नई दिल्ली: चुनाव से पहले मुफ्त योजनाओं का वादा यानी ‘रेवड़ी कल्चर’ को सुप्रीम कोर्ट ने एक गंभीर मुद्दा बताया है। कोर्ट ने इसपर नियंत्रण करने के लिए केंद्र से कदम उठाने को कहा है। चीफ जस्टिस एनवी रमना, जस्टिस कृष्ण मुरारी और हिमा कोहली की बेंच ने केंद्र से कहा है कि इस समस्या का हल निकालने के लिए वित्त आयोग की सलाह का भी इस्तेमाल किया जा सकता है।
राजनीति से इसे नियंत्रित करना बेहद मुश्किल : सिब्बल की राय
सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश ने वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल से भी इस मामले में राय मांगी। वह किसी और मामले की सुनवाई के लिए कोर्ट में मौजूद थे। चीफ जस्टिस ने कहा कि मिस्टर सिब्बल यहां मौजूद हैं और वह एक वरिष्ठ संसद सदस्य भी हैं। आपका इस मामले में क्या विचार है?
सिब्बल ने कहा कि यह बहुत ही गंभीर मामला है लेकिन राजनीति से इसे नियंत्रित करना बहुत मुश्किल है। जब वित्त आयोग राज्यों को फंड आवंटित करता है तो उसे राज्य पर कर्ज और मुफ्त योजनाओं पर विचार करना चाहिए।
सिब्बल ने कहा कि वित्त आयोग ही इस समस्या से निपट सकता है। हम आयोग को इस मामले से निपटने के लिए कह सकते हैं। केंद्र से उम्मीद नहीं की जा सकती कि वह इस मामले में कोई निर्देश देगा। इसके बाद बेंच ने एडिशनल सॉलिसिटर जनरल केएम नटराज से कहा वह सिब्बल की सलाह पर आयोग के विचारों का पता करें। अब इस मामले में 3 अगस्त को सुनवाई होगी।
सुनवाई के दौरान चुनाव आयोग की तरफ से पेश हुए वकील अमित शर्मा ने कहा कि पहले के फैसले में कहा गया था कि केंद्र सरकार इस मामले से निपटने के लिए कानून बनाए। वहीं नटराज ने कहा कि यह चुनाव आयोग पर निर्भर करता है।
चीफ जस्टिस रमना ने नटराज से कहा कि आप सीधा-सीधा यह क्यों नहीं कहते कि सरकार का इससे कोई लेना देना नहीं है और जो कुछ करना है चुनाव आयोग करे। मैं पूछता हूं कि केंद्र सरकार मुद्दे को गंभीर मानती है या नहीं? आप पहले कदम उठाइए उसके बाद हम फैसला करेंगे कि इस तरह के वादे आगे होंगे या नहीं। आखिर केंद्र कदम उठाने से परहेज क्यों कर रहा है।
हम श्रीलंका के रास्ते पर जा रहे : याचिकाकर्ता उपाध्याय
याचिकाकर्ता अश्विनी उपाध्याय ने कहा कि यह गंभीर मुद्दा है और पोल पैनल को राज्यों और राष्ट्रीय स्तर की पार्टियों को मुफ्त के वादे करने से रोकना चाहिए। उपाध्याय ने कहा कि राज्यों पर लाखों करोड़ का कर्ज है। हम श्रीलंका के रास्ते पर जा रहे हैं। पहले भी कोर्ट ने केंद्र और चुनाव आयोग से इस याचिका पर प्रतिक्रिया मांगी थी।
उपाध्याय ने अपनी याचिका में दावा किया है कि मतदाताओं को रिझाने और अपन मनसूबे कामयाब करने के लिए राजनीतिक दल मुफ्तखोरी का इस्तेमाल करते हैं। इससे फ्री और फेयर इलेक्शन की जड़ें हिल जाती हैं और भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलता है।