नई दिल्ली: केरल हाईकोर्ट ने एक मामले की सुनवाई के दौरान कहा कि आजकल की युवा पीढ़ी का विचार है कि विवाह एक ऐसी बुराई है जिसे बिना किसी जिम्मेदारी या दायित्वों के बिना जीवन का आनंद लेने के लिए टाला जा सकता है।
दरअसल वो ‘वाइफ इन्वेस्टमेंट फॉर एवर’ की पुरानी अवधारणा को बदलकर ‘वाइफ’ शब्द को ‘एवर इनवाइटेड फॉर एवर’ समझने लगे हैं।
साथ ही केरल हाईकोर्ट ने कहा कि ‘यूज एंड थ्रो’ कल्चर ने हमारे वैवाहिक रिश्तों पर भी गहरा असर डाला है। वहीं लिव-इन-रिलेशनशिप के मामले बढ़ रहे हैं और कपल बड़ी संख्या में अलग हो रहे हैं।
दरअसल इससे पहले भी साल 2021 में केरल हाईकोर्ट ने एक पुरुष के साथ वैध विवाह के अलावा लिव-इन रिलेशनशिप में रह रही दूसरी महिला के मामले में कहा है था कि लिव-इन रिलेशनशिप में रही एक महिला का कानूनी दावा कभी विवाहित पत्नी से बेहतर दावा नहीं हो सकता है। केरल हाईकोर्ट ने कहा कि लिव-इन को कभी भी वैवाहिक रिश्ता नहीं माना जा सकता है।
वहीं इस 14 जून महीने में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि अगर लंबे समय तक आदमी और औरत साथ-साथ रह रहे हों तो इसे शादी की अवधारणा मानी जाएगी। यानी सालों साल अगर कपल पति-पत्नी की तरह रह रहा हो तो यह माना जाएगा कि दोनों शादीशुदा हैं। ऐसे मामले में शादीशुदा जिंदगी को नकारने वाले पर जिम्मेदारी होगी कि वो साबित करे कि शादी नहीं हुई है। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में यह भी कहा था कि कपल अगर लंबे समय तक साथ रहते हैं तो उनके नाजायज संतान भी उनके फैमिली की संपत्ति में हिस्से का हकदार है।