Modi 3.0: लोकसभा चुनाव परिणाम भारतीय जनता पार्टी के लिए एक चेतावनी है। मतदाताओं ने इस बार बीजेपी को सिर्फ चेतावनी देकर छोड़ दिया है। लेकिन, अगर इस पर भी शीर्ष नेतृत्व नहीं चेतता है और पार्टी तथा सरकार की कार्यशैली में बदलाव नहीं आता है तो अगली बार भाजपा को विपक्ष में बैठने के लिए तैयार रहना चाहिए।
मोहन भागवत ने दी सुधरने की नसीहत
आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने भी सार्वजनिक रूप से मोदी सरकार के कामकाज और व्यवहार से अप्रसन्नता व्यक्त कर उसे सुधरने की नसीहत दी है। हर काम का श्रेय प्रधानमंत्री मोदी द्वारा खुद लेने को भी उन्होंने अच्छा नहीं माना है। मणिपुर में एक साल से जारी हिंसा पर केंद्र की उदासीनता पर भी संघ प्रमुख ने केंद्र सरकार को आड़े हाथ लिया है।
क्यों नहीं मिला जनता का अपेक्षित समर्थन?
बेशक मोदी सरकार ने अनेक ऐतिहासिक काम किये जो आजादी के तुरंत बाद होने चाहिए थे। देश की आर्थिक स्थिति सुधरी है। विश्व में देश की प्रतिष्ठा बढ़ी है। भ्रष्टाचार मुक्त सरकार दी है। आतंकी कार्रवाई और नक्सली हिंसा पर करीब-करीब काबू पा लिया गया है। योग्य व्यक्तियों के चयन से पद्म का ‘सम्मान’ बढ़ा है। हर घर शौचालय और स्वच्छता के प्रति जागरूकता की दिशा में सराहनीय कार्य हुए है। मोदी सरकार में और भी कई अच्छे काम हुए हैं। लेकिन, इसके बाद भी जनता ने इस सरकार को अपेक्षित समर्थन क्यों नहीं दिया, यह गहन चिंतन का विषय है।
पीएम मोदी का कम मतों से जीतना विचारणीय
खुद प्रधानमंत्री मोदी की काशी से एक लाख 52 हज़ार वोटों से जीत यह दर्शाती है कि वहां के वोटर भी उनसे खुश नहीं हैं। काशी के लिए इतना काम करने के बाद भी मोदी के वोट क्यों घटे? इस पर खुद मोदी जी को विचार करना चाहिए।
अयोध्या में भाजपा की हार
अयोध्या की हार भाजपा के मुंह पर एक बड़ा तमाचा है। कहां चूक हुई? वहां के मतदाताओं ने पार्टी से क्यों मुंह फेर लिया है? ‘जो राम को लाए हैं, हम उनको लाएंगे’ का नारा क्यों हवा में उड़ गया? ‘मेरा बूथ सबसे मजबूत’ और ‘पन्ना प्रमुख’ की परिकल्पना क्यों नाकाम रही? पार्टी को इस पर विचार करना पड़ेगा।
पार्टी के अंदर गुटबाजी
अच्छा काम और मजबूत नेता की छवि के बाद भी यूपी में भाजपा के औंधे मुंह गिरने के पीछे क्या पार्टी के अंदर की गुटबाजी जिम्मेवार है? पता नहीं इसमें कितनी सच्चाई है लेकिन यह चर्चा आम है कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के बढ़ते कद को छोटा करने के लिए साजिश के तहत कमजोर और बदनाम उम्मीदवार दिए गए? अगर ऐसा हुआ है तो फिर भाजपा का पतन तय है। यह भी लांछन लग रहा है कि भाजपा का कांग्रेसीकरण होता जा रहा है। इसमें कितनी सच्चाई है इसका पता शीर्ष नेतृत्व को लगाना पड़ेगा।
भाजपा नेताओं की आत्ममुग्धता घातक सिद्ध हुई
का केंद्रीकरण और उसके नेताओं की आत्ममुग्धता उसके लिए घातक सिद्ध हुई। मोदी ने अपने मंत्रियों को उभरने नहीं दिया। हर जगह वे ही वे नजर आए। मंत्रियों की हैसियत सहयोगियों की नहीं सहायक की कर दी गई थी। इस ओर संघ प्रमुख ने भी इशारा किया है।
मोदी एकछत्र नेता
हालांकि यह भी सही है कि हमारा देश व्यक्ति पूजक है, समाज पूजक नहीं। इस वजह से मोदी का एकछत्र नेता के रूप में खुद को स्थापित करना भाजपा के लिए लाभदायक भी रहा। व्यक्ति पूजा के कारण ही नेहरू वंश इतने वर्षों तक सत्ता पर एकाधिकार बनाए रखने में सफल रहा। मोदी ने उसी के अस्त्र से उसे धराशाई किया, लेकिन वह अस्त्र भोथरा साबित हो रहा है।
मोदी ने लांघी मर्यादाएं
अपने भाषणों में अन्य नेताओं की तरह कई बार मोदी ने भी मर्यादाएं लांघी, जिसे लोगों ने पसंद नहीं किया। यह याद रखना होगा की अपने ऊटपटांग भाषणों के चलते ही राहुल गांधी को ‘पप्पू’ की संज्ञा से विभूषित किया गया था और उनके भाषणों के मीम बनते रहे हैं। प्रधानमंत्री समेत भाजपा के अनेक नेता भी कई बार वही गलती करते दिखे, जो पार्टी के लिए घातक सिद्ध हो सकता है।
बेरोजगारी से निराश युवा वर्ग
बेरोजगारी, प्रतियोगी परीक्षाओं के प्रश्नपत्र लीक होना और अग्निवीर योजना से युवा वर्ग मोदी सरकार से उदासीन नजर आता है। वोटिंग के दौरान वह घर बैठा रहा और वोट देने निकला ही नहीं।
मध्यम वर्ग के प्रति उदासीन भाजपा सरकार
वेतनभोगी मध्यम वर्ग की तरफ भाजपा सरकार ने कोई ध्यान नहीं दिया। इससे यह वर्ग भी मुंह फुलाए हुए है। इस पर तुरंत ध्यान देने की जरूरत है।
छोटे-मझोले व्यापारियों का धंधा चौपट
भाजपा को व्यापारियों की पार्टी कहा जाता है, मगर इनके शासनकाल में छोटे-मझौले व्यापारियों के धंधे चौपट हो गए है, जिसका खामियाजा पार्टी को चुनावों में उठाना पड़ा है। यह एक ऐसा विषय है जिस पर अगर मोदी सरकार ने ध्यान नहीं दिया तो पतन निश्चित है।
विपक्ष के दुश्प्रचार की नहीं कर पाई काट
भाजपा विपक्ष के संविधान बदलने और आरक्षण खत्म करने के प्रचार का प्रभावी काट नहीं कर पाई। इससे भी उसे क्षति उठानी पड़ी।
देश को मजबूत और राष्ट्रवादी सोच वाली सरकार की जरूरत
पंडित जवाहरलाल नेहरू के लगातार तीन बार प्रधानमंत्री बनने के रिकार्ड की बराबरी तो नरेंद्र मोदी ने कर ली, अगर उससे आगे निकलना है तो फीलगुड से बाहर निकलकर अपने अंदर झांकना होगा। कमजोर कड़ी की पहचान कर उसे सुदृढ़ करने की जरूरत है। संघ से अपने संबंधों को और प्रगाढ़ बनाना होगा। तभी भाजपा अपनी बढ़त बनाए रख सकती है। देश को अभी मजबूत और राष्ट्रवादी सोच वाली सरकार की जरूरत है। इसलिए भाजपा को कुछ और कड़े फैसले लेने होंगे।
क्या भाजपा इसके लिए तैयार है?