पुराणों में गणेश जी (Ganesh ji) के जन्म से संबंधित कथाएं विभिन्न रूपों में प्राप्त होती हैं। विभिन्न पुराणों की कथाओं में गणेश जी की जन्म कथा में कुछ भिन्नता होने के बाद भी यह कहा जाता है कि शिव-पार्वती (Shiv Parvati) के माध्यम से ही इनका अवतार हुआ है।
कुछ लोग वेदों एवं पुराणों के विवरण को न समझ पाने के कारण शंका करते हैं कि गणेशजी अगर शिवपुत्र हैं तो फिर अपने विवाह में शिव-पार्वती ने उनका पूजन कैसे किया? इस शंका का समाधान तुलसीदासजी करते हैं-
“मुनि अनुशासन गनपति हि पूजेहु शंभु भवानि।
कोउ सुनि संशय करै जनि सुर अनादि जिय जानि।”
(विवाह के समय ब्रह्मवेत्ता मुनियों के निर्देश पर शिव-पार्वती ने गणपति की पूजा संपन्न की। कोई व्यक्ति संशय न करें, क्योंकि देवता (गणपति) अनादि होते हैं।)
तात्पर्य यह है कि भगवान गणपति किसी के पुत्र नहीं हैं। वे अज, अनादि व अनंत हैं।
भगवान शिव के पुत्र जो गणेश हुए, वह तो उन गणपति के अवतार हैं, जिनका उल्लेख वेदों में पाया जाता है। गणेश जी वैदिक देवता हैं, परंतु इनका नाम वेदों में गणेश न होकर ‘गणपति’या ‘ब्रह्मणस्पति’ है।
जो वेदों में ब्रह्मणस्पति हैं, उन्हीं का नाम पुराणों में गणेश है। ऋग्वेद एवं यजुर्वेद के मंत्रों में भी गणेश जी के उपर्युक्त नाम देखे जा सकते हैं।
माता जगदम्बा ने महागणपति की आराधना की और उनसे वरदान प्राप्त किया कि आप मेरे पुत्र के रूप में अवतार लें, इसलिए भगवान महागणपति गणेश के रूप में शिव-पार्वती के पुत्र होकर अवतरित हुए।
अत: यह शंका निर्मूल है कि शिव विवाह में गणपति पूजन कैसे हुआ? जिस प्रकार भगवान विष्णु अनादि हैं और राम, कृष्ण, वामन आदि अनेक अवतार हैं, उसी प्रकार गणेशजी भी महागणपति के अवतार हैं।