नई दिल्ली: वाराणसी के ज्ञानवापी मस्जिद (Gyanvapi Masjid) के सर्वे को लेकर अर्जी दाखिल करने वाली पांचों महिलाओं ने अब सुप्रीम कोर्ट में बड़ा दावा किया है। उनकी ओर से सुप्रीम कोर्ट में दिए गए जवाब में कहा गया है कि ज्ञानवापी मस्जिद की पूरी जमीन काशी विश्वनाथ मंदिर (Kashi Vishwanath Temple) की है। अपने दावे के समर्थन में उन्होंने ब्रिटिश राज (British Period) के वक्त एक ट्रायल कोर्ट के फैसले का भी जिक्र किया है।
1936 में ट्रायल कोर्ट ने मुस्लिम पक्ष की एक अर्जी पर ज्ञानवापी मस्जिद की जमीन को वक्फ की संपत्ति मानने से इनकार कर दिया था। हिंदू पक्ष के वकील विष्णु शंकर जैन ने एफिडेविट दाखिल कर कहा कि ब्रिटिश सरकार के दौर में अदालत ने सही फैसला दिया था कि यह जमीन मंदिर की है।
कोर्ट ने इसके पक्ष में तर्क देते हुए कहा था कि ज्ञानवापी मस्जिद के वक्फ संपत्ति होने का प्रमाण कभी नहीं मिलता है। इसलिए मुस्लिम कभी इसके मस्जिद होने का दावा नहीं कर सकते।
टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक इस एफिडेविट में कहा गया है कि इतिहासकारों ने इस बात की पुष्टि की है कि मुगल शासक औरंगजेब द्वारा 9 अप्रैल, 1669 को जारी एक फरमान में आदि विश्वेश्वर मंदिर को गिराने की बात कही गई थी। लेकिन ऐसा कोई भी रिकॉर्ड नहीं पाया जाता है, जिसमें औरंगजेब या उसके बाद के किसी और शासक ने उसे वक्फ संपत्ति घोषित किया हो। या फिर उस संपत्ति को मुस्लिमों या किसी मुस्लिम संस्था को सौंपा हो।
सैकड़ों साल से पढ़ी जा रही नमाज: मुस्लिम पक्ष
अपने तर्क में हिंदू पक्ष ने कहा है कि किसी भी मस्जिद का निर्माण उसी जमीन पर हो सकता है जो वक्फ से ताल्लुक रखती हो। किसी भी मुस्लिम शासक के आदेश पर मंदिर के स्थान पर बनी मस्जिद को वैध नहीं माना जा सकता।
वहीं मस्जिद मैनेजमेंट कमिटी ने वरिष्ठ वकील हुजेफा अहमदी के जरिए यह दावा किया है कि ज्ञानवापी में सैकड़ों साल से नमाज पढ़ी जा रही है और लोग वजू कर रहे हैं। इसके साथ ही उसने वजूखाने तक लोगों को जाने देने की इजाजत मांगी है, जिसे कथित तौर पर शिवलिंग पाए जाने के बाद सील किए जाने का आदेश दिया गया है।
हिंदू पक्ष ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि मंदिर की जमीन पर बनी कोई भी इमारत सिर्फ ढांचा ही हो सकती है, उसे मस्जिद नहीं कहा जा सकता। भगवान आदि विश्वेश्वर उस भूमि पर आज भी मालिकाना हक रखते हैं। यह जमीन किसी भी मुस्लिम, मुस्लिम संस्था अथवा वक्फ बोर्ड से ताल्लुक नहीं रखती है।
यदि अदालत में हिंदू पक्ष के इस तर्क को स्वीकार किया जाता है तो यह उसके लिए एक बड़ी बढ़त के तौर पर होगा। बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने 19 जुलाई की अपनी सुनवाई में सर्वे पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था।