विचार

वायु प्रदूषण से निपटने के लिए अंतर्राष्ट्रीय फंडिंग में भारत, नेपाल की उपेक्षा: रिपोर्ट

एक नई रिपोर्ट से पता चलता है कि जहां एक ओर भारत और नेपाल में दुनिया भर में वायु प्रदूषण (Air Pollution) के सबसे खराब प्रदूषण से जूझ रहे हैं, वहीं इन देशों की इस समस्या से निपटने में मदद करने के लिए उन्हें अंतरराष्ट्रीय दानदाताओं से बेहद कम आर्थिक सहयोग मिलता है।

एक नई रिपोर्ट से पता चलता है कि जहां एक ओर भारत और नेपाल में दुनिया भर में वायु प्रदूषण (Air Pollution) के सबसे खराब प्रदूषण से जूझ रहे हैं, वहीं इन देशों की इस समस्या से निपटने में मदद करने के लिए उन्हें अंतरराष्ट्रीय दानदाताओं से बेहद कम आर्थिक सहयोग मिलता है।

दिल्ली की शुमार दुनिया के कुछ सबसे प्रदूषित शहरों में होती है, लेकिन साल 2017 और 2021 के बीच, भारत को, दुनिया भर में वायु प्रदूषण से निपटने के लिए दी गई फंडिंग के 1% से भी कम मिला. और नेपाल को तो लगभग न के बराबर मिला।

यह रिपोर्ट – स्टेट ऑफ ग्लोबल एयर क्वालिटी फंडिंग 2023 – यूके स्थित क्लियर एयर फंड द्वारा क्लाइमेट पॉलिसी इनिशिएटिव के साथ साझेदारी में प्रकाशित की गई है. इससे पता चलता है कि भारत और नेपाल को साल 2015 और 2021 के बीच वायु प्रदूषण से निपटने के लिए इंटरनेशनल डेवलपमेंट फंडर्स द्वारा दिये गए 17.3 बिलियन अमेरिकी डॉलर में से 1 प्रतिशत से भी कम मिला है. वहीं कुल फंडिंग राशि का 86 प्रतिशत पाँच देशों को मिला. यह पांच देश हैं चीन, फिलीपींस, बांग्लादेश, मंगोलिया, और पाकिस्तान।

इस रिपोर्ट में वायु गुणवत्ता में सुधार के लिए काम करने वाली वैश्विक परियोजनाओं के लिए साल 2015 और 2021 के बीच इंटरनेशनल डेवलपमेंट फंडर्स से मिले वित्त पोषण का विश्लेषण किया गया है. इन फंडर्स में मल्टीलेट्रल डेवलपमेंट बैंक, बाइलेट्रल डेवलपमेंट एजेन्सीस और सरकारें शामिल हैं जो निम्न और मध्यम आय वाले देशों को रियायती और गैर-रियायती ऋण के साथ-साथ अनुदान के रूप में फंडिंग प्रदान करती हैं।

रिपोर्ट से यह भी पता चलता है कि इस दिशा में इंटरनेशनल डेवलपमेंट फंड का केवल 1 प्रतिशत ($17.3 बिलियन) और अंतर्राष्ट्रीय सार्वजनिक जलवायु वित्त का 2 प्रतिशत वायु प्रदूषण से निपटने के लिए प्रतिबद्ध था।

रिपोर्ट में साफ तौर पर कहा गया है कि इंटरनेशनल डेव्लपमेंट फंडर्स द्वारा दी गई आउटडोर एयर क्वालिटी फ़ंड का 86 प्रतिशत, या 12 बिलियन अमेरिकी डॉलर, केवल पांच देशों में केंद्रित था: चीन (37 प्रतिशत), फिलीपींस (20 प्रतिशत), बांग्लादेश (17 प्रतिशत), मंगोलिया (6 प्रतिशत) ) और पाकिस्तान (6 प्रतिशत)।

साथ ही इसमें यह भी साफ कहा गया है कि “एक अध्ययन के अनुसार, विश्व स्तर पर सबसे अधिक जनसंख्या-भारित वार्षिक औसत PM2.5 जोखिम वाले शीर्ष दो देश भारत और नेपाल हैं, हालांकि, इन देशों में से प्रत्येक को कुल फंडिंग का 1 प्रतिशत से भी कम प्राप्त हुआ।”

रिपोर्ट में दावा किया गया है कि इन मुट्ठी भर एशियाई देशों में आउटडोर एयर क्वालिटी बेहतर करने के लिए फंडिंग की वजह है एशियाई विकास बैंक (ADB) की अपनी प्राथमिकताएं. दरअसल जापान इंटरनेशनल कोऑपरेशन एजेंसी (JICA); और एशियन इंफ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट बैंक (AIIB) अपने भौगोलिक क्षेत्र में अपने निवेश पर ध्यान केंद्रित करते हैं. इस वजह से हाल के पांच वर्षों में कुल आउटडोर वायु गुणवत्ता फंडिंग का 81 प्रतिशत इनके द्वारा प्रदान किया गया है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि लैटिन अमेरिका और कैरेबियन जैसे क्षेत्रों को काफी कम फंडिंग मिलती है, जो इसी अवधि के दौरान कुल का केवल 1 प्रतिशत है।

रिपोर्ट के अनुसार अफ्रीकी देशों को आउटडोर वायु गुणवत्ता फंडिंग में केवल 0.76 बिलियन अमेरिकी डॉलर या कुल का 5 प्रतिशत प्राप्त हुआ, जबकि इस महाद्वीप में सबसे अधिक जनसंख्या-भारित वार्षिक औसत PM2.5 एक्सपोज़र वाले शीर्ष 10 देशों में से पांच देश हैं।

इस रिपोर्ट की प्रस्तावना लिखते हुए विश्व स्वास्थ्य संगठन (2019-2022) की पूर्व मुख्य वैज्ञानिक सौम्या स्वामीनाथन कहती हैं कि यह रिपोर्ट इस बात पर प्रकाश डालती है कि कुल इंटरनेशनल डेवलपमेंट फंडिंग में आउटडोर एयर क्वालिटी में सुधार के लिए केवल 1 प्रतिशत है जो कि बेहद कम है। वो आगे लिखती हैं कि, “क्लीन एयर फ़ंड ने उस बात पर प्रकाश डाला है जिस पर ध्यान देने की ज़रूरत है। इसकी मदद से विश्व बैंक जैसे बहुपक्षीय विकास संस्थानों सहित इंटरनेशनल डेव्लपमेंट फंडर्स स्वच्छ हवा को एक वास्तविकता बनाने कि दिशा में काम कर सकते हैं।

आउटडोर एयर पॉल्यूशन, जिसे एंबिएंट एयर पॉल्यूशन के रूप में भी जाना जाता है, पृथ्वी के वायुमंडल में हानिकारक पदार्थों और प्रदूषकों की उपस्थिति को बताता करता है। यह प्रदूषण मुख्य रूप से औद्योगिक प्रक्रियाओं, परिवहन, और ऊर्जा उत्पादन जैसी मानवीय गतिविधियों से उत्पन्न होता है।

ये प्रदूषक – जिसमें कण पदार्थ या पार्टीकुलेट मैटर, नाइट्रोजन डाइऑक्साइड और सल्फर डाइऑक्साइड, ओजोन, कार्बन मोनोऑक्साइड और वाष्पशील कार्बनिक यौगिक जैसी गैसें शामिल हैं – मानव स्वास्थ्य, पारिस्थितिक तंत्र और पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकते हैं, जिससे विभिन्न श्वसन, हृदय और पर्यावरणीय समस्याएं पैदा हो सकती हैं।