नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि बरी किए जाने के आदेश में बेवजह हस्तक्षेप नहीं किया जाना चाहिए। इसके साथ ही पत्नी के साथ क्रूरता के एक मामले में पति को दोषमुक्त किए जाने के आदेश को कोर्ट ने बहाल रखा। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अपीलीय अदालत को इस तरह के आदेश को रद्द करने से पहले, बरी किए जाने संबंधी सभी तर्कों पर विचार करना चाहिए।
जस्टिस उदय उमेश ललित और जस्टिस एस. आर. भट की पीठ ने मद्रास हाई कोर्ट के मार्च 2019 के उस फैसले को निरस्त कर दिया, जिसमें भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 498-ए के तहत कथित अपराध के लिए व्यक्ति को दोषी ठहराने के आदेश को बहाल कर दिया था। पीठ ने कहा कि अपील के फैसले में कोई कारण नहीं बताया गया है कि आईपीसी की धारा 498-ए के तहत दर्ज बरी करने के आदेश को रद्द करने की आवश्यकता क्यों थी।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह एक स्थापित कानून है कि बरी किये जाने के आदेश में अकारण हस्तक्षेप नहीं किया जाना चाहिए और बरी करने से पहले अपीलीय अदालत को हर उस कारण पर विचार करना चाहिए, जिसे बरी करने के लिए दर्ज किया गया था। पीठ ने कहा कि रिकॉर्ड पर विचार करते हुए हमें ऐसे बरी करने के आदेश को चुनौती देने वाली किसी अपील की सुनवाई का कोई कारण नहीं नजर आता।