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Bombay High Court ने आरोपी को दी जमानत, कहा- होंठों पर चुंबन अस्वाभाविक नहीं

बॉम्बे हाईकोर्ट (Bombay High Court) ने पाया है कि होंठों पर चुंबन और प्यार करना भारतीय दंड संहिता की धारा 377 के तहत अप्राकृतिक अपराध (unnatural offence) नहीं है, और एक नाबालिग लड़के के यौन उत्पीड़न के आरोपी व्यक्ति को जमानत दे दी है।

नई दिल्लीः बॉम्बे हाईकोर्ट (Bombay High Court) ने पाया है कि होंठों पर चुंबन और प्यार करना भारतीय दंड संहिता की धारा 377 के तहत अप्राकृतिक अपराध (unnatural offence) नहीं है, और एक नाबालिग लड़के के यौन उत्पीड़न के आरोपी व्यक्ति को जमानत दे दी है।

हाल ही में एक आदेश में, न्यायमूर्ति अनुजा प्रभुदेसाई ने 14 वर्षीय लड़के के पिता द्वारा दर्ज की गई पुलिस शिकायत के बाद पिछले साल गिरफ्तार किए गए व्यक्ति को जमानत दे दी।

प्राथमिकी के अनुसार, लड़के के पिता को उनकी अलमारी से कुछ पैसे गायब मिले। लड़के ने उसे बताया कि उसने आरोपी को पैसे दिए हैं। नाबालिग ने कहा कि वह मुंबई के एक उपनगर में आरोपी व्यक्ति की दुकान पर एक ऑनलाइन गेम, ‘ओला पार्टी’ रिचार्ज करने के लिए जाता था, जिसे वह खेलता था।

लड़के ने आरोप लगाया कि एक दिन जब वह रिचार्ज कराने गया तो आरोपी ने उसके होठों पर किस किया और उसके गुप्तांगों को छुआ।

इसके बाद, लड़के के पिता ने पुलिस से संपर्क किया, जिसने आरोपी के खिलाफ यौन अपराधों से बच्चों की रोकथाम (POCSO) अधिनियम की संबंधित धाराओं और भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 377 के तहत प्राथमिकी दर्ज की, जो शारीरिक संभोग या किसी अन्य को अप्राकृतिक बनाता है। विशेष रूप से, आईपीसी की धारा 377 में आजीवन कारावास की अधिकतम सजा होती है और जमानत देना मुश्किल हो जाता है।

न्यायमूर्ति प्रभुदेसाई ने आरोपी को जमानत देते हुए कहा कि लड़के का मेडिकल परीक्षण उसके यौन उत्पीड़न के बयान का समर्थन नहीं करता है।

उसने आगे कहा कि आरोपी के खिलाफ लगाए गए पॉक्सो की धाराओं में अधिकतम पांच साल की सजा है और उसे जमानत का अधिकार है।

न्यायमूर्ति प्रभुदेसाई ने कहा कि वर्तमान मामले में अप्राकृतिक सेक्स का तत्व प्रथम दृष्टया लागू नहीं है।

न्यायाधीश ने कहा, “पीड़ित के बयान के साथ-साथ प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) प्रथम दृष्टया संकेत देती है कि आवेदक ने पीड़ित के निजी अंगों को छुआ था और उसके होंठों को चूमा था। मेरे विचार से, यह भारतीय दंड संहिता की धारा 377 के तहत प्रथम दृष्टया अपराध नहीं है।”

उच्च न्यायालय ने आगे कहा कि आरोपी पहले से ही एक साल के लिए हिरासत में था, और मामले की सुनवाई जल्द शुरू होने की संभावना नहीं थी।

हाईकोर्ट ने आरोपी को 30,000 रुपये के निजी मुचलके पर जमानत देते हुए कहा, ‘उपरोक्त तथ्यों और परिस्थितियों को देखते हुए आवेदक जमानत का हकदार है।

(एजेंसी इनपुट के साथ)