पटना: पटना हाईकोर्ट ने बिहार के लगभग 6,000 सरकारी उच्च विद्यालयों में स्थापना / उन्नयन के लिए स्कूली शिक्षा कानूनों और उपनियमों के अनुसार अनिवार्य रूप से आवश्यक बुनियादी ढांचे की कमी पर सोमवार को कड़ी नाराजगी व्यक्त की और इस तरह की कमियों पर राज्य सरकार से जवाब मांगा। मामले की अगली सुनवाई अब 1 नवंबर को होगी।
मुख्य न्यायाधीश संजय करोल और न्यायमूर्ति सत्यव्रत वर्मा की खंडपीठ ने जनहित याचिका के दो समान मामलों की सुनवाई करते हुए प्रत्येक जिले के जिला शिक्षा अधिकारियों (DEO) को अपने-अपने जिलों में स्थित उच्च विद्यालयों के कोर्ट के समक्ष एक साथ आने और बुनियादी ढांचे के बारे में अद्यतन स्थिति प्रस्तुत करने का निर्देश दिया।
खंडपीठ ने पटना को वहां स्थित उच्च विद्यालयों में बुनियादी सुविधाओं के प्रावधान की निगरानी के लिए पहले जिले के रूप में लिया और पटना के DEO को सुनवाई की अगली तारीख पर अद्यतन रिपोर्ट के साथ पेश होने का निर्देश दिया।
बता दें कि इसे लेकर दो जनहित याचिकाएं क्रमशः बुद्धि नाथ महतो और एक गैर सरकारी संगठन द्वारा दायर की गई हैं, जिसमें राज्य सरकार की तरफ से संचालित स्कूलों में खराब बुनियादी ढांचे की ओर हाईकोर्ट का ध्यान आकर्षित किया गया है।
हाईकोर्ट की खंडपीठ ने राज्य सरकार के भेदभावपूर्ण रवैये और उसके साधनों पर भी चिंता व्यक्त की, जिसमें निजी उच्च विद्यालयों पर उनकी संबद्धता या उन्नयन को जारी रखने के लिए कड़े नियम लगाए जाते हैं, जबकि सरकारी उच्च विद्यालयों में समान मानदंडों को पूरा करने में कमी पाई जाती है।
शिक्षा विभाग के प्रमुख सचिव द्वारा 15 जनवरी, 2021 तक प्रस्तुत किए गए आंकड़ों का वर्णन करते हुए खंडपीठ ने बताया कि कुल 6000 उच्च विद्यालयों में से, 4206 में खेल का मैदान था, केवल 1941 में एकीकृत प्रयोगशालाएं थीं और लगभग आधे के पास ही पुस्तकालय थे।