देश की सार्वजनिक स्वास्थ्य, कृषि, और अन्य सामाजिक-आर्थिक और सांस्कृतिक प्रणालियों पर बोझ डालते हुए भारत में फिलहाल हीटवेव अपनी आवृत्ति, तीव्रता, और घातकता में बढ़ रही हैं।
पीएलओएस क्लाइमेट में प्रकाशित, कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के रमित देबनाथ और उनके सहयोगियों द्वारा किए एक अध्ययन से पता चलता है कि जलवायु परिवर्तन (Climate Change) की वजह से गंभीर होती यह हीट वेव (Heatwave) भारत के ससटेनेबल डेव्लपमेंट गोल्स (Sustainable Development Goals) को हासिल करने की दिशा में भारत की प्रगति को बाधित कर सकती हैं।
भारत सत्रह संयुक्त राष्ट्र सतत विकास लक्ष्यों (SDG) को प्राप्त करने के लिए प्रतिबद्ध है, जिसमें गरीबी उन्मूलन, अच्छा स्वास्थ्य और कल्याण, बेहतर जलवायु, और आर्थिक विकास आदि शामिल हैं। वर्तमान जलवायु भेद्यता आकलन पूरी तरह सक्षम नहीं हैं ये बताने में कि कैसे जलवायु परिवर्तन से जुड़ी हीटवेव SDG प्रगति को प्रभावित कर सकती हैं। इसके दृष्टिगत भारत की जलवायु भेद्यता का विश्लेषण करने, और जलवायु परिवर्तन SDG प्रगति को कैसे प्रभावित कर सकता है, इसके लिए इन शोधकर्ताओं ने भारत के ताप सूचकांक (HI) के जलवायु भेद्यता सूचकांक (CVI) के साथ सामाजिक आर्थिक, आजीविका के लिए विभिन्न संकेतकों, और और बायोफिजिकल कारक का उपयोग करते हुए एक समग्र सूचकांक का विश्लेषणात्मक मूल्यांकन किया। उन्होंने स्थिति की गंभीरता को वर्गीकृत करने के लिए भारत सरकार के राष्ट्रीय डेटा और एनालिटिक्स प्लेटफ़ॉर्म से राज्य-स्तरीय जलवायु भेद्यता संकेतकों पर सार्वजनिक रूप से उपलब्ध डेटासेट का उपयोग किया। शोधकर्ताओं ने फिर 20 वर्षों (2001-2021) में एसडीजी में भारत की प्रगति की तुलना 2001-2021 से चरम मौसम संबंधी मृत्यु दर के साथ की।
शोधकर्ताओं ने पाया कि हीटवेव ने एसडीजी प्रगति को पहले के अनुमान से अधिक कमजोर कर दिया है और वर्तमान मूल्यांकन मेट्रिक्स जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के लिए भारत की कमजोरियों की बारीकियों को पर्याप्त रूप से पकड़ नहीं सकते हैं। उदाहरण के लिए, HI के आकलन में, अध्ययन से पता चलता है कि देश का लगभग 90% भाग हीटवेव के प्रभाव से खतरे के क्षेत्र में है। CVI के अनुसार, देश का लगभग 20% भाग जलवायु परिवर्तन के प्रति अत्यधिक संवेदनशील है। इसी तरह के प्रभाव राष्ट्रीय राजधानी के लिए देखे गए थे, जहां HI के अनुमान से पता चलता है कि लगभग पूरी दिल्ली गंभीर गर्मी की लहरों के प्रभाव से खतरे में है, जो जलवायु परिवर्तन के लिए इसकी हालिया राज्य कार्य योजना में परिलक्षित नहीं होता है।
हालाँकि, इस अध्ययन की लेखकों के अनुसार, “इस अध्ययन से पता चलता है कि गर्मी की लहरें सीवीआई के पहले के अनुमान की तुलना में अधिक भारतीय राज्यों को जलवायु परिवर्तन के प्रति संवेदनशील बनाती हैं। भारत और भारतीय उपमहाद्वीप में गर्मी की लहरें बार-बार और लंबे समय तक चलने वाली हो जाती हैं, यह सही समय है कि जलवायु विशेषज्ञ और नीति निर्माता देश की जलवायु भेद्यता का आकलन करने के लिए मेट्रिक्स का पुनर्मूल्यांकन करें। यह अंतर्राष्ट्रीय सहयोग और साझेदारी के माध्यम से समग्र भेद्यता उपाय विकसित करने की ज़रूरत को सामने रखता है।”
लेखक आगे कहते हैं, “भारत में गर्मी की लहरें अधिक तीव्र हो रही हैं, जिससे देश के 80% लोग खतरे में हैं, जो कि इसके वर्तमान जलवायु भेद्यता मूल्यांकन में बेहिसाब है। यदि इस प्रभाव को तुरंत दूर नहीं किया गया, तो भारत सतत विकास लक्ष्यों की दिशा में अपनी प्रगति को धीमा कर सकता है।”