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Varuthini Ekadashi 2022: भगवान विष्णु व हनुमान जी की पूजा का विशेष संयोग, जानें शुभ मुहूर्त, पूजा विधि, कथा और महत्व

Varuthini Ekadashi 2022: इस साल वरुथिनी एकादशी (Varuthini Ekadashi) आज मंगलवार 26 अप्रैल को है। मंगलवार को एकादशी (Ekadashi) होने से इस दिन भगवान विष्णु (Bhagwan Vishnu) और हनुमान जी (Hanuman ji) की पूजा का विशेष संयोग बन रहा है। मान्यता है कि एकादशी तिथि पर भगवान विष्णु की पूजा करने से व्रती से सभी […]

Varuthini Ekadashi 2022: इस साल वरुथिनी एकादशी (Varuthini Ekadashi) आज मंगलवार 26 अप्रैल को है। मंगलवार को एकादशी (Ekadashi) होने से इस दिन भगवान विष्णु (Bhagwan Vishnu) और हनुमान जी (Hanuman ji) की पूजा का विशेष संयोग बन रहा है। मान्यता है कि एकादशी तिथि पर भगवान विष्णु की पूजा करने से व्रती से सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और 10 हजार वर्षों की तपस्या के बराबर फल की प्राप्ति होती है। जानें वरुथिनी एकादशी शुभ मुहूर्त, कथाएं और महत्व।

शुभ मुहूर्त
ज्योतिषाचार्यों के अनुसार, वरुथिनी एकादशी (Varuthini Ekadashi)  25 अप्रैल सोमवार की रात 01 बजकर 36 मिनट पर शुरू होगी, जिसका समापन 26 अप्रैल, मंगलवार की रात 12 बजकर 46 मिनट पर होगा। इस तरह उदया तिथि के अनुसार, एकादशी व्रत 26 अप्रैल, मंगलवार के दिन रखना ही उत्तम होगा।

पूजा विधि
आज सुबह ही जल्दी उठकर स्नान आदि से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करें और मंदिर में दीप प्रज्वलित करें। फिर देवी- देवताओं की मूर्ति को स्नान कराने के बाद स्वच्छ वस्त्र पहनाएं। यदि व्रत कर सकते हैं तो संकल्प लें और भगवान विष्णु का ध्यान करें। भगवान विष्णु के साथ माता लक्ष्मी की पूजा भी करें।

भगवान विष्णु को भोग लगाएं, जिसमें तुलसी को जरूर शामिल करें।मान्यताओं के अनुसार भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा करने से सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं।

दो कथाएं
वरुथिनी एकादशी (Varuthini Ekadashi) को लेकर कई कथाएं प्रचलित हैं। एक पौराणिक कथा के अनुसार जब भगवान शिव ने कोध्रित हो ब्रह्मा जी का पांचवां सर काट दिया था, तो उन्हें शाप लग गया था। इस शाप से मुक्ति के लिए भगवान शिव ने वरुथिनी एकादशी का व्रत किया था। वरुथिनी एकादशी का व्रत करने से भगवान शिव शाप और पाप से मुक्त हो गए। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस एक दिन व्रत रखने का फल कई वर्षों की तपस्या के समान है।

एक अन्य कथा के अनुसार, प्राचीन समय में मान्धाता नाम के राजा नर्मदा नदी के किनारे राज्य करते थे। एक बार जब वे वन में तपस्या कर रहे थे, तभी वहां एक भालू आया और राजा का पैर चबाने लगा। गहरी पीड़ा होने के बाद भी राजा मांधाता तपस्या में लीन रहे। जब भालू राजा को घसीटकर जंगल के अंदर ले जाने लगा तब राजा ने मन ही मन भगवान विष्णु से रक्षा की प्रार्थना की।

राजा की प्रार्थना सुनकर भगवान विष्णु वहां प्रकट हुए और भालू को मारकर राजा के प्राण बचाए। तब तक भालू राजा का एक पैर खा चुका था। भगवान विष्णु ने ये देखा तो राजा मांधाता से कहा कि तुम मथुरा जाकर वरूथिनी एकादशी का व्रत करो। इस व्रत के प्रभाव से तुम ठीक हो जाओगे। राजा ने ऐसा ही किया और व्रत के प्रभाव से उनका पैर दोबारा आ गया। वरुथिनी एकादशी के व्रत से मृत्यु के बाद राजा को स्वर्ग की प्राप्ति हुई।