प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व वाली भारत की सरकार ने साल 2021 में पूरी दुनिया को तब चौंका दिया था जब हमारे प्रधानमंत्री ने देश को साल 2070 तक नेट जीरो राष्ट्र (net zero nation) बनाने की योजना का ऐलान कर दिया था।
इस घोषणा का असर कुछ ऐसा हुआ कि अब जलवायु परिवर्तन (Climate Change) के दुष्प्रभावों के जोखिमों से घिरी अर्थव्यवस्थाओं को कर्ज देने के ढांचे में बदलाव कर उन्हें प्राथमिकता देने का एक माहौल तैयार हुआ है।
फिलहाल भारत कि अध्यक्षता में इस साल जी20 समिट (G20 Summit) नई दिल्ली में 9-10 सितंबर को होनी है और एक बार फिर पूरी दुनिया कि नज़र इस बैठक पर है क्योंकि भारतीय अधिकारियों का कहना है कि और मुद्दों के साथ-साथ, जलवायु परिवर्तन का मुद्दा इस बैठक के भारी-भरकम एजेंडा का हिस्सा होगा। इसके चलते, जी20 समिट अध्यक्षता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए ग्लोबल साउथ की आवाज का प्रतिनिधित्व करने वाले एक नेता के तौर पर खुद को स्थापित करने का एक मौका भी है।
लेकिन वैश्विक नीति निर्माण की दशा और दिशा बदलने वाली इस बैठक पर रूस-यूक्रेन के बीच जारी जंग, अमेरिका और चीन के बीच बढ़ती प्रतिद्वंद्विता और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के इस बैठक से परहेज करने के हाल के निर्णय असर डालेगा। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के भरसक प्रयासों के बावजूद चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग और उनके रूसी समकक्ष व्लादिमीर पुतिन की गैर-मौजूदगी से इस समिट की कामयाबी पर शंका के बादल छा गये हैं। ऐसा भी लगता है कि इन देशों के चलते बैठक में कई प्रमुख मुद्दों पर आम सहमति बनने में मुश्किलें आयेंगी। इन मुद्दों में एनेर्जी ट्रांज़िशन, ग्रीन फ़ाइनेंस और ससटेनेबल डेव्लपमेंट गोल्स शामिल हैं। लेकिन भारत सरकार की सोच इस मामले में सकारात्मक है और ऐसे संकेत मिल रहे हैं कि भारत निश्चित तौर पर बैठक की सफलता सुनिश्चित करेगा।
इस बैठक के बाद, साल के अंत में होने वाली कॉप 28 एक महत्वपूर्ण बैठक रहेगी। इसका एजेंडा मुख्य रूप से प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं द्वारा फ़ोसिल फ्यूल के इस्तेमाल को चरणबद्ध तरीके से खत्म करने के लिये एक समझौते को मूर्त रूप देने, रिन्यूबल एनर्जी को तीन गुना करने और एनेर्जी फायनेंस को नये स्तरों तक बढ़ाने पर केन्द्रित है।
इस सब के बीच भारत ने जी20 के अध्यक्ष के रूप में अपनी वैश्विक प्रोफाइल को बेहतर बनाने के लिये मज़बूती से काम किया है और एक वैश्विक नेता के रूप में उभरा है। इसके चलते ऐसा मालूम होता है कि भारत के नेतृत्व में जी20 नेता ऐसी न्यूनतम आम सहमति बना सकेंगे जिससे यह जाहिर हो कि इस समूह में एकता बरकरार है।
एक नज़र जी20 में जलवायु मुद्दों पर:
एनर्जी फ़ाइनेंस (Energy Finance)
लीडर्स समिट में फ़ाइनेंस का मुद्दा हमेशा अहम रहता है। जी20 की बैठक विकासशील देशों को अपने एनर्जी ट्रांज़िशन (Energy Transition) के लिये कई ट्रिलियन डॉलर के निवेश हासिल करने में मदद का एक अच्छा मौका है। जलवायु से जुड़ी कार्रवाई के लिये सालाना निवेश में वर्ष 2030 तक सालाना 2.4 ट्रिलियन डॉलर से ज्यादा की वृद्धि करने की जरूरत है।
जी20 के फाइनेंस डेप्यूटीज ने जोखिम से घिरे देशों पर कर्ज के बोझ के मुद्दे पर विचार के लिये पिछली 5 सितंबर को बैठक की थी। भारत को उम्मीद है कि सीओपी 28 में यह मुद्दा एक अहम बिंदु होगा। निम्न और मध्यम आमदनी वाले देशों को सबसे ज्यादा कर्ज देने वाले चीन के बारे में यह कहा जा रहा है कि वह जोखिम से घिरे देशों की ऋणग्रस्तता के समाधान के लिये एक आम राय बनाने का इच्छुक नहीं है। चीन के बारे में यह भी कहा जा रहा है कि उसने हेयरकट्स का विरोध किया है और वह बहुपक्षीय विकास बैंकों में व्यापक सुधारों की वकालत कर रहा है।
इस बीच, व्हाइट हाउस ने संकेत दिये हैं कि अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन विश्व बैंक की पेशकश लेकर जी20 की बैठक में जाएंगे। लेकिन विश्लेषकों का मानना है कि वित्तपोषण हासिल करने के लिये कांग्रेशनल अप्रूवल मिलना जरूरी होगा, जो अगले साल अमेरिका में होने वाले राष्ट्रपति पद के चुनाव के मद्देनजर एक चुनौती साबित हो सकता है।
वहीं यूरोपीय संघ (EU) अपने शीर्ष नेतृत्व में हाल में आये बदलाव और टिमरमैन के जाने के बावजूद वित्तपोषण के मुद्दे पर कोई ठोस पेशकश करने को लेकर कथित तौर पर दबाव में है। पेट्रोलियम पदार्थों के लिहाज से समृद्ध सऊदी अरब से भी आह्वान किया जा रहा है कि वह सीसीएस पर अनुसंधान एवं विकास करने के बजाय अक्षय ऊर्जा संसाधनों और अनुकूलन गतिविधियों को लेकर विकासशील देशों को और ज्यादा वित्तपोषण दे।
फ़ोसिल फ्यूल फेज़ डाउन (Fossil Fuel phase down)
सऊदी अरब कथित रूप से जीवाश्म ईंधन के इस्तेमाल को चरणबद्ध तरीके से खत्म करने के मामले में पिछड़ गया है। इसी बीच, सदस्य देशों का न्यूनीकरण की परिभाषा को लेकर विवाद करने का सिलसिला जारी है। रिपोर्ट्स के मुताबिक यूरोपीय संघ आगामी कॉप 28 में जीवाश्म ईंधन को चरणबद्ध ढंग से चलन से बाहर करने के समझौते का समर्थन करेगा। चीन के बारे में कहा जा रहा है कि वह जीवाश्म ईंधन के लिए दी जा रही बेजा सब्सिडी को धीरे-धीरे खत्म करने के लिए वर्ष 2009 में हुई जी20 बैठक में व्यक्त किए गए संकल्प के संदर्भ को मिटाने के लिए बातचीत कर रहा है। हाल की एक रिपोर्ट में पाया गया है कि जी20 देशों ने जीवाश्म ईंधन से जुड़ी परियोजनाओं में मदद के लिए सार्वजनिक कोष में 1.4 ट्रिलियन डॉलर दिए हैं। अकेले भारत ने वर्ष 2014 से 2022 के बीच जीवाश्म ईंधन सब्सिडी में 76% की कटौती की है और साफ ऊर्जा के लिए दी जाने वाली मदद में उल्लेखनीय बढ़ोत्तरी की है।
कोयला (Coal)
वार्ताकारों का कहना है कि कोयले का मुद्दा अभी तक हुई बातचीत में लगभग नदारद ही रहा है। ऐसा तब हो रहा है जब जी20 देश दुनिया में कुल सक्रिय कोयला उत्पादन क्षमता में 93% की हिस्सेदारी रखते हैं। वहीं, निर्माणाधीन कोयला उत्पादन क्षमता का 88% हिस्सा भी इन्हीं देशों की झोली में है। कोयले के इस्तेमाल को चरणबद्ध तरीके से खत्म करने और कोयले से चलने वाले नए प्लांट्स को बनाने पर रोक से संबंधित समझौता किए बगैर जी20 देश वैश्विक स्तर पर जलवायु परिवर्तन के असर को कम करने के प्रयासों में मदद नहीं कर सकते।
भारत को जीवाश्म ईंधन के इस्तेमाल को धीरे-धीरे खत्म करने के संकल्प पर जी20 देशों की रजामंदी मिलने की उम्मीद है लेकिन अगर इस बैठक के अंतिम वक्तव्य में यह संकल्प अपनी जगह नहीं बना सका तो कोल फेज डाउन के इरादे पर पानी फिरने का खतरा है। पिछले साल बाली में हुई समिट में भी ऐसी ही आम सहमति बनी थी, मगर वह सिर्फ रस्मी ही साबित हुई।
रिन्यूबल एनर्जी (Renewable Energy)
जर्मनी कॉप28 में एक ऐसे समझौते के लिए समर्थन जुटा रहा है जिसमें रिन्यूबल एनर्जी को तीन गुना करने का लक्ष्य रखा जाएगा। इंडोनेशिया और दक्षिण अफ्रीका समेत अनेक विकासशील देशों ने किसी भी ऐसे लक्ष्य को तय किए जाने पर आपत्ति की है जिसमें इसे हासिल करने के लिए कोई स्पष्ट वित्तीय पैकेज का अभाव हो। विश्लेषण से पता चलता है कि जी20 देश में साल 2022 में पवन और सौर ऊर्जा की संयुक्त हिस्सेदारी 13% हो गई है जो वर्ष 2015 में सिर्फ 5% थी।
चलते चलते
फ़ोसिल फ्यूल के इस्तेमाल को धीरे-धीरे खत्म करने पर विचार के लिए अगर कोई समझौता होता है तो इससे भारत के नेतृत्व को और मजबूती मिल सकती है।
चलते चलते थिंक टैंक स्ट्रैटेजिक पर्सपेक्टिव द्वारा बुधवार को जारी एक रिपोर्ट का ज़िक्र ज़रूरी है। इस रिपोर्ट के मुताबिक भारत में वो ताकत है कि वो एक वैश्विक ग्रीन डेव्लपमेंट समझौते को आगे बढ़ा सकता है। इस समझौते में लाइफस्टाइल फॉर एनवायरमेंट (लाइफ), सर्कुलर अर्थव्यवस्था, ससटेनेबल डेव्लपमेंट गोल्स पर प्रगति में तेजी लाना, एनेर्जी ट्रांज़िशन एवं एनेर्जी सेक्योरिटी के साथ-साथ क्लाइमेट फ़ाइनेंस जैसे मुद्दों को भी शामिल किया जाएगा।
कुल मिलाकर, यह कहना गलत नहीं होगा कि भारत के पास पूरी दुनिया को एक बार फिर अपनी करिश्माई नीति निर्माण शक्ति दिखाने का मौका है और ऐसा लगता है भारत इस मौका का भरपूर फ़ायदा उठा भी लेगा।