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Red Alert: दुनियाभर की सरकारें ‘जलवायु परिवर्तन’ लक्ष्यों को पूरा करने में विफल

संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस की मानें तो पृथ्वी "रेड अलर्ट" पर है। वजह है दुनिया भर की सरकारों का अपने जलवायु परिवर्तन लक्ष्यों को पूरा करने में विफल होना। उन्होंने जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (यूएनएफसीसीसी) की रिपोर्ट के बाद 2021 को "मेक या ब्रेक ईयर" के रूप में वर्णित किया। इस […]

संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस की मानें तो पृथ्वी "रेड अलर्ट" पर है। वजह है दुनिया भर की सरकारों का अपने जलवायु परिवर्तन लक्ष्यों को पूरा करने में विफल होना। उन्होंने जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (यूएनएफसीसीसी) की रिपोर्ट के बाद 2021 को "मेक या ब्रेक ईयर" के रूप में वर्णित किया। इस रिपोर्ट में नवंबर की COP26 जलवायु शिखर सम्मेलन से पहले 75 देशों द्वारा प्रस्तुत अपडेटेड जलवायु कार्रवाई योजनाओं का विश्लेषण किया गया था। इसमें पाया गया कि वर्तमान नीतियां पेरिस समझौते के लक्ष्यों को पूरा करने के करीब नहीं होंगी।

एक बयान में गुटेरेस ने कहा, "यूएनएफसीसीसी की ताज़ा अंतरिम रिपोर्ट हमारे ग्रह के लिए एक रेड अलर्ट है। यह दिखाती है कि सरकारें जलवायु परिवर्तन को 1.5 डिग्री तक सीमित करने और पेरिस समझौते के लक्ष्यों को पूरा करने के लिए आवश्यक महत्वाकांक्षा के स्तर के करीब नहीं हैं।"

साल 2015 के पेरिस जलवायु समझौते के तहत, तमाम देश अपने कार्बन उत्पादन को कम करने और ग्लोबल वार्मिंग को 2 डिग्री सेल्सियस से कम करने के लिए प्रतिबद्ध है – और यदि संभव हो तो, जलवायु परिवर्तन के सबसे बुरे प्रभावों से बचने के लिए सदी के अंत तक – 1.5 डिग्री सेल्सियस से नीचे रखने के लिए भी।

विशेषज्ञों ने बार-बार चेतावनी दी है कि थ्रेशोल्ड से अधिक गर्मी और गर्म ग्रीष्मकाल, समुद्र के स्तर में वृद्धि, बदतर सूखे और बारिश के चरम, जंगल की आग, बाढ़ और लाखों लोगों के लिए भोजन की कमी में योगदान देगा।

जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र के अंतर सरकारी पैनल के अनुसार, जनसंख्या को अपने 2030 CO2 उत्सर्जन को 2010 के स्तर से लगभग 45% कम करना चाहिए और 2050 तक शुद्ध शून्य तक पहुँचना सुनिश्चित करना चाहिए ताकि यह तापमान सीमा लक्ष्य तक पहुँच सके।

बढ़े हुए प्रयासों के बावजूद, यूएनएफसीसीसी को सौंपी गई कार्बन कटौती की योजनायें उतनी सशक्त नहीं जितनी ज़रूरी हैं। इस रिपोर्ट के अनुसार देशों को पेरिस समझौते के तहत अपनी शमन प्रतिबद्धताओं को मजबूत करने की आवश्यकता है।

संशोधित जलवायु कार्य योजना देने वाले देश पेरिस समझौते के कुल हस्ताक्षरकर्ताओं का 40 प्रतिशत ही हैं और ये सब वैश्विक उत्सर्जन में 30 फ़ीसद की हिस्सेदारी करते हैं। रिपोर्ट के मुताबिक़, साल 2030 तक, 2010 के मुक़ाबले, ये देश सिर्फ 0.5 प्रतिशत की कटौती प्रदान कर पाएंगे।

गुटेरेस ने उत्सर्जन को कम करने के प्रयासों को बढ़ाने और कोविड -19 महामारी से उबरने के प्रयासों को अवसर के तौर पर लेने को कहा है।

वो आगे कहते हैं, "परिवर्तन के दशक को शुरू करने के लिए दीर्घकालिक कार्रवाइयों का मिलान तत्काल कार्रवाई से किया जाना चाहिए।"

यूएनएफसीसीसी के कार्यकारी सचिव, पेट्रीसिया एस्पिनोसा ने अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि रिपोर्ट व्यक्तिगत देश की योजनाओं की बस एक "स्नैपशॉट है, न कि एक पूर्ण तस्वीर"।

UNFCCC COP26 से पहले एक दूसरी रिपोर्ट जारी करेगा, और एस्पिनोसा ने सभी शेष उत्सर्जकों को, बेहतर जलवायु की ख़ातिर, इसमें अपना योगदान देने का आग्रह किया।

उन्होंने कहा, "सभी शेष दलों के लिए यह समय है कि वे जो भी करने का वादा करें उसे पूरा करें और जितनी जल्दी हो सके अपने एनडीसी जमा करें। यदि यह कार्य पहले जरूरी था, तो यह अब महत्वपूर्ण बन गया है।"

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