पुराणों में वर्णित कथा के अनुसार एक बार अयोध्या के राजा दशरथ ज्योतिषियों के साथ बैठे हुए थे तो उन लोगों ने बताया था कि शनिदेव (Shani Dev) कृतिका नक्षत्र के अंत में है और रोहिणी नक्षत्र को भेदकर जाने वाले हैं। जिसका फल देव और दानवों के लिए भयंकर होगा और धरती पर 12 साल के लिए सूखा पड़ जाएगा।
यह सुनकर राजा दशरथ चिंतित हो गए। उन्होंने वशिष्ठ जी समेत अन्य महर्षियों से इसका समाधान पूछा। उन सभी ने कहा कि इसका समाधान तो ब्रह्मा जी के पास भी नहीं है।
इसके बाद राजा दशरथ अपने दिव्य रथ में सवार होकर सूर्य लोक के पार नक्षत्र मंडल में पहुंचे। रोहिणी नक्षत्र के पिछले भाग में जाकर शनिदेव पर दिव्यास्त्र चलाने के लिए धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ा ली। यह देखकर शनिदेव कुछ समय के लिए डर गए। लेकिन फिर हंसते हुए बोले-राजन, तुम्हारा साहस प्रशंसनीय है।
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शनि के के नेत्रों से देव, दैत्य सब भसम हो जाते हैं लेकिन हम तुम्हारे साहस से प्रसन्न है। तुम्हारी जो इच्छा हो वर मांग लो। इस पर राजा दशरथ ने कहा कि जब तक सूर्य और चंद्रमा है तब तक आप रोहिणी नक्षत्र को ना भेदे इस पर उन्होंने एवमस्तु कह दिया।
शनि देव ने दशरथ जी से कहा कि मैं बहुत ज्यादा प्रसन्न हूं, एक और वर मांग लो। तब राजा दशरथ ने कहा कि 12 साल तक कभी भी पृथ्वी पर सूखा और अकाल ना पड़े उन्होंने वह भी वर दे दिया। तब राजा दशरथ ने धनुष रथ पर रख दिया और शनि देव की स्तुति करने लगे। यह स्तुति शनेश्वर स्रोतम के नाम से जानी जाती है।
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राजा दशरथ के मुख से अपना स्रोत सुनकर शनिदेव ने फिर एक वर मांगने को कहा। तब राजा दशरथ ने कहा कि आप किसी को पीड़ा ना दें इस पर शनिदेव ने कहा कि यह संभव नहीं है जीवो को कर्म के अनुसार सुख और दुख भोगना पड़ेगा।
हां मैं यह वरदान देता हूं कि तुमने मेरी जो स्तुति की है, उसे जो भी पढ़ेगा उसे पीड़ा से मुक्ति मिल जाएगी इस प्रकार राजा दशरथ शनि देव से तीन वरदान प्राप्त करके अयोध्या वापस लौट आए।
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