श्रीराधा जी के बारे में प्रचलित है कि वह बरसाना की थीं, लेकिन सच्चाई है कि उनका जन्म बरसाना से पचास किलोमीटर दूर हुआ था। यह गांव रावल के नाम से प्रसिद्ध है। यहां पर राधा जी का जन्म स्थान है।
कमल के फूल पर जन्मी थीं राधा
रावल गांव में राधा जी का मंदिर है। माना जाता है कि यहां पर राधा जी का जन्म हुआ था। पांच हजार वर्ष पूर्व रावल गांव को छूकर यमुना जी बहती थी। राधा जी की मां कृति यमुना में स्नान करते हुए अराधना करती थी और पुत्री की लालसा रखती थी। पूजा करते समय एक दिन यमुना से कमल का फूल प्रकट हुआ। कमल के फूल से सोने की चमक सी रोशनी निकल रही थी। इसमें छोटी बच्ची के नेत्र बंद थे। अब वह स्थान इस मंदिर का गर्भगृह है। इसके ग्यारह माह पश्चात् तीन किलोमीटर दूर मथुरा में कंस के कारागार में भगवान श्री कृष्ण जी का जन्म हुआ था व रात में गोकुल में नंदबाबा के घर पर पहुंचाए गए। तब नंद बाबा ने सभी स्थानों पर संदेश भेजा और कृष्ण का जन्मोत्सव मनाया गया। जब बधाई लेकर वृषभानु जी अपनी गोद में राधारानी को लेकर यहां आए तो राधारानी जी घुटने के बल चलते हुए बालकृष्ण के पास पहुंची। वहां बैठते ही तब राधारानी के नेत्र खुले और उन्होंने पहला दर्शन बालकृष्ण का किया।
राधा और श्रीकृष्ण क्यों गए बरसाना?
कृष्ण के जन्म के बाद से ही कंस का प्रकोप गोकुल में बढ़ गया था। यहां के लोग परेशान हो गए थे। नंदबाबा ने स्थानीय राजाओं को एकत्रित किया। उस समय ब्रज के सबसे बड़े राजा वृषभानु जी थे। इनके पास ग्यारह लाख गाय थीं। जबकि नंद जी के पास नौ लाख गाय थीं। जिसके पास सबसे अधिक गाय होतीं थीं, वह वृषभान कहलाते थे। उससे कम गाय जिनके पास रहती थीं, वह नंद कहलाए जाते थे। बैठक के बाद निर्णय हुआ कि गोकुल व रावल छोड़ दिया जाए। गोकुल से नंद बाबा और जनता पलायन करके पहाड़ी पर गए। उसका नाम नंदगांव पड़ा। वृषभान, कृति जी राधारानी को लेकर पहाड़ी पर गए। उसका नाम बरसाना पड़ा।
रावल में मंदिर के सामने बगीचा, इसमें पेड़ स्वरूप में हैं राधा व श्याम
रावल गांव में राधारानी के मंदिर के ठीक सामने प्राचीन उपवन है। कहा जाता है कि यहां पर पेड़ स्वरूप में आज भी श्री राधा जी और श्री कृष्ण जी विद्यमान हैं। यहां पर एक साथ दो वृक्ष हैं। एक श्वेत है तो दूसरा श्याम रंग का। इसकी पूजा होती है। माना जाता है कि श्री राधा जी और श्री कृष्ण जी वृक्ष स्वरूप में आज भी यहां से यमुना जी को निहारते हैं।
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