विचार

वैश्विक पवन ऊर्जा का केंद्र बनने की ओर अग्रसर है भारत

भारत ने वैश्विक पवन ऊर्जा निर्यात केंद्र (Global Wind Energy Export Center) बनने की दिशा में कदम बढ़ा दिए हैं।

जहां एक ओर सरकार हवाओं की बढ़ती गर्मी पर लगाम लगाने के लिए तमाम सकारात्मक पहल कर रही है, वहीं उन्हीं हवाओं से ऊर्जा (wind energy) बनाने के मामले में भारत सरकार की दृढ़ता भी साफ दिख रही है।

दरअसल प्रमुख उद्योग संगठनों की एक नई रिपोर्ट के अनुसार, भारत ने वैश्विक पवन ऊर्जा निर्यात केंद्र (Global Wind Energy Export Center) बनने की दिशा में कदम बढ़ा दिए हैं।

ग्लोबल विंड एनर्जी काउंसिल (Global Wind Energy Council) और MEC+ द्वारा जारी की गयी एक ताज़ा रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत अगले पांच वर्षों के भीतर 21.7 गीगावाट तक नई पवन ऊर्जा क्षमता स्थापित कर सकता है. इससे साल 2027 तक भारत की कुल पवन ऊर्जा क्षमता 63.6 गीगावॉट तक बढ़ जाएगी।

जीडब्ल्यूईसी इंडिया के चेयरपर्सन सुमंत सिन्हा कहते हैं, “भारत रणनीतिक रूप से वैश्विक स्तर पर पवन ऊर्जा प्रौद्योगिकी का एक प्रमुख निर्यातक बनने की स्थिति में है. सही नीतियों और बड़े पैमाने पर निवेश के साथ, भारत पवन ऊर्जा केंद्र बन सकता है।”

रिपोर्ट में विंड टरबाइन कोम्पोनेंट्स (wind turbine components) के लिए भारत के बड़े पैमाने पर कम उपयोग किए गए विनिर्माण बुनियादी ढांचे पर भी प्रकाश डाला गया है. यह जानना रोचक है कि चार राज्यों में मौजूदा सुविधाएं सालाना 11.5 गीगावॉट मूल्य के इन कोम्पोनेंट्स का उत्पादन कर सकती हैं।

इस बीच, वैश्विक पवन ऊर्जा प्रतिष्ठान पिछले साल के 69 गीगावॉट से बढ़कर 2027 में 122 गीगावॉट तक पहुंचने के लिए तैयार हैं. यह भारत के लिए निर्यात बढ़ाने और एक महत्वपूर्ण सप्लायर बनने का एक बड़ा अवसर प्रस्तुत करता है।

भारत में पहले से ही वैश्विक ब्लेड उत्पादन का 11% और टावरों और गियरबॉक्स का 7-12% हिस्सा है। चूंकि अमेरिका और यूरोपीय संघ जैसे प्रमुख बाजार चीन से परे भी सप्लाई चेंस का रुख करना चाह रहे हैं, इसलिए भारत एक आकर्षक सप्लायर बनता दिख सकता है।

लेकिन भारत को अपनी निर्यात महत्वाकांक्षाओं को साकार करने में चुनौतियों का भी सामना करना पड़ता है. प्रमुख चीनी सप्लायर्स की तुलना में लागत को और अधिक प्रतिस्पर्धी बनाने की आवश्यकता है, और विनिर्माण क्षमताओं को घरेलू बाजार के लिए बनाई गई छोटी टर्बाइनों से आगे बढ़ाने की आवश्यकता होगी।

सिन्हा ने आगे बताया, “स्थानीय विनिर्माण के लिए आगामी नीतियों और प्रोत्साहनों के साथ, भारत इन बाधाओं को दूर कर सकता है।”

रिपोर्ट में घरेलू मांग को प्रोत्साहित करने, लागत कम करने और निर्यात को प्रोत्साहित करने के लिए मजबूत नीतिगत उपायों के बारे में भी कहा गया है।

सिन्हा ने कहा, “अगर उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन जैसी नीतियां लागू की जाती हैं, तो भारत पवन ऊर्जा में सबको पीछे छोड़ सकता है।”

क्या बनाता है भारत को विंड एनेर्जी में खास?
भारत के पास पहले से ही चार राज्यों में 11.5 गीगावॉट नैसेल (एक तरह का कंटेनर जिसके अंदर विंड टर्बाइन का गियर बॉक्स वगैरह पैक होता है) विनिर्माण क्षमता मौजूद है. घरेलू मांग में कमी के कारण वर्तमान में इस मौजूदा बुनियादी ढांचे का कम उपयोग हो रहा है, जिससे निर्यात के लिए अवसर मिल रहा है।

वैश्विक स्तर पर विंड एनेर्जी सेटअप में अचानक वृद्धि, 2022 के 69 गीगावॉट से 2027 में अनुमानित 122 गीगावॉट तक, के चलते दुनिया भर इससे जुड़े निर्माण में तेज़ी की आवश्यकता होगी. भारत के लिए यह एक बढ़िया मौका होगा।

वैश्विक आपूर्ति में क्रमशः 11%, 7% और 12% कि हिस्सेदरी के साथ भारत ब्लेड, टावर, और गियरबॉक्स जैसे कौम्पोनेंट्स के मामले में बढ़िया स्थिति में है।

वैश्विक पवन कंपनियां चीन से परे सप्लाई चेंस बनाने पर विचार कर रही हैं. ऐसी जगह जहां वर्तमान में अधिकांश कौम्पोनेंट्स का उत्पादन किया जाता है. इस लिहाज से भारत एक रणनीतिक विकल्प प्रदान करता है।

भारत के लिए प्रमुख चुनौतियां
घरेलू पवन बाज़ार की मौजूदा स्तर से महत्वपूर्ण वृद्धि महत्वपूर्ण है, क्योंकि निर्माता स्थानीय मांग के बिना केवल निर्यात के लिए निवेश करने की संभावना नहीं रखते हैं।

लागत-प्रतिस्पर्धा में सुधार होना चाहिए. मौजूदा भारतीय पवन टर्बाइनों की कीमत चीनी मॉडलों से 30-60% अधिक है. भारत के लिए कच्चे माल, घटकों और करों/शुल्कों से संबंधित लागत कम करना महत्वपूर्ण है।

भारतीय बाजार के लिए निर्मित 2-3.6 मेगावाट टर्बाइनों से आगे अब उत्पाद के आकार और तकनीकी क्षमताओं का विस्तार होना चाहिए।

कुल मिलकर यह कहा जा सकता है कि सही नीतिगत माहौल और बड़े पैमाने पर निवेश के साथ, भारत खुद को पवन प्रौद्योगिकी के एक प्रमुख वैश्विक आपूर्तिकर्ता के रूप में स्थापित कर सकता है।