सभी देश और वहाँ की स्वास्थ्य प्रणालियाँ COVID-19 महामारी के सामाजिक और आर्थिक प्रभावों से उबर ही रही थीं कि ठीक तब ही रूस और यूक्रेन के संघर्ष ने एक वैश्विक ऊर्जा संकट खड़ा कर दिया। और इस सब के साथ जलवायु परिवर्तन (Climate change) बेरोकटोक अपनी गति से बढ़ता चला जा रहा है।
द लैंसेट काउंटडाउन ऑन हेल्थ एंड क्लाइमेट चेंज की 2022 की रिपोर्ट कि मानें तो जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता इन संकटों के स्वास्थ्य प्रभावों को और बढ़ा रही है।
इस रिपोर्ट पर प्रतिक्रिया देते हुए यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन में लैंसेट काउंटडाउन की कार्यकारी निदेशक डॉ मरीना रोमानेलो कहती हैं, “इस साल की हमारी रिपोर्ट से पता चलता है कि हम एक महत्वपूर्ण मोड़ पर हैं। हम देख रहे हैं कि जीवाश्म ईंधन (fossil fuel) पर दुनिया की निर्भरता तमाम स्वास्थ्य संकटों को बढ़ा रहा है।”
यह सातवीं लैंसेट काउंटडाउन रिपोर्ट विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) और विश्व मौसम विज्ञान संगठन (WMO) सहित 51 संस्थानों के 99 विशेषज्ञों के काम का नतीजा है और इसका नेतृत्व यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन ने किया है। COP27 से ठीक पहले प्रकाशित इस रिपोर्ट में 43 संकेतक पेश किए गए हैं जो इस पूरी परिस्थिति के नए और बेहतर आयाम दिखाती है।
“चुनौतियों के बावजूद, इस बात के स्पष्ट प्रमाण हैं कि स्वच्छ ऊर्जा और ऊर्जा दक्षता के क्षेत्र में तत्काल कार्रवाई अभी भी लाखों लोगों की जान बचा सकती है। दुनिया भर की सरकारों और कंपनियों के पास इन संकटों के पास सही फैसले ले कर दुनिया को एक स्वस्थ और सुरक्षित भविष्य देने का अवसर है,” डॉ रोमानेलो कहती हैं।
कई स्वास्थ्य संकटों के प्रभावों को बढ़ा रहा है जलवायु परिवर्तन
जीवाश्म ईंधन पर लगातार बढ़ती निर्भरता जलवायु परिवर्तन की गति को बढ़ा रही है। इससे दुनिया भर के लोगों द्वारा खतरनाक स्वास्थ्य प्रभावों को महसूस किया जा रहा है। आंकड़े बताते हैं कि कोई भी देश सुरक्षित नहीं है। जलवायु परिवर्तन से चरम मौसम की घटनाओं की संभावना और गंभीरता बढ़ जाती है। हीटवेव, भारी वर्षा, जंगल की आग, तूफान और सूखा से दुनिया भर में हर साल सैकड़ों हजारों लोगों की जान चली जाती है। इस पर प्रोफेसर क्रिस्टी एबी , लैंसेट काउंटडाउन वर्किंग ग्रुप लीड ऑन एडाप्टेशन, कहती हैं, “कहने को हमारी स्वास्थ्य प्रणाली चरम मौसम की घटनाओं के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य प्रभावों और बदलती जलवायु के अन्य प्रभावों से निजात के लिए पहली ढाल है। लेकिन स्वास्थ्य प्रणालियाँ COVID-19 महामारी के बाद तमाम व्यवधानों और चुनौतियों के बोझ से निपटने के लिए पहले ही संघर्ष कर रही हैं। इससे न सिर्फ हमारा आज, बल्कि हमारा भविष्य भी खतरे में आ रहा है।”
आगे, परिवर्तन प्रभाव, जोखिम, और भेद्यता और लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में ग्रांथम रिसर्च इंस्टीट्यूट के निदेशक और लैंसेट काउंटडाउन वर्किंग ग्रुप लीड ऑन क्लाइमेट, प्रोफेसर एलिजाबेथ रॉबिन्सन, कहते हैं, “जलवायु परिवर्तन का पहले से ही खाद्य सुरक्षा पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है। तापमान में और वृद्धि, चरम मौसम की घटनाओं की आवृत्ति और तीव्रता, और कार्बन डाइऑक्साइड सांद्रता , सबसे कमजोर लोगों के लिए पौष्टिक भोजन की उपलब्धता पर अधिक दबाव डालेगी।”
अत्यधिक गर्मी के संपर्क में आने से स्वास्थ्य सीधे तौर पर प्रभावित होता है। इसके चलते लोगों की काम करने और व्यायाम करने की क्षमता सीमित होती है और उससे परोक्ष रूप से स्वास्थ्य भी प्रभावित होता है।
गर्मी के के कारण 2021 में वैश्विक स्तर पर लगभग श्रम के 470 बिलियन घंटों का नुकसान हुआ, जिससे देशों के सकल घरेलू उत्पाद और लोगों की कमाई में उसी अनुपात का नुकसान हुआ।
बदलते मौसम का असर संक्रामक रोगों के प्रसार पर भी पड़ रहा है। 1951-1960 की तुलना में 2012-2021 में अमेरिका के ऊंचे इलाकों में मलेरिया संचरण के लिए उपयुक्त समय में 32.1% और अफ्रीका में 14.9% की वृद्धि हुई। इसी अवधि में वैश्विक स्तर पर डेंगू संचरण के जोखिम पर जलवायु के प्रभाव में 12% की वृद्धि हुई। COVID-19 महामारी के साथ, जलवायु परिवर्तन के कारण संक्रामक रोग के बढ़ने से गलत निदान, स्वास्थ्य प्रणालियों पर दबाव और एक साथ बीमारी के प्रकोप के प्रबंधन में कठिनाइयाँ पैदा हुई हैं।
ताज़ा संकेतकों से पता चला है कि सरकारें और कंपनियां जलवायु परिवर्तन के गंभीर और जटिल स्वास्थ्य नुकसान के बावजूद जीवाश्म ईंधन को प्राथमिकता देना जारी रखे हुए हैं।
वैश्विक ऊर्जा प्रणाली (वैश्विक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में सबसे बड़ा एकल योगदान देने वाला क्षेत्र) की कार्बन तीव्रता 1992 के स्तर से सिर्फ 1% से कम हुई है। इस दर से ऊर्जा प्रणाली को पूरी तरह से कार्बन मुक्त करने में 150 साल लगेंगे, जो पेरिस समझौते में उल्लिखित ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस पर रखने की आवश्यकताओं से बहुत दूर है।
इस रिपोर्ट में विश्लेषण की गई 86 सरकारों में से 69 सरकारों ने 2019 में जीवाश्म ईंधन के लिए $400 बिलियन की सब्सिडी दी है। ये सब्सिडी 31 देशों में राष्ट्रीय स्वास्थ्य खर्च के 10% से अधिक है और पांच देशों में 100% से अधिक है। साथ ही, सरकारें अब तक कम आय वाले देशों में जलवायु कार्रवाई का समर्थन करने में सहायता के लिए प्रति वर्ष 100 अरब डॉलर की छोटी राशि प्रदान करने में विफल रही हैं।
वैश्विक संकटों को अलग-थलग करके संबोधित नहीं किया जा सकता है, बल्कि सभी के लिए समान समाधान बनाने के लिए एक एकीकृत एकजुट दृष्टिकोण की आवश्यकता है।
आगे, बार्टलेट स्कूल, यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन में पर्यावरण नीति और संसाधनों के प्रोफेसर और अर्थशास्त्र और वित्त पर लैंसेट काउंटडाउन वर्किंग ग्रुप लीड, प्रोफेसर पॉल एकिन्स, कहते हैं, “कई सरकारों और कंपनियों की वर्तमान रणनीतियाँ दुनिया को एक गर्म भविष्य में कैद कर देंगी। यह रणनीतियाँ हमें जीवाश्म ईंधन के उपयोग के लिए बाध्य कर रही हैं और बड़ी तेज़ी से एक रहने योग्य दुनिया के लिए संभावनाओं को कम कर रही हैं।”
अच्छी बात
इस वर्ष की रिपोर्ट के आंकड़ों से आशा और कार्रवाई की दिशा में कुछ संकेत स्पष्ट हैं। हालांकि कुल स्वच्छ ऊर्जा उत्पादन अपर्याप्त है, यह 2020 में रिकॉर्ड उच्च स्तर पर पहुंच गया, और शून्य-कार्बन स्रोतों ने 2021 में बिजली उत्पादन विधियों में 80% निवेश का योगदान दिया। पहली बार, नवीकरणीय ऊर्जा में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रोजगार जीवाश्म में प्रत्यक्ष रोजगार से अधिक हो गया।
साथ ही, जलवायु परिवर्तन के स्वास्थ्य पहलुओं के साथ सार्वजनिक जुड़ाव सर्वकालिक उच्च स्तर पर है। मीडिया में स्वास्थ्य और जलवायु परिवर्तन के कवरेज में 2020 से 2021 में 27% की वृद्धि हुई है और विश्व के नेताओं से जुड़ाव बढ़ा है, 60% देशों ने 2021 में संयुक्त राष्ट्र की आम बहस में जलवायु परिवर्तन और स्वास्थ्य पर ध्यान आकर्षित किया है।
रिपोर्ट प्रकाशन पर प्रतिक्रिया देते हुए, संयुक्त राष्ट्र महासचिव, एंटोनियो गुटेरेस कहते हैं, “जलवायु संकट हमें मार रहा है। यह न केवल हमारे ग्रह के स्वास्थ्य को, बल्कि जहरीले वायु प्रदूषण, घटती खाद्य सुरक्षा, संक्रामक रोग के प्रकोप के उच्च जोखिम, अत्यधिक गर्मी, सूखा, बाढ़ और बहुत कुछ के माध्यम से हर जगह लोगों के स्वास्थ्य को कमजोर कर रहा है।”