धर्म-कर्म

जानिए किसने की थी कांवड़ यात्रा कर शिवलिंग पर जल चढ़ाने की शुरुआत?

श्रवण माह में देवाधिदेव महादेव शिव आराधना का बड़ा महत्व है। इस दौरान जगह-जगह कांवड़ियों की लम्बी कतारें बम बम भोले के जयकारे लगाते हुए भोले बाबा को जल चढ़ाते है। आखिर, श्रद्धा से जुड़ी इस परंपरा की शुरुआत कब और किसने की? इस पर अलग-अलग मत है। यहां जानें कांवड़ यात्रा (Kanwar Yatra) किसने शुरू की।

श्रवण माह में देवाधिदेव महादेव शिव आराधना का बड़ा महत्व है। इस दौरान जगह-जगह कांवड़ियों की लम्बी कतारें बम बम भोले के जयकारे लगाते हुए भोले बाबा को जल चढ़ाते है। आखिर, श्रद्धा से जुड़ी इस परंपरा की शुरुआत कब और किसने की? इस पर अलग-अलग मत है। यहां जानें कांवड़ यात्रा (Kanwar Yatra) किसने शुरू की।

भगवान राम
ऐसा भी माना जाता है कि भगवान राम पहले कांवड़िया थे। कहते हैं श्री राम ने झारखंड के सुल्तानगंज से कांवड़ में गंगाजल लाकर बाबाधाम के शिवलिंग का जलाभिषेक किया था।

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श्रवण कुमार
कुछ लोगों को मानना है कि पहली बार श्रवण कुमार ने त्रेता युग में कांवड़ यात्रा की शुरुआत की थी। अपने दृष्टिहीन माता-पिता को तीर्थ यात्रा कराते समय जब वह हिमाचल के ऊना में थे तब उनसे उनके माता-पिता ने हरिद्वार में गंगा स्नान करने की इच्छा के बारे में बताया। उनकी इस इच्छा को पूरा करने के लिए श्रवण कुमार ने उन्हें कांवड़ में बैठाया और हरिद्वार लाकर गंगा स्नान कराए। वहां से वह अपने साथ गंगाजल भी लाए। माना जाता है तभी से कांवड़ यात्रा की शुरुआत हुई।

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रावण
पुराणों के अनुसार इस यात्रा शुरुआत समुद्र मंथन के समय हुई थी। मंथन से निकले विष को पीने की वजह से शिव जी का कंठ नीला पड़ गया था और तब से वह नीलकंठ कहलाए। इसी के साथ विष का बुरा असर भी शिव पर पड़ा। विष के प्रभाव को दूर करने के लिए शिवभक्त रावण ने तप किया। इसके बाद दशानन कांवड़ में जल भरकर लाया और पुरा महादेव में शिवजी का जलाभिषेक किया। इसके बाद शिव जी विष के प्रभाव से मुक्त हुए। कहते हैं तभी से कांवड़ यात्रा शुरू हुई।

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भगवान परशुराम
कुछ विद्वानों का मानना है कि सबसे पहले भगवान परशुराम ने कांवड़ से गंगाजल लाकर उत्तर प्रदेश के बागपत के पास स्थित ‘पुरा महादेव’ का जलाभिषेक किया था। वह शिवलिंग का अभिषेक करने के लिए गढ़मुक्तेश्वर से गंगाजल लाए थे। इस कथा के अनुसार आज भी लोग गढ़मुक्तेश्वर से गंगाजल लाकर पुरा महादेव का अभिषेक करते हैं। अब गढ़मुक्तेश्वर को ब्रजघाट के नाम से जाना जाता है।

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देवताओं ने किया जलाभिषेक
यह भी माना जाता है कि समुद्र मंथन में विष के असर को कम करने के लिए शिवजी ठंडे चंद्रमा को अपने मस्तक पर सुशोभित किया था। फिर सभी देवताओं ने भोलेनाथ को गंगाजल चढ़ाया। तभी से सावन में कांवड़ यात्रा शुरू हो गई।

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