‘जय संतोषी मां’ के प्रदर्शन से पहले शुक्रवार को मां संतोषी की पूजा नहीं होती थी। फिल्म जब रिलीज हुई तो जितना पैसा सिनेमाघर को टिकट से नहीं आता था, उससे ज्यादा पैसा को पर्दे पर उछलते थे और झाड़ू से सिक्के बटोरें जाते थे।
छपरा का शिल्पी सिनेमा घर हो या सिवान का दरबार या फिर गोपालगंज का जनता हर जगह कहानी वही थी। कहते हैं की फिल्म के प्रदर्शन के बाद देश में संतोषी माता की पूजा शुरू हुई। शुक्रवार के दिन लोगों ने अचार और खटाई खाना बंद कर दिया।
15 अगस्त, 1975, ‘शोले’ के साथ रिलीज हुई थी ये फिल्म। बैलगाड़ियों में बैठ गांव-देहात से फिल्म देखने शहर पहुंचे थे लोग। 15 अगस्त 1975, इस दिन अमिताभ बच्चन, धर्मेंद्र, हेमा मालिनी, संजीव कुमार और अमजद खान की हिट मूवी शोले रिलीज हुई थी।
एक ऐसी फिल्म जिसका एक एक सीन, एक-एक डायलॉग हमेशा के लिए यादगार बन गया। क्या इस फिल्म की पॉपुलेरिटी को कोई फिल्म पछाड़ सकती है, इस सवाल का जवाब है हां। शोले की पॉपुलेरिटी को उसी दिन बड़ा चैलेंज मिल गया था जिस दिन फिल्म रिलीज हुई थी।
क्योंकि, 15 अगस्त 1975 को फिल्म ‘जय संतोषी मां’ भी रिलीज़ हुई थी। इस फिल्म के लिए लोग गावों से शहर बैलगाड़ी पर बैठके आए थे। यहीं नहीं लोग इस फिल्म के लिए इतने धार्मिक थे कि फिल्म देखने से पहले चप्पल थिएटर के बाहर निकालकर जाते थे।
इतना ही नहीं फिल्म खत्म होने के बाद बहुत से भक्त थियेटर में अंदर ही प्रसाद बांटा करते थे या फिर टॉकिज के बाहर प्रसाद वितरण के स्टॉल लगा करते थे। हिंदी सिनेमा के इतिहास में जब भी ऐसी फिल्म की बात होगी जो बहुत कम बजट में बनी लेकिन कमाई जबरदस्त कर डाली।
‘जय संतोषी मां’ भी ऐसी ही फिल्म है, ये फिल्म बनी थी करीब 25 लाख रुपये में और इसने बॉक्स ऑफिस पर 5 करोड़ रुपये का कलेक्शन किया था। वो भी तब जब वो सिनेमा स्क्रीन पर शोले जैसी मूवी के पैरलल में रिलीज हुई थी।