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यौन संबंध साबित करने के लिए वीर्य स्खलन होना जरूरी नहीं

आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट ने सजा को बरकरार रखा, यौन उत्पीड़न मामले में दोषी को मिली थी 10 साल की सजा

अमरावती: आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट ने हाल ही में यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम (POCSO) मामले के तहत एक दोषी की सजा को बरकरार रखते हुए कहा है कि यौन हमले को साबित करने के लिए वीर्य का स्खलन एक आवश्यक शर्त नहीं है।

जस्टिस रॉय ने कहा कि भले ही रिकॉर्ड पर मौजूद साक्ष्य से पता चलता है कि यौन संबंध बनाया गया है, तो फिर यह पॉक्सो अधिनियम की धारा-3 के तहत पारिभाषित यौन उत्पीड़न के अपराध को साबित करने के लिए पर्याप्त है। जस्टिस रॉय ने अपने 22 पन्नों के फैसले में कहा कि जब 12 साल से कम उम्र के बच्चे एक यौन हमला किया जाता है, तो यह POCSO अधिनियम की धारा-5 (एम) के तहत गंभीर यौन हमला होता है और धारा-6 में उस व्यक्ति के खिलाफ सजा का प्रावधान है

बता दें कि 2015 में एक नाबालिग लड़की का यौन उत्पीड़न करने वाले दोषी व्यक्ति को 2016 में पश्चिम गोदावरी जिले के एलुरु में एक विशेष न्यायाधीश द्वारा 10 साल की कठोर सजा सुनाई गई थी। जिसमें उस पर 5,000 रुपये का जुर्माना भी लगाया गया था। हालांकि, दोषी व्यक्ति ने बाद में डॉक्टर की रिपोर्ट का सहारा लेते हुए अपनी सजा को चुनौती दी थी। कहा गया था कि पीड़िता के साथ यौन संबंध बनाने का कोई सबूत नहीं था, क्योंकि जांच के समय वीर्य का पता नहीं चला था। वहीं, न्यायाधीश ने कहा कि डॉक्टर ने पाया कि योनि में खून मिला था। उन्होंने कहा कि केवल इसलिए कि वीर्य का पता नहीं चला था, यह निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता है कि यौन उत्पीड़न हुआ था।