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‘मेड इन इंडिया’ हाईब्रिड मल्टीप्लाई फेस मास्क बनेगा एन-95 रेस्पिरेटर का विकल्प

नई दिल्ली: कोविड-19 महामारी ने पूरी दुनिया में इनसानों पर कहर बरसा दिया है। मौजूदा परिस्थिति में रक्षा की पहली पंक्ति में सेनीटाईजर, फेस मास्क और कोविड-19 से बचने वाले सामाजिक आचरण शामिल हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने मास्क लगाने की सिफारिश की है। उसने यह भी कहा है कि मास्क लगाने से कोविड-19 का […]

नई दिल्ली: कोविड-19 महामारी ने पूरी दुनिया में इनसानों पर कहर बरसा दिया है। मौजूदा परिस्थिति में रक्षा की पहली पंक्ति में सेनीटाईजर, फेस मास्क और कोविड-19 से बचने वाले सामाजिक आचरण शामिल हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने मास्क लगाने की सिफारिश की है। उसने यह भी कहा है कि मास्क लगाने से कोविड-19 का फैलाव सीमित हो जाता है। इस सिलसिले में एन-95 फेस मास्क को खासतौर से ज्यादा कारगर माना गया है। यह मास्क पीड़ित व्यक्ति से स्वस्थ लोगों तक वायरस पहुंचने की प्रक्रिया को ज्यादा प्रभावकारी तरीके से कम कर देता है। लेकिन, एन-95 मास्क कई लोगों के लिये असुविधाजनक होता है और ज्यादातर ये मास्क धोये नहीं जा सकते।

जैव प्रौद्योगिकी उद्योग अनुसंधान सहायता परिषद (बाइरैक) और आईकेपी नॉलेज पार्क इस सिलसिले में फास्ट-ट्रैक कोविड-19 निधि के तहत परिशोधन टेक्नोलॉजीस प्रा.लि. की सहायता कर रहे हैं, ताकि कई तहों वाले मिली-जुली सामग्री से बने हाईब्रिड मल्टीप्लाई फेस मास्क का विकास हो सके। इसे एसएचजी-95 (बिलियन सोशल मास्क) कहते हैं। ‘मेड इन इंडिया’ वाले ये मास्क प्रदूषित कणों को लगभग 90 प्रतिशत और बैक्टीरिया को लगभग 99 प्रतिशत तक रोक सकते हैं। इन मास्कों को इस तरह बनाया गया है कि सांस लेने में कोई दिक्कत नहीं होती और कानों पर बांधने का आरामदेह लूप लगा है। मास्क हाथों से बुने सूती कपड़े के हैं। फिल्टर करने वाली सतह लगाने से इनका फायदा बढ़ गया है। हाथ से धोने और दोबारा इस्तेमाल करने योग्य मास्कों की कीमत कंपनी ने 50-75 प्रति मास्क रखी है, जो आम लोगों के लिये काफी सस्ती है।

उल्लेखनीय है कि 1,45,000 नग बिक चुके हैं। इस पहल को कनाडा के ग्रैंड चैलेंजेस से भी सहायता मिल रही है। कोविड-19 के समय की बढ़ती मांग को ध्यान में रखते हुये इसका निर्माण किया जा रहा है। इसके तहत कई स्व-सहायता समूहों की भी आजीविका में सुधार आया है। परिशोधन टेक्नोलॉजीस प्रा.लि. के संस्थापकों ने आज की समस्याओं का मुकाबला करने का समाधान निकालने की कोशिश की है। इसके लिये उन लोगों ने शोध किया और सस्ती दर पर एक उत्पाद का विकास किया।

डीबीटी के बारे में

बायोटेक्नोलॉजी विभाग, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय के अधीन है और भारत में जैव-प्रौद्योगिकी के विकास में तेजी लाने का काम करता है। इसमें कृषि, स्वास्थ्य, पशु विज्ञान, पर्यावरण और उद्योग में जैव-प्रौद्योगिकी के इस्तेमाल और उसका विकास शामिल है।

बाइरैक के बारे में

जैव प्रौद्योगिकी उद्योग अनुसंधान सहायता परिषद, सार्वजनिक क्षेत्र उपक्रम की धारा 8, अनुसूची ‘ब’ के तहत लाभ न कमाने वाला संगठन है, जिसकी स्थापना बायोटेक्नोलॉजी विभाग ने की है। यह भारत सरकार की एक इंटरफेस एजेंसी है, जिसके जरिये उभरते हुये जैव-प्रौद्योगिकी उद्यमों को शक्ति सम्पन्न किया जाता है, ताकि वे रणनीतिक अनुसंधान और नवाचार का काम कर सकें तथा देश के लिये जरूरी उत्पादों का विकास कर सकें।

परिशोधन टेक्नोलॉजीस प्रा.लि. के बारे में

परिशोधन टेक्नोलॉजीस प्रा.लि. इस समय स्वास्थ्य और आरोग्य से जुड़े उत्पादों के विकास में लगी हुई है। इसकी टीम को दुनिया का अनुभव है और उसका प्रशिक्षण प्रमुख संस्थानों में हुआ है। इसके आधार पर वे भारतीय संदर्भों में समस्याओं का निदान कर रहे हैं। इसे हैदराबाद में जून 2016 को प्राइवेट-लिमिटेड कंपनी के रूप में पंजीकृत किया गया था।

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