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सुप्रीम कोर्ट ने तय किए जमानत दिए जाने के मानक

नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने आपराधिक मामलों में अभियुक्तों को जमानत (bail) देने के लिए मानक (standards) तय कर दिए हैं और देश की सभी हाईकोर्ट को निर्देश दिया है कि वे इनका कड़ाई से पालन करें। किसी मामले में बेल देने के समय तय मानकों पर विचार किया गया है या […]

नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने आपराधिक मामलों में अभियुक्तों को जमानत (bail) देने के लिए मानक (standards) तय कर दिए हैं और देश की सभी हाईकोर्ट को निर्देश दिया है कि वे इनका कड़ाई से पालन करें। किसी मामले में बेल देने के समय तय मानकों पर विचार किया गया है या नहीं इसे विस्तृत रूप से आदेश में लिखें। आदेश में सिर्फ यह लिखना की रिकार्ड का अवलोकन किया गया और केस के तथ्यों और परिस्थितियों को देखते हुए जमानत दी जा रही है, यह पर्याप्त नहीं होगा।

सुप्रीम कोर्ट द्वारा तय मानकों में प्रमुख अभियुक्त का रसूखदार, पोजीशन और साधन संपन्न होना भी है, जो जमानत के लिए अयोग्यता बताई गई हैं। शीर्ष अदालत ने सोमवार को लखीमपुर मामले में केंद्रीय गृह राज्य मंत्री टेनी के पुत्र आशीष मिश्रा की जमानत इसी आधार पर रद्द की थी।

सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस एनवी रमना की अध्यक्षता वाली तीन जजों की पीठ ने यह आदेश राजस्थान के मामले में दिया है, जिसमें एक हिस्ट्रीशीटर कठोर अपराधी और रेप के आरोपी को नियमित जमानत दे दी गई थी। कोर्ट ने इस मामले में नाराजगी जताते हुए जमानत को निरस्त कर उसके बेल बांड रद्द कर दिए और उसे एक हफ़्ते के अंदर समर्पण करने का आदेश दिया है।
सुपर कोर्ट ने कहा कि हम देख रहे हैं कि हाईकोर्ट सीआरपीसी की धारा 439 के तहत दायर बेल याचिकाओं पर बिना विस्तृत कारणों के गंभीर और संगीन अपराधों में भी अपराधियों को नियमित जमानतें दे रहे हैं, जो ठीक नहीं है।

पीठ ने कहा कि बिहार लीगल सपोर्ट सोसायटी (1986), अमरमणि त्रिपाठी (2005), प्रशांता सरकार (2010) और नीरा यादव (2014) जैसे केसों में यह व्यवस्था दी गई थी कि जमानत का आदेश विस्तृत कारणों के साथ दिया जाए। कोर्ट ने कहा कि इन मानकों को एक बार फिर से दोहराया जा रहा है जिनका पालन करना जरूरी है।

तय मानक
*क्या इस बात पर विश्वास करने के प्रथम दृष्टया या तार्किक आधार हैं कि अभियुक्त ने अपराध किया है।
*आरोप की गंभीरता और प्रकृति (संगीन और महिला और बच्चों के प्रति किए गए अपराध) क्या है।
*दंडित होने की स्थिति में दंड की तीव्रता/ कठोरता (7 साल से ज्यादा की सजा वाले अपराध) क्या होगी।
*जमानत दिए जाने की स्थिति में अभियुक्त के भागने की आशंका तो नहीं।
*अभियुक्त का चरित्र, व्यवहार, साधन संपन्न, समाज में पोजीशन और रसूख की स्थिति।
*जमानत पर रिहा होने पर अपराध के दोबारा घटित होने की आशंका।
*गवाहों को प्रभावित कर सकने की तार्किक आशंका।
*जमानत मिलने पर न्याय की प्रक्रिया को बाधित करने का खतरा।