राज कपूर (Raj Kapoor) बहुत संवेदनशील कलाकार थे। किरदार को रूह में बसाकर अभिनय करते थे वह। श्री 420, आवारा, आग, बरसात, अंदाज़, मेरा नाम जोकर, ‘जिस देश में गंगा बहती है’ बूट पालिश, जैसी फिल्मों से उनकी लोकप्रियता अपने ही देश में नहीं बल्कि जापान,चाइना और रूस जैसे अन्य देशों तक भी जा पहुंची। रूस में तो उनके लिए दीवानगी का आलम ये टैगोर की जन्म शताब्दी समारोह में पहुंचे हिंदुस्तानी लेखकों से भी लोग राज कपूर और नरगिस के ही बारे में पूछ रहे हैं।
राज कपूर अभिनेता तो आला दर्जे के थे ही, निर्देशक भी बेहतरीन थे। संगम, बॉबी, सत्यम शिवम सुंदरम,प्रेम रोग जैसी कई हिट फिल्में भी उन्होंने निर्देशित की थीं । उनके निर्देशन में बनी एक महत्वकांक्षी फिल्म थी ‘मेरा नाम जोकर’, जो बड़े बजट और कई सारे सितारों के होते हुए भी फ्लॉप हो गई थी। समीक्षकों ने कहा कि इसमें टीनएजर ऋषि कपूर का अपनी टीचर सिमी ग्रेवाल से प्रेम करने वाला कंसेप्ट दर्शकों को पसंद नहीं आया।
हो सकता है, ऐसा हो, लेकिन मुझे लगता है पैंतालीस पार की उम्र के दिख रहे थुलथुले राज कपूर का बीस- बाइस साल की सुंदर ,कमसिन रूसी नायिका से प्रेम करना सहज स्वीकार्य न हुआ दर्शकों को। फिल्म की बाकी नायिकाएं भी उनके बुढ़ाए चेहरे की अपेक्षा काफी ताज़ातरीन और सुंदर थीं। बहरहाल फिल्म फ्लॉप हो गई।
उनके निर्देशन में बनी एक और फिल्म है ‘राम तेरी गंगा मैली’ । फिल्म की कहानी बहुत धांसू तो नहीं है, लेकिन फिल्म के सुरीले गीत- संगीत और नीली आंखों वाली नायिका मंदाकिनी के कारण आज भी लोगों को यह याद है।
इस फिल्म में उन्होंने झरने के नीचे मंदाकिनी को जिस तरह नहाते हुए दिखाया है, मुझे आश्चर्य होता है पहाड़ी समाज पर, कि किसी ने भी इस बात पर ऐतराज़ नहीं किया ।
राज कपूर साहब की तरह लाखों लोग हर साल पहाड़ की सैर पर आते हैं, क्या कभी किसी ने ‘राम तेरी गंगा मैली’ की तरह यहां की लड़कियों को झरने के नीचे नहाते हुए देखा है? यह पहाड़ की छवि को सरासर ख़राब करने वाला दृश्य था।
पाकिस्तानी हीरोइन जेबा बख्तियार और ऋषि कपूर अभिनीत फिल्म ‘हिना’ को भी राज कपूर ही निर्देशित कर रहे थे, किंतु अस्थमा की लंबी बीमारी से परेशान वह 2जून 1988 में दुनिया को अलविदा कह गए। इसके ठीक एक महीने पहले ही उन्हें हिंदी सिनेमा का सबसे प्रतिष्ठित अवार्ड दादा साहब फाल्के पुरस्कार दिया गया था।