राष्ट्रीय

उज्ज्वला योजना का सच: 67 फीसद घरों में गैस का इस्तेमाल नहीं

रिपोर्ट की ज्यादा लागत जिम्मेदार

नई दिल्ली: अगर वर्ष 2070 तक अगर देश को नेट जीरो यानी कार्बन उत्सर्जन को पूरी तरह से खत्म करना है तो इसके लिए रसोई घरों से निकलने वाले प्रदूषण पर काबू पाना ही होगा। केंद्र सरकार ने देश के हर रसोई घर की हवा साफ-सुथरी करने के लिए मई, 2016 से उज्ज्वला योजना (Ujjwala Yojana) को शुरू किया था। लेकिन सरकारी रिपोर्ट ही बताती है कि यह पूरी तरह अपना लक्ष्य हासिल नहीं कर सका है।

गैस सिलेंडर की ज्यादा लागत से यह हाल
रिपोर्ट के मुताबिक, ग्रामीण क्षेत्र के 80 फीसद घरों को एलपीजी कनेक्शन मिल गया है, इसके बावजूद 67 फीसद घरों में लकडी, उपलों व दूसरे स्त्रोतों से खाना पकाया जा रहा है। यह बात पेट्रोलियम व प्राकृतिक गैस मंत्रालय की तरफ से ऊर्जा उपभोग में बदलाव पर सलाहकार समिति ने अपनी रिपोर्ट में कही है। रिपोर्ट ने इस बात की भी पड़ताल की है कि क्यों लोग एलपीजी कनेक्शन होने के बावजूद गैस पर खाना नहीं पकाते। मोटे तौर पर इसके लिए गैस सिलेंडर की ज्यादा लागत को जिम्मेदार ठहराया गया है।

बता दें कि उज्जवला के तहत गैस कनेक्शन देने के समय कोई राशि नहीं देनी पड़ती लेकिन इसकी लागत उन्हें मासिक किस्त में नकदी में चुकाना होता है। बाद में इन्हें सिलेंडर और कनेक्शन की किस्त की राशि अदा करनी पड़ती है। सनद रहे कि उज्जवला योजना के तहत अभी तक कुल 9.5 करोड़ घरों को एलपीजी कनेक्शन दिया गया है।

रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि भारत में अमूमन हर गैस कनेक्शन धारक 6.7 सिलेंडर सालाना इस्तेमाल करता है। ग्रामीण क्षेत्र में यह संख्या औसतन 6.2 है। लेकिन जिन घरों मे अभी भी दूसरे ईंधन (लकड़ी, उपले आदि) इस्तेमाल हो रहे हैं वहां सिर्फ सालाना 4.1 सिलेंडर ही औसतन इस्तेमाल हो रहे हैं।

बिजली चूल्हों को बढ़ावा
रिपोर्ट के अनुसार जिन घरों से धुआं निकलता है वह प्रतिघर सालाना औसतन 32-36 किलोग्राम कार्बन उत्सर्जन होता है। रिपोर्ट में कहा गया है कि नेट जीरो को हासिल करने के लिए बिजली से चलने वाले चूल्हों के इस्तेमाल को बढ़ावा देना होगा।