प्रशंसा की. उन्होंने कहा कि अल जाबेर का अनुभव और इन मुद्दों की समझ COP28 को महत्वाकांक्षी, इन्नोवेटिव और फ्यूचर पर केंद्रित बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी।
चलते चलते
जहां एक ओर ये कहा जा सकता है कि एक तेल कंपनी के प्रमुख के रूप में सुल्तान जाबेर को COP 28 का अध्यक्ष बनाना एक तरह कि सिंबोलिज़्म हैं, लेकिन सच्चाई शायद यही है कि उनका इस भूमिका में होना एक कौनफ्लिक्ट ऑफ इंटरेस्ट है. जो आदमी साल के 355 दिन तेल और गैस बेचने कि वकालत करता हो, वो दस दिनों में उसे न बेचने की बात करता समझ नहीं आता. कुछ तो गड़बड़ है दया।