धर्म-कर्म

क्यों चढ़ाई जाती है भगवान गणेश को दूर्वा की गांठें, जानें रहस्य

शास्त्रों में प्रथम पूज्य भगवान गणेश जी (Ganesh ji) की पूजा बुधवार करने का विधान है। वैसे तो भगवान गणेश की पूजा किसी भी पूजा के पहले की जाती है, लेकिन बुधवार को गजानंद के भक्त पूरे विधि-विधान के साथ उनकी अराधना करते हैं। गणेश जी की पूजा में दूर्वा जरूर होता है, क्योंकि उन्हें […]

शास्त्रों में प्रथम पूज्य भगवान गणेश जी (Ganesh ji) की पूजा बुधवार करने का विधान है। वैसे तो भगवान गणेश की पूजा किसी भी पूजा के पहले की जाती है, लेकिन बुधवार को गजानंद के भक्त पूरे विधि-विधान के साथ उनकी अराधना करते हैं। गणेश जी की पूजा में दूर्वा जरूर होता है, क्योंकि उन्हें दूर्वा बहुत प्रिय है। दूर्वा को दूब भी कहा जाता है।

यह एक प्रकार की घास होती है, जो सिर्फ गणेश पूजन में ही उपयोग में लाई जाती है। आखिर श्री गणेश को क्यों इतना प्रिय है दूर्वा? इसके पीछे क्या कहानी है? क्यों इसकी 21 गांठें ही श्री गणेश को चढ़ाई जाती है? जानें इसका रहस्य।

माना जाता है कि दूर्वा की 21 गांठें भगवान गणेश को चढ़ाने से हर मनोकामना पूर्ण होती है। इसके पीछे एक पौराणिक कथा है। प्राचीन काल में अनलासुर नाम का एक दैत्य था, उसके कोप से स्वर्ग और धरती पर त्राहि-त्राहि मची हुई थी। अनलासुर एक ऐसा दैत्य था, जो मुनि-ऋषियों और साधारण मनुष्यों को जिंदा निगल जाता था। इस दैत्य के अत्याचारों से त्रस्त होकर इंद्र सहित सभी देवी-देवता, ऋषि-मुनि भगवान महादेव से प्रार्थना करने जा पहुंचे और सभी ने महादेव से यह प्रार्थना की कि वे अनलासुर के आतंक का खात्मा करें।

समस्त देवी-देवताओं तथा मुनि-ऋषियों की प्रार्थना सुनकर महादेव ने उनसे कहा कि दैत्य अनलासुर का नाश केवल श्री गणेश ही कर सकते हैं। फिर सबकी प्रार्थना पर श्री गणेश ने अनलासुर को निगल लिया, तब उनके पेट में बहुत जलन होने लगी।

इस परेशानी से निपटने के लिए कई प्रकार के उपाय करने के बाद भी जब गणेशजी के पेट की जलन शांत नहीं हुई, तब कश्यप ऋषि ने दूर्वा की 21 गांठें बनाकर श्री गणेश को खाने को दीं। यह दूर्वा श्री गणेशजी ने ग्रहण की, तब कहीं जाकर उनके पेट की जलन शांत हुई। ऐसा माना जाता है कि श्री गणेश को दूर्वा चढ़ाने की परंपरा तभी से आरंभ हुई।
दूर्वा की पौराणिक कथा

सनातन परंपरा में दूर्वा या फिर कहें दूब का प्रयोग पूजा-पाठ से लेकर मांगलिक कार्यों में सदियों से होता चला आ रहा है। दूर्वा शब्द ‘दुहु’ और ‘अवम’ से मिलकर बना है। दूर्वा में तीन भाग होते हैं, जिन्हें गणपति, शक्ति और शिव का प्रतीक माना जाता है।

मान्यता है कि जब समुद्र मंथन के बाद देवता असुरों से बचाकर अमृत को ले जा रहे थे तो उसकी कुछ बूंदें दूर्वा पर गिरी। जिस कारण यह पवित्र और अमर हो गई और कभी नष्ट नहीं होती हे। पृथ्वी पर पाई जाने वाली दूर्वा अमृत के समान फल देने वाली है। दूर्वा को अमृता, अनंता, महाऔषधि के नाम से जाना जाता है। कल्याणकारी दूर्वा न सिर्फ देवताओं को प्रिय है, बल्कि यह मनुष्यों और पशुओं को भी काफी प्रिय है।