विचार

धर्म के नाम पर अपराध और मीडिया की भूमिका

अब समय आ गया है जब मीडिया को अपनी पहचान बनाए रखने के लिए ऐसी खबरों का बहिष्कार करना चाहिए ताकि लोगों के बीच सदभाव कायम हो सके और एक-दूसरे के बीच जो विश्वास खत्म हो गया था फिर से कायम हो सके। मीडिया का रोल (role of media) बहुत ही महत्वपूर्ण है, जो दोनों समुदायों के बीच एक सेतू का काम कर सकती है, जिससे द्वेष की भावना का खात्मा किया जा सके और लोगों में फिर से सदभाव कायम हो सके।

अपराधी किस सोसायटी, किस धर्म में नहीं होते हैं? जो धर्म का नाम लेकर, तो कहीं आपसी रंजिश के नाम पर खून खराबा करते हैं और समाज में नफरत और भय का माहौल बनाते हैं। ऐसा अनुमान है कि देश मे हर घंटे शायद 10 से ज्यादा मर्डर होते है और ज्यादातर में धर्म और सम्प्रदाय के नाम पर किसी का भी सर कलम कर दिया जाता है। आखिर क्यों?

आप सोनी चैनल पर क्राइम पेट्रोल (Crime Petrol) तो देखते ही होंगे। हर रोज किसी न किसी वारदात का नाट्य रूपांतरण दिखाया जाता है, जो असल मे घटित होती है। ऐसे ही एक और क्राइम शो (Crime show) आप देखते ही होंगे जिसमे एंकर चिल्ला के बोलता है ’’चैन से सोना है तो जाग जाओ’’, उसमें भी सोसाइटी में रोज़ हो रही वारदातों को दिखाया जाता है।

हाल मे एक ऐसे ही वारदात उदयपुर मे अंजाम दी गई, जहां मुस्लिम समुदाय के दो लोगो ने एक टेलर जिसका नाम कन्हैया था उसको बुरी तरह से चाकुओं से गोदकर मार डाला और फिर अपनी शेखी बघारते हुए वीडियो बनाकर फक्र से जुर्म को कबूल भी कर लिया। उन्होंने ये वारदात धर्म की आड़़ मे अंजाम दी।

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हाल ही मे चर्चा मे आई नूपुर शर्मा जिसने मुस्लिम समाज के पैंगम्बर हूज़ूर मोहम्मद साहब के बारे मे अभद्र टिप्पणी की थी, कन्हैया कुमार के बेटे ने उसके समर्थन मे कन्हैया के फेसबुक पर पोस्ट डाल दी थी जिसको लेकर इन दो युवकों ने उसका सर कलम कर दिया।

एक ऐसी ही वारदात कुछ साल पहले एक बैंगलुरू मे हुईं थी, जहां शंभूनाथ नाम के एक आदमी ने एक मुस्लिम मज़दूर को धोखे से काम के बहाने ले जाकर जंगल के पास चाकू मारा और जला डाला और इस घटना का लाईव वीडियो बनाकर सोशल मीडिया पर वायरल कर दिया। उसका कहना था कि ये सब लोग लव जिहाद करते हैं, इसलिए इन्हें ऐसे ही जला देना चाहिए।

एक ही एक घटना में पिछले महीने राजधानी दिल्ली मे निहंग सिखों ने ज़ोमेटो डिलीवरी करने आये एक युवक काी चाकू गोदकर हत्या कर दी। उसका कसूर सिर्फ इतना था कि उसने गुरूद्वारे के पास खड़े होकर सिगरेट पी थी।

एक खबर दिल्ली यूनिवर्सिटी के नज़दीक तिमारपुर इलाके मे कुछ साल पहले घटी जहां कुछ नाईजीरिया के लोगों ने एक रिक्शे वाले को पैसे लेने के बहने ऊपर घर मे बुलाया और उसका मर्डर कर उसके हाथ-पैर काट दिए।

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ये सभी अपराध धर्म के नाम पर, गुस्से मे, आदतन या सनक के चलते अंजाम दिए गए लेकिन नेशनल मीडिया और देशभर में एक या दो खबरों को ही हाईलाइट किया गया, जिस अपराध में धार्मिक एंगल शामिल था। मीडिया ने एक विशेष समुदाय से जुड़े मुद्दे को बहुत ज़ोर-शोर से उठाया लेकिन बाकी खबरें आई और चले गई। किसी एक आदमी के अपराध के लिए पूरी कौम पर सवालिया निशान लगाना क्या सही है?

उपरोक्त बताई गई घटनायें सभी जघन्य अपराध की श्रेणी में है और अलग-अलग धर्म के मानने वालों ने अपने धर्म की आड़़ में ये सब किया। इस तरह के किए गए अपराध का समर्थन उनके धर्म के बाकी लोग हरगिज़ नही करते बल्कि बाकी लोग साफ़ कहते हैं कि उन्हें फांसी दो क्योंकि लोग ये अधर्मी लोग हैं।

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इस तरह से किए गए अपराध का धर्म से कोई दूर-दूर तक कनेक्शन नहीं है। बल्कि हर धर्म में मानवता को सर्वपति बताया गया है। किसी भी धर्म में मरने-मारने के बारे में नहीं कहा जाता है। हालांकि समाज के कुछ प्रतिष्ठित व्यक्ति लोगों की भावनाओं को भड़काने का काम करते हैं और इस तरह के कृत्य को अंजाम देते हैं।

मीडिया की भूमिका पर सवाल (Question mark on role of media)

मीडिया इन खबरों को अपनी टीआरपी बढ़ाने के लिए और मसालेदार बनाती है, जिससे दोनों समुदायों के बीच की खाई और गहराती जा रही है। लोग अब मीडिया की नियत पर शक करने लगे हैं, जो किसी एक विशेष समुदाय के लोगों को टारगेट कर रही है।

अब समय आ गया है जब मीडिया को अपनी पहचान बनाए रखने के लिए ऐसी खबरों का बहिष्कार करना चाहिए ताकि लोगों के बीच सदभाव कायम हो सके और एक-दूसरे के बीच जो विश्वास खत्म हो गया था फिर से कायम हो सके। मीडिया का रोल (role of media) बहुत ही महत्वपूर्ण है, जो दोनों समुदायों के बीच एक सेतू का काम कर सकती है, जिससे द्वेष की भावना का खात्मा किया जा सके और लोगों में फिर से सदभाव कायम हो सके।

भारत में जिस गंगा-जमुनी तहजीब की बात की जाती है उसे कायम रखने के लिए मीडिया का प्रयास एक सराहनीय कदम हो सकता है।

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